सामान्य ज्ञान
जिस तरह से चार साल में एक बार एक दिन जोड़ दिया जाता है, उसी तरह कभी-कभी एक सेकंड जोडऩे की जरूरत भी पड़ती है। लीप ईयर की ही तरह इसे लीप सेकंड कहा जाता है।
धरती 24 घंटे में अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करती है। इसी को एक दिन कहा जाता है, यानि 86 हजार 400 सेकंड। लेकिन अगर इस समय को सटीक रूप से नापा जाए तो दरअसल यह 86,400.002 सेकंड के बराबर है। हर दिन ये 0.002 सेकंड जमा होते रहते हैं और एक साल में करीब 2 मिली सेकंड जुड़ जाते हैं। इस तरह से करीब तीन साल में एक पूरा सेकंड बन जाता है। हालांकि यह इतना छोटा वक्त है कि कई बार इसे पूरा होने में काफी लंबा वक्त लगता है।
वैज्ञानिकों के लिए समस्या यह है कि यह एक सेकंड पूरा कब होगा, इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। इसकी वजह यह है कि धरती के परिक्रमण की गति धीमी होती जा रही है।ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। 1972 से ही वैज्ञानिक एक एक सेकंड जोड़ते रहे हैं। इस बार इतिहास में 26वीं बार घडिय़ों के साथ फेर बदल किया जाएगा। पिछली बार 30 जून 2012 में एक सेकंड जोड़ा गया था। घडिय़ों को रोकने का काम या तो 31 दिसंबर को किया जाता है या 30 जून को। रात को बारह बजने से ठीक पहले ऐसा किया जाएगा, यानि 23.59.59 के बाद 00.00.00 नहीं, बल्कि 23.59.60 देखने को मिलेगा। वर्ष 2012 में जब लीप सेकंड जोड़ा गया तो मोजिला, लिंक्डइन और स्टंबल अपोन जैसी कई साइटें क्रैश हो गईं क्योंकि उनके सॉफ्टवेयर इस बदलाव के लिए तैयार नहीं थे। फ्रांस स्थित इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन सर्विस लीप सेकंड को जोडऩे का काम करेगी। जिस तरह से गर्मियों और सर्दियों में पश्चिमी देशों में घडिय़ां एक घंटा आगे और पीछे कर दी जाती हैं, उसी तरह दुनिया भर की घडिय़ों में यह बदलाव होगा।