विचार / लेख
गीता यथार्थ
मंदिर, कीर्तन औरतों के लिए सिर्फ अंधविश्वास ही नहीं, आजादी की जगह भी हैं..!
महिलाएं ज्यादा अंधविश्वासी होती है!?
क्या सच में ऐसा है?
अगर है तो अंधविश्वास और शिक्षा की कमी से इसको समझिए..!
राजस्थान में तो कई बार ये खबरें आती है कि अकेली घर से कहीं जाने को निकली तो वापिस ही नहीं पहुंच पाई..!
क्योंकि घर से कभी निकली ही नहीं तो घर वापसी के रास्तों से कोई वास्ता ही नहीं पड़ा.!
दूसरा पहलू ये भी है कि मंदिर, कीर्तन औरतों के लिए सिर्फ अंधविश्वास ही नहीं, आजादी की जगह भी हैं.
घर से कभी किसी रिश्तेदार के घर, शहर का बाजार या दूसरे शहर सहेली के घर कभी नहीं गई..! लड़कियों का ग्रुप बनाकर कहीं नहीं गई..! आस पड़ोस की औरतें इकठ्ठा होकर कहीं नहीं निकली सुबह से शाम तक..!
शादी के बाद, ना शादी के पहले..!
वे अकेली कहीं नहीं जाने दी गई।
मंदिर और धार्मिक जगहें वे जगहें रही हैं औरतों के जीवन में जहां वे अकेली या आस-पास की औरतों के साथ निकल गई..! भगवान के नाम पर उनसे सवाल कम होते है,
दीवारों में बंधी औरतें वहां खुली हवा में सांस लेने भी जाती हैं,
सत्संग में बैठी सब औरतें अंधविश्वास के चलते वहां बैठी हो ये ज़रूरी नहीं..!
अब बात आती है कि वो कौन सी इकोनॉमिक क्लास के लोग हैं जो ऐसे मर जा रहे हैं? बार बार एक ही तरीके से..!
एलिट और अपर मिडिल क्लास के लोग मरेंगे तो व्यवस्थाएं सुधर जायेगी..., लोअर और लोअर मिडल और गांव के लोग जब मरेंगे तो मरते रहेंगे..!!