सामान्य ज्ञान
अमेरिका और दक्षिणी कनाडा के इलाकों से हर साल बड़ी संख्या में मोनार्क तितलियां उड़ कर मेक्सिको के मध्य में मिचोकान पहाडिय़ों तक पहुंचती हैं। बर्फीली ठंड से बचने के लिए आम तौर पर ये तितलियां यहां नवंबर से मार्च के दौरान रहती हैं। हजारों मील लंबी दूरी को तय करने में भटकने का खतरा भी रहता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इन तितलियों में एक विशेष प्रकार की क्षमता होती है जिससे ये पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और सूर्य की मदद से अपना रास्ता खोज लेती हैं। नेविगेशन के उनके इस खास तंत्र को सौर कंपास के नाम से भी जाना जाता है।
अब तक केवल यही माना जाता रहा है कि इनके मस्तिष्क में सौर कंपास की सुविधा होती है जिससे ये रास्ता तलाश लेती हैं, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि ये तब भी दूरियां नाप लेती हैं जब आकाश में बादल छाए होते हैं। यह दिखाता है कि इनकी उड़ान की निर्भरता सिर्फ सूर्य पर नहीं बल्कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र पर भी होती हैं। मैसाचुसेट्स के जीवविज्ञानियों का कहना है कि उन्हें इस सिलसिले में प्रमाण मिले हैं। उनका अनुमान है कि इतना लंबा सफर तय करने वाले कीटों में मोनार्क तितलियां पहली हैं जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का नेविगेशन के लिए इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने मोनार्क तितली की दिशा संबंधी संवेदना को परखने के लिए उसे अलग अलग चुंबकीय क्षेत्रों में रखा। शुरुआत में वे सभी भूमध्यरेखा की तरफ मुड़ गईं लेकिन जब चुंबकीय क्षेत्र के झुकाव कोण को बदला गया तो वे उत्तर की तरफ मुड़ गईं। उन्होंने पाया कि उनका कंपास प्रकाश की उपस्थिति में काम करता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक तितलियों के सिर पर लगे एंटेना में प्रकाश के प्रति संवेदनशील मैग्नेटोसेंसर लगे होते हैं जिनसे यह संभव हो पाता है। विज्ञान की पत्रिका नेचर कम्यूनिकेशंस में छपी रिपोर्ट के अनुसार मोनार्क उन अन्य जीवों, कीटों और चिडिय़ों की सूची में शामिल हो गई हैं जिनके लिए माना जाता है कि वे चुंबकीय क्षेत्र की मदद से अपने लिए दिशा खोजते हैं, लेकिन इनके इस सिस्टम को मनुष्य से भारी खतरा भी हो सकता है। मनुष्य द्वारा पैदा की जाने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ध्वनियों के कारण इनके मैग्नेटिक कंपास की गतिविधि पर असर पड़ सकता है और वे अपना रास्ता भटक सकती हैं।