सामान्य ज्ञान
10वीं लोकसभा के लिए 1991 के अप्रैल-मई महीने में चुनाव कराए जाने का फैसला हुआ। सुरक्षा कारणों से पंजाब में चुनाव 1992 में कराए गए जबकि जम्मू-कश्मीर में 10वीं लोकसभा के चुनाव कराए ही नहीं गए। चुनाव मैदान में थीं कांग्रेस, बीजेपी, नेशनल फ्रंट गठबंधन और दो कम्युनिस्ट पार्टियां।
इन चुनावों में पहली बार कांग्रेस की नीति समाजवाद से हटकर उदारीकरण की तरफ परिवर्तित हुई। लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में अल्ट्रा नेशनलिस्ट बीजेपी हिंदू राजनीतिक और धार्मिक परंपरा से प्रेरित थी। जबकि नेशनल फ्रंट अब भी वी पी सिंह के पिछड़े वर्ग के विकास यानि मंडल की लाठी के सहारे था। कुल मिलाकर 9 हजार उम्मीदवारों ने 4 हफ्तों तक चुनाव प्रचार किया। ये चुनाव कई हिंसक घटनाओं का भी गवाह बना। मई में पहले चरण में 211 सीटों के लिए मतदान हुआ। दूसरे चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार जारी था। इसी दौरान एक आतंकी घटना ने चुनाव के सारे परिदृश्य को बदलकर रख दिया।
21 मई, 1991। मतदान का दूसरा चरण। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी मद्रास के करीब श्रीपेरंबुदूर में चुनाव प्रचार कर रहे थे। राजीव गांधी लोगों से मिल रहे थे ठीक इसी वक्त रुञ्जञ्जश्व की एक महिला आतंकी ने आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी। इस आत्मघाती हमले में 14 अन्य लोग भी मारे गए। राजीव गांधी की मौत के बाद चुनाव जून में कराए गए। कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। राजीव गांधी की मौत से नेहरू वंश की उस परंपरा का अंत हो गया जो आजादी के बाद से लगातार सत्ता पर प्रत्यक्ष तौर पर काबिज था।
21 जून, 1991 को राजनीति से रिटायरमेंट ले चुके पी. वी. नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। नरसिम्हा राव ने तो 1991 के चुनाव में हिस्सा भी नहीं लिया था। प्रधानमंत्री के तौर पर नरसिम्हा राव ने अच्छा प्रदर्शन किया। विपक्षी पार्टी बीजेपी ने भी उनकी तारीफ की, लेकिन जैन हवाला मामले में उनका नाम आने से कांग्रेस और विपक्ष में उनके कई दुश्मन पैदा हो गए। यही नहीं अपने कार्यकाल में बाबरी मस्जिद को न बचाने का दाग भी उनके दामन में हमेशा के लिए लग चुका था।
भारत के उस वक्त तक के चुनावी इतिहास में 1991 का आम चुनाव सबसे ज्यादा हिंसक साबित हुआ। चुनाव के दौरान दंगों में 200 से भी ज्यादा लोग मारे गए। चुनाव आयोग को और धारदार और सशक्त बनाने के लिए एक की बजाय दो चुनाव आयुक्त नियुक्त करने के लिए कानून बनाया गया। 1991 में टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त बने और इसके बाद तो चुनाव आयोग का खौफ हर उम्मीदवार के मन में घर कर गया। टी एन शेषन ने कई कठोर और मजबूत कदम उठाए जिसकी वजह से चुनाव आयोग को अपनी ताकत का अहसास हुआ।
वर्ष 1991 में 10 वीं लोकसभा की कुल 521 सीटों में से इंडियन नेशनल कांग्रेस ने 232, भारतीय जनता पार्टी ने 120 और जनता दल ने 59 सीटें हासिल कीं।