सामान्य ज्ञान
तवांग मठ भारत का सबसे बड़ा मठ है और पोटाला पैलेस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मठ। यह अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में है जो तवांग नदी की घाटी में स्थित है। यह 17 वीं सदी के दौरान मेरा लामा द्वारा स्थापित किया गया था। यह मठ पांडुलिपियों, पुस्तकों और अन्य कलाकृतियों के अद्भुत संग्रह के कारण भी प्रसिद्ध है।
हालांकि आशंका व्यस्त की जा रही है कि एशिया का यह सबसे बड़ा बौद्ध मठ भूस्खलन से पूरी तरह तबाह हो सकता है। बीते साल हुई बारिश की वजह से तवांग मठ के नीचे की जमीन गायब हो चुकी है। 300 साल पहले बने इस मठ को बौद्ध भिक्षु अंतरराष्ट्रीय धरोहर मानते हैं।
अरुणाचल प्रदेश का तवांग मठ 1680 में मेराक लामा लोद्रे ग्यास्तो ने बनवाया। यह बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा मठ हैं जिसमें 570 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु रहते हैं। समुद्र तल से 10 हजार फुट की ऊंचाई पर तवांग चू घाटी में बने इस मठ में दुनिया भर के बौद्ध भिक्षु और पर्यटक आते हैं। तवांग मठ में दलाई लामा भी आए।
इस मठ को गालडेन नमग्याल लहात्से के नाम से भी जाना जाता है। इस मठ का मुख्य आकर्षण यहां स्थित भगवान बुद्ध की 28 फीट ऊंची प्रतिमा और प्रभावशाली तीन तल्ला सदन है। मठ में एक विशाल पुस्तकालय भी है, जिसमें प्रचीन पुस्तक और पांडुलिपियों का बेहतरीन संकलन है। ऐसा माना जाता है कि ये पांडुलिपि 17वीं शताब्दी की है। एक मान्यता के अनुसार मठ बनाने के लिए इस स्थान का चयन एक काल्पनिक घोड़े ने किया था। तब मठ के संस्थापक मेराक लामा को मठ बनाने के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने में काफी कठिनाई हो रही थी। ‘ता’ का अर्थ होता है- घोड़ा और ‘वांग’ का अर्थ होता है-आशीर्वाद दिया हुआ। चूंकि इस स्थान को दिव्य घोड़े ने अपना आशीर्वाद दिया था, इस लिए इसका नाम तवांग पड़ा।