सामान्य ज्ञान
खाण्डवप्रस्थ महाभारत प्रसिद्ध हस्तिनापुर के निकट स्थित एक प्राचीन नगर था। यह महाभारत काल से पूर्व पुरुरवा, आयु, नहुष तथा ययाति की राजधानी थी। कुरु की यह प्राचीन राजधानी बुधपुत्र के लोभ के कारण मुनियों द्वारा नष्ट कर दी गई थी।
युधिष्ठिर को जब प्रारम्भ में, द्यूत-क्रीड़ा से पूर्व, आधा राज्य मिला था तो धृतराष्ट्र ने पाण्डवों से खाण्डवप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाने तथा फिर से उस प्राचीन नगर को बसाने के लिए कहा था। खांडववन खाण्डवप्रस्थ के निकट ही स्थित था, जिसे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने अग्नि देव की प्रेरणा से भस्म कर दिया। खाण्डवप्रस्थ का उल्लेख अन्यत्र भी कई जगहों पर हुआ है। पंचविशब्राह्मण में राजा अभिप्रतारिन के पुरोहित द्वारा खाण्डवप्रस्थ में किए गए यज्ञ का उल्लेख है। अभिप्रतारिन जनमेजय का वंशज था।
जिस प्रकार पूर्व उद्धरणों से स्पष्ट है, खाण्डवप्रस्थ की स्थिति वर्तमान नई दिल्ली के निकट रही होगी। प्राचीन इन्द्रप्रस्थ पांडवों के पुराने कि़ले के निकट बसा हुआ था। खाण्डवप्रस्थ के स्थान पर पांडवों की इन्द्रप्रस्थ नामक नई राजधानी बनने के पश्चात अग्नि देव ने कृष्ण और अर्जुन की सहायता से खांडववन को भस्म कर दिया था। निश्चय ही इस वन में कुछ अनार्य जातियों- जैसे नाग और दानव लोगों का निवास था, जो पांडवों की नई राजधानी के लिए भय उपस्थित कर सकते थे। तक्षक नाग इसी वन में रहता था और यहीं मय दानव नामक महान यांत्रिक का निवास था, जो बाद में पांडवों का मित्र बन गया और जिसने इन्द्रप्रस्थ में युधिष्ठिर का अद्भुत सभाभवन बनाया। खांडववन-दाह का प्रसंग महाभारत, आदिपर्व में सविस्तार से वर्णित है। कहा जाता है कि मय दानव का घर वर्तमान मेरठ के निकट था और खांडववन का विस्तार मेरठ से दिल्ली तक, 45 मील (लगभग 72 कि.मी.) के लगभग था। महाभारत में जलते हुए खांडववन का बड़ा ही रोमांचकारी वर्णन है- खांडववन के जलते समय इंद्र ने उसकी रक्षा के लिए घोर वृष्टि की, किंतु अर्जुन और कृष्ण ने अपने शस्त्रास्त्रों की सहायता से उस