सामान्य ज्ञान
हेपेटाइटिस-सी लीवर में हुई सूजन को कहते हैं। यह हेपेटाइटिस-सी वाइरस की वजह से होता है। यह अक्यूट और क्रोनिक दो तरह का होता है। जिस शख्स की बॉडी में यह वाइरस जाता है उनमें लक्षण आने में औसतन 4-12 हफ्ते का समय लग ही जाता है। अक्यूट हेपेटाइटिस-सी का इन्फेक्शन छह महीनों से कम समय तक रहता है। लेकिन अगर क्रोनिक हो जाए तो इलाज लंबा चलता है।
डॉक्टर का कहना है कि कुछ लोगों में हेपेटाइटिस-सी का अधिक खतरा होता हैं। इनमें इंजेक्शन के जरिए ड्रग लेने लोग, एक ही सूई से दोबारा इंजेक्शन लेने पर, डोनेट किए गए अनसेफ ब्लड से, डायलिसिस के मरीजों, टैटू बनवाने वाले शामिल हैं। डॉक्टरों के अनुसार हेपेटाइटिस-सी से बचाव के लिए अभी तक कोई वैक्सीन या टीका नहीं बना है।
कसीदा
क़सीदा काव्य या शायरी का एक स्वरूप है, जो पूर्व इस्लामी अरब में विकसित हुआ था, तब से यह आज तक प्रचलित है। क़सीदे का प्रारम्भ प्राय: नसीब कही जाने वाली छोटी पंक्ति से होता है। शायरों मे क़ाफिय़ा की रचना कौशल प्रदर्शित करने और इसमें सहयोगी विषयों को अधिक से अधिक गूंथने की होड़ लगी होती है। अपनी शैली और भाषा के कारण ये शब्दकोश निर्माताओं के लिए विशेष दिलचस्पी के विषय होते हैं।
मान्यता है कि अरबी शायर इमरूल-क़ायस ने पहली बार इस युक्ति का प्रयोग किया था। इसके बाद लगभग सभी क़सीदाकारों ने उनका अनुकरण किया। इस परंपरागत प्रारंभ के बाद आता है राहिल , जिसमें शायर के घोड़े या ऊंट, रेगिस्तानी पशुओं, रेगिस्तानी घटनाओं और वहां के बद्दुओं के जीवन एंव युद्धों के विवरण और उपमान होते है। राहिल का उपसंहार फख़ या आत्म-प्रशंसा किया जा सकता है। मुख्य विषय मदीह या प्रशस्ति , जो अक्सर हिज से जुड़ा होता है, अंत मे आता है और यह स्वयं शायर की उसके क़बीले या अपने संरक्षक की प्रशंसा होती है।
क़सीदा शायरी लेखकों के लिए प्रारम्भ से ही महत्वपूर्ण रहा। क़सीदे को हमेशा से शायरी का सर्वोत्कृष्ट रूप और इस्लाम-पूर्व शासकों की धरोहर माना माता रहा है। शास्त्रीय रुझान वाले शायरों ने इस विधा को बनाए रखा और नियमों या बंधनों का पालन किया, लेकिन अरबों की बदली हुई परिस्थतियों ने उसे एक कृत्रिम परिपाटी बना दिया। इस प्रकार आठवीं शताब्दी के अंत तक क़सीदे का महत्व कम होने लगा। 10वीं शताब्दी में थोड़े समय के लिए अल-मुतानब्बी, जो अरबी भाषा के महानतम शायरों में से एक थे, उन्होंने उसे सफलतापूर्वक पुनर्जीवित किया और बद्दुओं ने उसे आज तक बनाए रखा है। 19 वीं शताब्दी तक फ़ारसी, तुर्की और उर्दू भाषाओं में भी क़सीदे लिखे गए।