सामान्य ज्ञान
कश्मीर में मुगलिया सल्तनत
24-Jul-2020 12:04 PM
16 अक्टूबर 1586 को मुग़ल सिपहसालार कासिम खान मीर ने चक शासक याक़ूब खान को हराकर कश्मीर पर मुग़लिया सल्तनत का परचम फ़हराया तो फिर अगले 361 सालों तक घाटी पर ग़ैर कश्मीरियों का शासन रहा- मुग़ल, अफग़ान, सिख, डोगरे.
अकबर से लेकर शाहजहां का समय कश्मीर में सुख और समृद्धि के साथ-साथ साम्प्रदायिक सद्भाव का था लेकिन औरंगजेब और उसके बाद के शासकों ने इस नीति को पलट दिया और हिन्दुओं के साथ-साथ शिया मुसलमानों के साथ भी भेदभाव की नीति अपनाई गई। मुग़ल वंश के पतन के साथ साथ कश्मीर पर उनका नियंत्रण भी समाप्त हो गया और 1753 में अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व में अफगानों ने कश्मीर पर कब्ज़ा कर लिया। अफगानों के अत्याचार की कथाएं आज तक कश्मीर में सुनी जा सकती हैं। अगले 67 सालों तक पांच अलग अलग गवर्नरों के राज में कश्मीर लूटा-खसोटा जाता रहा। अफगान शासन की एक बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें प्रशासनिक पदों पर स्थानीय मुसलमानों की जगह कश्मीर पंडितों को तरज़ीह दी गई। ट्रैवल्स इन कश्मीर ऐंड पंजाब में बैरन ह्यूगल लिखते हैं कि पठान गवर्नरों के राज में लगभग सभी व्यापारों और रोजग़ारों के सर्वोच्च पदों पर कश्मीरी ब्राह्मण पदासीन थे। संयोग ही है कि अफगान शासन के अंत के लिए भी अंतिम गवर्नर राजिम शाह के राजस्व विभाग के प्रमुख एक कश्मीरी पंडित बीरबल धर ही जिम्मेदार हैं, जिन्होंने सिख राजा रणजीत सिंह को कश्मीर आने का न्यौता दिया। अपने उत्तराधिकारी खडक़ सिंह के नेतृत्व में हरि सिंह नलवा सहित अपने सबसे क़ाबिल सरदारों के साथ तीस हज़ार की फौज रवाना की।
आजि़म खान अपने भाई जब्बार खान के भरोसे कश्मीर को छोडक़र काबुल भाग गया, इस तरह 15 जून 1819 को कश्मीर में सिख शासन की स्थापना हुई।