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मोहनजोदड़ो के लोगों को चारकोल का ज्ञान था
26-Jun-2020 12:21 PM
मोहनजोदड़ो के लोगों को चारकोल का ज्ञान था

मोहनजोदड़ो एक ऐसा नगर है जो शायद इतना पुराना है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते।  इतिहासकारों के अनुसार यह नगर 4000 से भी अधिक सालों पहले बसा होगा लेकिन यहां की कला और यहां के लोग जिन चीजों का इस्तेमाल करते थे, उसे देखकर आश्चर्य होता है।   पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित  माण्टगोमरी जिले  में रावी नदी के बाएं तट पर हड़प्पा नामक पुरास्थल है जबकि पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत के  लरकाना जिले  में सिन्धु नदी के दाहिने किनारे पर मोहनजोदड़ो नामक नगर करीब 5 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है।

इतिहासकारों ने विभिन्न शोध करने के बाद यह सिद्ध किया है कि मोहनजोदड़ो और कुछ नहीं बल्कि हड़प्पा सभ्यता का ही एक नगर था। यहां इसी सभ्यता के लोग रहा करते थे। हड़प्पा सभ्यता जो कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता मानी गई है, यह भारत से बाहर भी कई दिशाओं में फैली हुई थी। 19वीं सदी से लेकर अब तक इस सभ्यता के कम से कम एक हजार स्थानों का पता लगाया गया है। इन्हीं में से एक है मोहनजोदड़ो,  थ्यों के अनुसार पहली बार चाल्र्स मेसन ने वर्ष 1842 में हड़प्पा सभ्यता को खोजा था। इसके बाद दया राम साहनी ने 1921 में हड़प्पा की आधिकारिक खोज की थी तथा इसमें एक अन्य पुरातत्वविद माधो स्वरूप वत्स ने उनका सहयोग किया था। लेकिन अपनी इस खोज के दौरान वे मोहनजोदड़ो नामक नगर के बेहद समीप होकर भी उसे खोज नहीं पाए थे। किंतु कुछ वर्षों के पश्चात राखालदास बनर्जी ने ऐसे ऐसे नगर को खोज निकाला, जिसका दृश्य देखकर वे स्वयं चकित रह गए। यह था मोहनजोदड़ो नगर, जो उनके अनुसार तकरीबन 200 हेक्टयर क्षेत्र में फैला था।

 मोहनजोदड़ो  कोई सामान्य नगर नहीं था, यहां के रहने वाले लोग शायद इतने बुद्धिमान थे कि उन्होंने हूबहू आज के नगरों जैसा पैमाना अपनाया हुआ था। इस नगर में बड़े बड़े घर, चौड़ी सडक़ें और बहुत सारे कुएं होने के प्रमाण मिलते हैं।  खोज के दौरान जल और मल निकासी के होने के प्रमाण भी पाए गए। इस नगर में ‘अन्नागार’ नामक एक बड़ी इमारत भी पाई गई, जो आज के समय में काफी नष्ट हो चुकी है लेकिन फिर भी अन्य इमारतों से काफी ऊंची है। नगर के आधुनिक होने का दावा करता एक ‘स्नानाघर’ भी पाया गया है। यह एक सार्वजनिक स्थान था जहां सभी आकर स्नान करते थे। इसे बनाने के लिए जिन ईंटों का इस्तेमाल किया गया है वह कोई आम ईंटें नहीं बल्कि वाटरप्रूफ ईंटें हैं। इसका निर्माण करते समय ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी। चारकोल की यह परत किसी भी हाल में जल को बाहर नहीं निकलने देती थी। इससे यह पता चलता है कि मोहनजोदड़ो के लोग चारकोल जैसे तत्व के बारे में भी जानते थे जिसे वैज्ञानिकों ने कई वर्षों बाद खोजा था।

 ोहनजोदड़ो की खुदाई में इस नगर की इमारतें, स्नानघर, मुद्रा, मुहर, बर्तन, मूर्तियां, फूलदान आदि अनेक वस्तुएं मिली हैं। इसके अलावा कपड़ों के टुकड़े के अवशेष, चांदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबें और लोहे की वस्तुएं मिली है। यहां से काला पड़ गया गेहूं, तांबे और कांसे के बर्तन, मुहरों के अलावा चौपड़ की गोटियां, दीये, माप तौल के पत्थर, तांबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी, खिलौने, दे पाट वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन और पत्थकर के औजार भी मिले हैं।इतना ही नहीं, यहां खेती और पशुपालन संबंधी कई अवशेष मिले हैं, जो यह साबित करते हैं कि यहां के लोगों ने हजारों वर्षों पहले ही खेती करना जान लिया था।

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