सामान्य ज्ञान

कांवर किसे कहा जाता है?
24-Jul-2020 12:05 PM
कांवर किसे कहा जाता है?

कहा जाता है कि सावन महीने में भगवान शिव कैलाश से उतरकर शिवालयों में विराजमान होते हैं और अपने भक्तों की फरियाद सुनते हैं। इस महीने देश भर के शिवालयों में कांवर धारण किए भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है। हालांकि कांवर यात्रा की परंपरा सदियों पुरानी है, लेकिन फिर भी कई लोगों के लिए ये रहस्य ही है कि आखिर ये लोग कौन हैं और ऐसा क्यों करत हैं। दरअसल कांवर शब्द संस्कृत के  कांवारथी  से बना है। यह एक तरह की बहंगी होती है जो बांस की फट्टी से बनाई जाती है।यह कांवर में तब तब्दील होती है जब इसके साथ वैदिन अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार इससे जोड़ा जाता है। शिवभक्त इसे फूलमाला, घंटी और घुंघरुओं से खूब सजाते हैं, जिसके बाद यह काफी आकर्षक हो जाती है।कहते हैं कि महान शिवभक्त लंकानरेश रावण पहला कांवर था। इसके अलावा मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी शिव को कांवर चढ़ाई थी। कांवरिया अपनी यात्रा के दौरान कड़े व्रत-नियमों का पालन करते हैं। वह इस दौरान हलचल भरी दुनिया से दूर वैराग्य सा जीवन बिताते हैं और ब्रह्मचर्य, शुद्ध विचार, सात्विक आहार और नैसर्गिक दिनचर्या का पालन करते हैं। कांवर और उसे लेकर चलने वाले कांवरियां कई तरह के होते हैं। 

सामान्य कांवर- सामान्य कांवरिए अपनी यात्रा के दौरान जहां चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। आराम करने के दौरान कांवर स्टैण्ड पर रखी जाती है, जिससे कांवर जमीन को न छू सके।
डाक कांवर- डाक कांवर यात्रा में भक्त को लगातार चलते रहना पड़ता है। वह यात्रा की शुरूआत से शिव के जलाभिषेक तक बगैर रुके लगातार चलता रहता है। इसके अलावा यह यात्रा एक निश्चित समय के भीतर तय करनी पड़ती है। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन क्रियाएं तक वर्जित होती हैं।

खड़ी कांवर- कुछ भक्त खड़ी कांवर लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवर लेकर चलने के अंदाज में हिलाते-डुलाते रहते हैं।
दांडी कांवर- ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। मतलब कांवर यात्रा की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेटकर नापते हुए पूरी करते हैं। यह बहुत मुश्किल होता है और इसमें करीब एक महीने तक का समय लग जाता है।

कांवरियों अंत में  शिवालय पहुंचकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। दरअसल कांवर यात्रा को जीवन यात्रा के प्रतीक स्वरूप समझा जा सकता है, जिसका उद्देश्य इस कठिन यात्रा को अनुशासन, सात्विकता और वैराग्य के साथ ईश्वर तक पहुंचना है।
 

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