सामान्य ज्ञान
नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के पीछे के भाग में स्थित मुगल उद्यान अपने किस्म का अकेला ऐसा उद्यान है, जहां विश्वभर के रंग-बिरंगे फूलों की छटा देखने को मिलती है। यहां विविध प्रकार के फूलों और फलों के पेड़ों का संग्रह है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने इस उद्यान को जन साधारण के दर्शन हेतु खुलवाया था। इस उद्यान को देखने वालों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है।
इसकी अभिकल्पना ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस ने लेडी हार्डिग के आदेश पर की थी। 13 एकड़ में फैले इस उद्यान में ब्रिटिश शैली के संग-संग औपचारिक मुगल शैली का मिश्रण दिखाई देता है। यह उद्यान चार भागों में बंटा हुआ है, और चारों एक दूसरे से भिन्न एवं अनुपम हैं। यहां कई छोटे-बड़े बगीचे हैं जैसे पर्ल गार्डन, बटरफ्लाई गार्डन और सकरुलर गार्डन, आदि। बटरफ्लाई गार्डन में फूलों के पौधों की बहुत सी पंक्तियां लगी हुई हैं। यह माना जाता है कि तितलियों को देखने के लिए यह जगह सर्वोत्तम है। मुगल उद्यान में अनेक प्रकार के फूल देखे जा सकते हैं जिसमें गुलाब, गेंदा, स्वीट विलियम आदि शामिल हैं। इस बाग में फूलों के साथ-साथ जड़ी-बूटियां और औषधियां भी उगाई जाती हैं। इनके लिये एक अलग भाग बना हुआ है, जिसे औषधि उद्यान कहते हैं। मुगल उद्यान वसंत ऋतु में एक माह के लिये पर्यटकों के लिए खुलता है।
1911 में जब अंग्रेजों ने तय किया कि राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले आएं तो उन्होंने दिल्ली डिजाइन करने के लिए अंग्रेज वास्तुकार एडवर्ड लुटियन्स को इंग्लैंड से भारत बुलाया। उन्होंने दिल्ली आकार वायसराय हाउस के लिए रायसीना की पहाड़ी का चयन किया। उसे काटकर वायसराय हाउस (जिसे अब राष्ट्रपति भवन कहते हैं), का जो नक्शा तैयार किया उसमें भवन के साथ-साथ बाग-बगीचा तो था, लेकिन वह ब्रिटिश शैली के थे। तत्कालीन वाइररॉय लॉर्ड हार्डिंग की पत्नी लेडी हार्डिंग ने तब यहां भारतीय शैली के उद्यानों का प्रस्ताव दिया और फिर मुगल उद्यान की परिकल्पना भी की। उन्होंने श्रीनगर में निशात बाग और शालीमार बाग देखे थे, जो उन्हें बहुत भाये। बस तभी से मुगल उद्यान शैली उनके मन में बैठ गई थी। वह इन बागों से इस तरह रोमांचित हो उठी थीं कि वायसराय हाउस में मुगल गार्डन को साकार होते देखना चाहती थीं। उन्होंने लुटियन्स के सामने अपनी बात रखी। वास्तुकार लुटियन्स लेडी हार्डिंग का बह्तु सम्मान करते थे। इसलिए वायसराय हाउस में मुगल उद्यान की उनकी परिकल्पना को साकार रूप देने को मना नहीं कर सके। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत उद्यानों, ताजमहल के उद्यान तथा पारसी और भारतीय चित्रकारियों से प्रेरित होकर इन उद्यानों का खाका तैयार किया। सन 1928 में लॉर्ड इर्विन ने इस वायसराय हाउस में शानोशौकत के साथ कदम रखा। उन्हें लुटियन्स द्वारा डिजाइन किया गया भवन और परिकल्पित मुगल उद्यान बहुत भाया। तभी से इस उद्यान को मुगल उद्यान नाम मिला।