सामान्य ज्ञान
ठंड के असर से शरीर में भी रोएं खड़े हो जाते हैं, कभी उंगलियां सुन्न हो जाती हैं तो कभी कान ठंडे हो जाते हैं, लेकिन हमारा शरीर ऐसी प्रतिक्रिया क्यों देता है ?
हर इंसान में यह प्रतिक्रिया अलग अलग होती है। हर इंसान की त्वचा में तापमान के सेंसर होते हैं। कुछ लोगों में ये सेंसर कान में ज्यादा होते हैं तो कुछ में शरीर के किसी और हिस्से में ये सेंसर अधिक मात्रा में हो सकते हैं। इसके अलावा शरीर में तापमान के सेंसरों की संख्या हर इंसान में अलग हो सकती है। शरीर में मौजूद सेंसर एक समय में एक ही तरह के तापमान को समझते हैं। ठंडे तापमान को भांपने वाले सेंसर गर्म तापमान को नहीं आंक पाते हैं, लेकिन दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे लोगों का आंतरिक तापमान लगभग समान ही होता है, फिर चाहे वे सहारा के मरुस्थल में रह रहे हों या ग्रीनलैंड की ठंडी बर्फीली हवाओं के बीच।
हमारे शरीर का तामपान 36.5 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है। अगर यह तापमान 42 डिग्री से ऊपर या 30 डिग्री से नीचे चला जाए तो जान भी जा सकती है। शरीर का तापमान इतना अधिक गिरने की स्थिति में शरीर के भीतर अहम अंग काम करना बंद कर सकते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान बेहोश हो सकता है, उसे हाइपोथर्मिया हो सकता है या मौत भी हो सकती है। जैसे ही तापमान गिरता है शरीर का आंतरिक तंत्र सिग्नल भेज कर इस बात की सूचना देता है कि हम खतरे में हो सकते हैं। तापमान में परिवर्तन होने पर शरीर कांपना शुरू कर देता है या रोएं खड़े हो जाते हैं।
प्राचीन समय में इंसान के शरीर पर बहुत बाल हुआ करते थे जो उसे ठंड से बचने में मदद भी करते थे। हमारे शरीर पर बाल त्वचा के जिस हिस्से से जुड़े होते हैं वहां ठंड होने पर मांसपेशियां अकडऩे लगती हैं और बाल खड़े हो जाते हैं। उन जीवों में जिनके शरीर पर बहुत बाल होते हैं, बालों की परत ऊष्मारोधी या अवरोधी परत की तरह काम करती हैं। इसी तरह शरीर के पास कुछ और भी आत्मरक्षक तरीके होते हैं। जब शरीर को अहसास होता है कि उसे और तापमान की जरूरत है तो हमें कंपकपी लगती है। अकसर ऐसी स्थिति में हमारे निचले जबड़े में किटकिटाहट होने लगती है। जब हम कांपते हैं तो शरीर में रक्त स्राव तेज हो जाता है, जिससे हमें गर्मी मिलती है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में आंतरिक तापमान बनाए रखने का ज्यादा बेहतर तंत्र होता है। उनके शरीर की संरचना ही कुछ ऐसी होती है जिससे आंतरिक अंगों को गर्मी मिलती रहती है। साथ ही अगर वे गर्भवती हैं तो शरीर के भीतर पल रहे शिशु के लिए भी तापमान उचित बना रहता है।
एक आम धारणा यह भी है कि मोटे व्यक्ति को ठंड कम लगती है, जो कि सच नहीं है। हालांकि मांसपेशियों का द्रव्यमान भी अहम भूमिका निभाता है। आमतौर पर महिलाओं के शरीर में 25 फीसदी औऱ पुरुषों में 40 फीसदी द्रव्यमान मांसपेशियों का होता है। ज्यादा मांसपेशियों वाले शरीर को ठंड कम लगती है, लेकिन यह धारणा कि वसा या शरीर की चर्बी ठंड से बचने में मदद करती है, गलत है। ठंड से बचने का बढिय़ा तरीका वजन बढ़ाना नहीं बल्कि शारीरिक गतिविधियां बढ़ाना है।