विचार / लेख
![नेपाल : ओली फिर से प्रधानमंत्री बनने की ओर, अल्पमत में आए प्रचंड नेपाल : ओली फिर से प्रधानमंत्री बनने की ओर, अल्पमत में आए प्रचंड](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/17201689215e480b0-39bf-11ef-b1f1-0d4e9d529660.jpg.jpg)
भारत के पड़ोसी देश नेपाल में नए राजनीतिक समीकरण बनने से मौजूदा प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड की कुर्सी ख़तरे में पड़ गई है।
पुष्प कमल दहाल प्रचंड की सरकार पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी सीपीएनयूएमएल के समर्थन से चल रही थी।
ओली के पार्टी ने प्रचंड से समर्थन वापस ले लिया है और नेपाली कांग्रेस से नया गठबंधन बना लिया है।
सीपीएनयूएमएल के उप महासचिव और नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली कहा है कि नेपाली कांग्रेस से समझौते के कारण हैं।
उन्होंने कारण बताते हुए कहा, ''प्रधानमंत्री नेपाली कांग्रेस से एक महीने से राष्ट्रीय एकजुटता की सरकार बनाने के लिए बात कर रहे थे। इसी वजह से अविश्वास का माहौल बना। ऐसे में हम नेपाल कांग्रेस से गठबंधन करने पर मजबूर हुए। जब नेपाली कांग्रेस ने प्रचंड के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया, तब हमने बातचीत शुरू की थी।’
नेपाल की 275 सदस्यों वाली प्रतिनिधि सभा में प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के महज़ 32 सदस्य हैं।
प्रचंड को केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का समर्थन मिला था। ओली की पार्टी के पास 78 सीटें हैं।
प्रचंड ने 2022 के नवंबर महीने में हुए आम चुनाव नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था। नेपाली कांग्रेस चुनाव में 89 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
ओली की पार्टी के समर्थन वापस लेने के बाद प्रचंड के पास अब बहुमत नहीं है। ऐसे में उनको इस्तीफ़ा देना पड़ेगा।
प्रचंड सरकार में ओली की पार्टी से कुल आठ मंत्री है और सभी को इस्तीफ़ा देने के लिए कहा गया है।
पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के बीच सोमवार को एक राजनीतिक समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत पहले ओली पीएम बनेंगे और फिर नेपाली कांग्रेस से शेर बहादुर देऊबा।
नेपाल में संविधान के जानकारों का कहना है कि सीपीएनयूएमएल के सरकार से समर्थन वापसी का पत्र सचिवालय को सौंपे जाने के एक महीने के भीतर नई सरकार का गठन किया जाएगा।
हालाँकि नेपाल में नई सरकार और भी जल्दी बन सकती है लेकिन इसके लिए प्रचंड को इस्तीफ़ा देना होगा। लेकिन प्रचंड ने इस्तीफ़ा देने से इनकार कर दिया है और संसद में विश्वासमत का सामना करने के लिए कहा है।
अल्पमत में प्रचंड की सरकार
पुष्प कमल दाहाल प्रचंड ने संसद में विश्वासमत हासिल करने के लिए संविधान में दी गई अधिकतम समय सीमा का इंतज़ार किए बिना ही विश्वासमत परीक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
नेपाल में संविधान के जानकार और नेपाली कांग्रेस के पूर्व सदस्य राधेश्याम अधिकारी कहते हैं, ‘यूएमएल की ओर से समर्थन वापस लेने का नोटिस दिए जाने के बाद, प्रधानमंत्री की 30 दिनों की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। हालाँकि वो इससे पहले भी इस्तीफ़ा दे सकते हैं क्योंकि इस तरह निष्क्रिय बने रहना अच्छा नहीं है।’
नेपाली कांग्रेस और सीपीएनयूएमएल के बीच हुई इस साझेदारी पर राजनीतिक गलियारों में लोगों की राय बँटी हुई है।
इसकी वजह है कि ये दोनों राजनीतिक दल एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हुआ करते थे। मगर अब दोनों एक साथ आ गए हैं।
नेपाल की संसद में नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है और सीपीएनयूएमएल दूसरे नंबर की पार्टी है।
नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ प्रकाश शरण महत ने कहा कि शुरुआती दौर में सीपीएनयूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली सरकार का नेतृत्व करेंगे।
महत ने जानकारी दी है कि दूसरे चरण में चुनाव से पहले की सरकार शेर बहादुर देऊबा के नेतृत्व में बनाई जाएगी।
उन्होंने कहा, ‘दो बड़े राजनीतिक दलों ने एक साथ सरकार बनाने का फ़ैसला किया है तो प्रधानमंत्री को कुर्सी से हट जाना चाहिए। यही सही रहेगा। कई दूसरे राजनीतिक दल भी इस नए गठबंधन के प्रति अपना समर्थन जता चुके हैं। हमने भी प्रचंड से इस्तीफ़ा देने के लिए कहा है।’
‘राजनीतिक वैधता ख़त्म’
माओवादियों के कऱीबी माने जाने वाले एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि भले ही संविधान ने प्रचंड को एक महीने तक और प्रधानमंत्री बने रहने की सुविधा दी है, लेकिन उनका उस पद पर बने रहना उचित नहीं है।
माओवादी सांसद रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राम नारायण बिदारी का कहना है, ‘यदि आप मेरी व्यक्तिगत राय पूछते हैं, तो बेहतर होगा कि प्रधानमंत्री पहले इस्तीफ़ा दे दें क्योंकि उनके पास विश्वासमत हासिल करने का कोई आधार नहीं है।’
नेपाली कांग्रेस के एक पूर्व सदस्य और संवैधानिक अधिकारी ने बीबीसी से कहा है कि बहुमत खोने के बाद प्रधानमंत्री की राजनीतिक वैधता समाप्त हो जाएगी।
उनके मुताबिक़, ‘संसद में सबसे बड़ी पार्टी और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के यह कहने के बाद कि हम ख़ुद सरकार बनाएंगे, इस सरकार की राजनीतिक वैधता समाप्त हो गई है।’
नेपाल में बनते बिगड़ते राजनीतिक समीकरण
2022 के चुनाव के बाद ऐसा लग रहा था कि नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ही प्रधानमंत्री रहेंगे लेकिन प्रचंड ने ऐन मौक़े पर पाला बदल लिया था। प्रचंड चाहते थे कि नेपाली कांग्रेस उन्हें प्रधानमंत्री बनाए लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई थी। जून 2021 में प्रचंड के समर्थन से ही देउबा प्रधानमंत्री बने थे।
नवंबर 2017 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल यानी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनाइटेड मार्क्सवादी लेनिनवादी और प्रचंड की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) मिलकर चुनाव लड़ी थी।
फऱवरी 2018 में ओली पीएम बने और सत्ता में आने के कुछ महीने बाद प्रचंड और ओली की पार्टी ने आपस में विलय कर लिया था। विलय के बाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनी। संसद में इनका दो तिहाई बहुमत था। लेकिन ओली और प्रचंड के बीच की यह एकता लंबे समय तक नहीं रही थी।
जब पार्टी का विलय हुआ था, तो यह बात हुई थी कि ओली ढाई साल प्रधानमंत्री रहेंगे और ढाई साल प्रचंड। लेकिन ढाई साल होने के बाद ओली ने कुर्सी छोडऩे से इनकार कर दिया था।
इसके बाद से प्रचंड बनाम ओली का खेल शुरू हुआ था और 2021 में संसद भंग कर दी गई। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था और संसद भंग करने के फ़ैसले को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इसी फ़ैसले के बाद शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बने थे।
लेकिन ओली और देऊबा के बीच हुए समझौते में भी यही डर है कि कहीं ओली देऊबा को मौक़ा ना दें।
प्रचंड पहली बार जब 2008 में नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने पहला विदेशी दौरा चीन का किया था। नेपाल में अब तक परंपरा थी कि प्रधानमंत्री शपथ लेने के बाद पहला विदेशी दौरा भारत का करता था। प्रचंड ने यह परंपरा तोड़ी थी और इसे उनके चीन के कऱीब होने से जोड़ा गया था। (bbc.com)