सामान्य ज्ञान

गोबी मरुस्थल
25-Apr-2021 1:37 PM
गोबी मरुस्थल

गोबी मरुस्थल एशिया महाद्वीप में मंगोलिया के अधिकांश भाग पर फैला हुआ है। यह मरुस्थल संसार के सबसे मरुस्थलों में से एक है।  गोबी  एक मंगोलियन शब्द है, जिसका अर्थ होता है- जलरहित स्थान । आजकल गोबी मरूस्थल एक रेगिस्तान है, लेकिन प्राचीनकाल में यह ऐसा नहीं था। इस क्षेत्र के बीच-बीच में समृद्धशाली भारतीय बस्तियां बसी हुई थीं। गोबी मरुस्थल पश्चिम में पामीर की पूर्वी पहाडिय़ों से लेकर पूर्व में खिंगन पर्वतमालाओं तक तथा उत्तर में अल्ताई, खंगाई तथा याब्लोनोई पर्वतमालाओं से लेकर दक्षिण में अल्ताइन तथा नानशान पहाडिय़ों तक फैला है। इस मरुस्थल का पश्चिमी भाग तारिम बेसिन का ही एक हिस्सा है।
यह संसार का पांचवां बड़ा और एशिया का सबसे विशाल रेगिस्तान है। सहारा रेगिस्तान की भांति ही इस रेगिस्तान को भी तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-ताकला माकन रेगिस्तान, अलशान रेगिस्तान और मुअस या ओर्डिस रेगिस्तान।
गोबी रेगिस्तान का अधिकतर भाग रेतीला न होकर चट्टानी है। यहां रेगिस्तान की जलवायु में तेजी से बदलाव होता है। यहां न केवल सालभर तापमान बहुत जल्दी-जल्दी बदलता है, बल्कि 24 घंटों में ही तापमान में व्यापक परिवर्तन भी आ जाता है। गोबी रेगिस्तान में वर्षा की औसत मात्रा 50 से 100 मि.मी. है। यहां अधिकतर वर्षा गर्मी के मौसम में ही होती है। रेगिस्तान में अधिकतर नदियां बारिश के मौसम में ही बहती हैं। इसलिए केवल वर्षा ऋतुु में ही नदी में पानी रहता है। निकटवर्ती पर्वतों से जल धाराएं रेगिस्तान की शुष्क भूमि में समा जाती हैं। यहां काष्ठीय व सूखा प्रतिरोधी गुणों वाले सैकसोल नामक पौधे बहुतायत में मिलते हैं। लगभग पत्ति विहीन यह पौधा ऐसे क्षेत्रों में भी उग आता है, जहां की रेत अस्थिर होती है। अपने इस विशेष गुण के कारण यह पौधा भू-क्षरण को रोकने में सहायक होता है। गोबी रेगिस्तान  बेकिटरियन ऊंट , जिनके दो कूबड होते हैं, का आवास स्थल माना जाता है। कुछ जंगली किस्म के गधे भी यहां पाए जाते हैं। संसार के रेगिस्तान के विशेष भालू इसी रेगिस्तान में पाए जाते हैं। इन भालूओं की प्रजाति  मज़ालाई अथवा गोबी अब लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। इसके अतिरिक्त यहां जंगली घोड़े, गिलहरी व छोटे कद के बारहसिंगे भी पाए जाते हैं।
संसार के बड़े मरुस्थलों में से एक गोबी का मरुस्थल, जिसका विस्तार उत्तर से दक्षिण में लगभग 600 मील तथा पूर्व से पश्चिम में लगभग 1000 मील है, तिब्बत तथा अल्ताई पर्वतमालाओं के बीच छिछले गर्त के रूप में विद्यमान है। इसकी प्राकृतिक भू-रचना ढालू मैदान के समान है, जिसके चारों तरफ़ पर्वतीय ऊंचाइयां हैं।  
इस मरुस्थल के पूर्वी भाग में जहां दक्षिण-पश्चिम मानसून से कुछ वर्षा हो जाती है, वहां थोड़ी खेतीबाड़ी होती है, एवं भेड़, बकरियां तथा अन्य पशु पाले जाते हैं।  गोबी मरुस्थल में  सर औरेल स्टोन द्वारा पुरातात्विक खुदाई में बौद्ध स्तूपों, विहारों, बौद्ध एवं हिन्दू देवताओं की मूर्तियां बहुत सी पांडुलिपियां तथा भारतीय भाषाओं एवं वर्णाक्षरों में बहुत से आलेखों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।   7वीं शताब्दी में सुप्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग इसी गोबी मरूस्थल के रास्ते से ही भारत में आया और फिर चीन वापस गया। उसे इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म और भारतीय संस्कृति का प्राधान्य दिखाई दिया।
 

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