सामान्य ज्ञान

कलमकारी
26-Jul-2020 12:05 PM
कलमकारी

कलमकारी आंध्र प्रदेश की अत्यंत प्राचीन लोक कला है और जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह कलम की कारीगरी है। इसकी जड़े आंध्र के श्रीकलाहस्ति और मछलीपुरम नामक नगरों में हैं। श्रीकलाहस्ति में आज भी कलमकारी के लिये कलम का उपयोग होता है जबकि मछलीपुरम में ठप्पों का चलन है।

अन्य अनेक लोक कलाओं की तरह इस कला को भी स्थानीय मंदिरों का आश्रय प्राप्त हुआ। मानव आकृतियों और चित्रों में आज भी पुराण और रामायण के प्रसंगों को चित्रित किया जाता है। कलाकृतियों के किनारों को फूल पत्तियों के आकर्षक नमूनों से सजाया जाता है।

इस कला में आमतौर पर पूरा परिवार संलग्न रहता है। परिवार का मुखिया ही इन कलाकारों का गुरू और मालिक होता है। यह गुरू मुख्य चित्र को सफेद सूती कपड़े पर कलम से बनाकर कलमकारी का प्रारंभ करता है । इसके बाद परिवार के अन्य सदस्य इसमें रंग भरते हैं। इन रंगों को वेजेटेबल डाय या वनस्पति रंग कहा जाता है और इनमें रसायनों का प्रयोग नहीं होता। कपड़े पर आकृतियों को उभारने के लिए राल और गाय के दूध के मिश्रण में एक घंटा भिगोकर रखा जाता है और इस पर ख़मीरी गुड़ में पानी मिलाकर बांस की कलम से चित्र की रूपरेखा खींच दी जाती है। जहां पर रंग भरना है वहां फिटकरी का घोल लगा दिया जाता है। इसके बाद कपड़े एक मिश्रण में भिगोया जाता है जिसकी प्रतिक्रिया से चित्र के रंग उभर कर दिखाई देने लगते हैं। विभिन्न प्रकार के प्रभावों को उत्पन्न करने के लिए गोबर, बीज, फूल और पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।

 कलम कारी से चित्रित कपड़ों के परिधान, पर्दे, बिस्तर की चादरें, दीवार पर लगाने के चित्र से लेकर लैंपशेड तक सभीकुछ बनाया जा सकता है।   

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news