सामान्य ज्ञान
ब्रह्माण्ड का हरेक परमाणु अपने ह्रदय, जिसे नाभिक कहते हैं, के भीतर अकल्पनीय शक्तिशाली बैटरी संजोए रहता है। इस तरह की ऊर्जा जिसे अक्सर टाइप-1 ईंधन कहते हैं, पारंपरिक ऊर्जा यानी टाइप-0 ईंधन की तुलना में लाख गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है। इसे ही नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं। परमाणु ऊर्जा वह ऊर्जा है जिसे नियंत्रित (यानी, गैर-विस्फोटक) परमाणु अभिक्रिया से उत्पन्न किया जाता है। वाणिज्यिक संयंत्र वर्तमान में बिजली उत्पन्न करने के लिए परमाणु विखंडन अभिक्रिया का उपयोग करते हैं। नाभिकीय रिएक्टर से प्राप्त उष्मा पानी को गर्म करके भाप बनाने के काम आती है, जिसे फिर बिजली उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। नाभिकीय संलयन अभिक्रिया अपेक्षाकृत सुरक्षित होती है और विखंडन की अपेक्षा कम रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न करती है. ये अभिक्रियाएं संभावित रूप से व्यवहार्य दिखाई देती हैं, हालांकि तकनीकी तौर पर काफी मुश्किल हैं और इन्हें अभी भी ऐसे पैमाने पर निर्मित किया जाना है जहां एक कार्यात्मक बिजली संयंत्र में इनका इस्तेमाल किया जा सके। संलयन ऊर्जा 1950 के बाद से, गहन सैद्धांतिक और प्रायोगिक जांच से गुजऱ रही है।
2009 में, दुनिया की बिजली का 15 प्रतिशत परमाणु ऊर्जा से प्राप्त हुआ। इसके अलावा, परमाणु प्रणोदन का उपयोग करने वाले 150 से अधिक नौसेना पोतों का निर्माण किया गया है।
भारत में हम 150 गीगावाट कुल बिजली उत्पादन में से 5 हजार मेगावाट भी नाभिकीय ऊर्जा से पैदा नहीं कर पा रहे हैं। ज्यादातर उत्पादन तो कोयले से हो रहा है। ऊर्जा के हरित स्रोत सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा स्थायी नहीं हैं। ये मौसम और सूर्यातप पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। वहीं नाभिकीय ऊर्जा अपेक्षाकृत स्वच्छ और विश्वसनीय ऊर्जा का जबरदस्त स्रोत है। आज 29 देश 441 नाभिकीय संयंत्रों का संचालन कर रहे हैं, जिसकी कुल क्षमता 375 मेगावाट है। इस उद्योग को अब 14 हजार से ज्यादा नाभिकीय वर्षों का अनुभव है। कुल 58.6 गीगावाट की और 60 इकाइयां निर्माणाधीन हैं।