सामान्य ज्ञान
दरभा एक प्रकार की उष्णकटिबंधीय घास है। हिन्दू संस्कृति में इस दरभा घास को दूर्वा (दूब) के नाम से जाना जाता है। मारवाडी भाषा में इसे ध्रो कहा जाता हैँ। हिंदी में इसे दूब, दुबडा, संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली, मराठी में पाढरी दूर्वा, काली दूर्वा, गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो, अंग्रेजी में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन, बंगाली में नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामों से जाना जाता है।
दरभा घास (डेस्मोटाचा बिपिन्नाटा) वैदिक शास्त्रों में पवित्र सामग्री के तौर पर माना जाता है और धार्मिक अनुष्ठानों में इसे शुद्ध करने वाला पदार्थ बताया गया है। ग्रहण के दौरान, दरभा घास को खाद्य वस्तुओं में खमीर उठाने के लिए डाला जाता है और ग्रहण के समाप्त होने के बाद उसे हटा लिया जाता था। वैदिक काल में दरभा घास का प्रयोग कीटाणुनाशक के तौर पर किया जाता था क्योंकि यह एकमात्र ऐसी घास थी जो ग्रहण के दौरान कीटाणुनाशक के रूप में इस्तेमाल की जा सकता थी। ग्रहण के दौरान नीले और पराबैगनी विकिरण जो अपने प्राकृतिक असंक्रमित प्रकृति के लिए जाने जाते हैं, पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते। जिसके कारण ग्रहण के दौरान खाद्य उत्पादों में अनियंत्रित सूक्ष्म जीवों का विकास हो जाता है।
6 मार्च 2015 को तंजावुर के शस्त्र विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने उष्णकटिबंधीय घास दरभा को इको- फ्रेंडली भोजन संरक्षक बताया। घास दरभा पर यह अध्ययन संयुक्त रूप से सेंटर फॉर नैनोटेक्नोलॉजी एंड एडवांस्ड बायोमटेरियल्स और शस्त्र विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च इन इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन के क्रमश: डॉ. पी मीरा और डॉ. पी बृन्दा की देखरेख में किया गया था। दरभा घास के खमीर बनाने के गुण की खोज के क्रम में शोधकर्ताओं ने दरभा घास, लेमन ग्रास, बरमुडा ग्रास और बैंम्बू ग्रास समेत घास के पांच उष्णकटिबंधीय प्रजातियों को गाय के दही में रखा और पाया कि यह आसानी से खमीर में बदल सकता है।
दरभा घास के इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोपी ने जबरदस्त नैनो- पैटर्न और वर्गीकृत या माइक्रो संरचना दिखाया जबकि यह बात अन्य घासों में नहीं थी। वर्गीकृत सतह सुविधाओं (हिरैरकल सरफेस फीचर्स) में दरभा घास अकेला था जिसने बड़ी भारी संख्या में बैक्टिरिया को आकर्षित करते पाया गया. ये बैक्टिरिया दही के जमने के लिए जिम्मेदार हैं।
दरभा का इस्तेमाल हानिकारक रसायनिक परिरक्षकों (प्रिजर्वेटिव्स) के स्थान पर प्राकृतिक खाद्य परिरक्षक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा दरभा घास पर वर्गीकृत नैनो पैटन्र्स स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अनुप्रयोग खोज सकते हैं जहां जीवाणुहीन स्थितियां जरूरी होती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार- समुद्र मंथन के दौरान एक समय जब देवता और दानव थकने लगे तो भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को अपनी जंघा पर रखकर समुद्र मंथन करने लगे। मंदराचल पर्वत के घर्षण से भगवान के जो रोम टूट कर समुद्र में गिरे थे, वही जब किनारे आकर लगे तो दूब के रूप में परिणित हो गये। अमृत निकलने के बाद अमृत कलश को सर्वप्रथम इसी दूब पर रखा गया था, जिसके फलस्वरूप यह दूब भी अमृत तुल्य होकर अमर हो गयी। दूब घास विष्णु का ही रोम है, अत: सभी देवताओं में यह पूजित हुई और अग्र पूजा के अधिकारी भगवान गणेश को अति प्रिय हुई। तभी से पूजा में दूर्वा का प्रयोग अनिवार्य हो गया।