सामान्य ज्ञान
नागकेशर या शिव कमल या शिवलिंग फूल को तमिल में नागलिंगम, बंगाली में नागकेशर, कन्नड़ में नागलिंग पुष्प और तेलुगु में नागमल्ली तथा मल्लिकार्जुन पुष्प के नाम से जाना जाता है। हिन्दूओं के बीच इस फूल को अत्यन्त पावन माना हैं और प्राय: शिव मन्दिरों में इसके वृक्षों को लगाया जाता है।
प्रकृति ने मनुष्य को अनेक विचित्र देन दिए हैं जिनमें से एक है नाग के फनों से ढंके शिवलिंग की आकृति वाला फूल नागकेशर! यह शिव कमल का पेड़ तटीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक एक वृक्ष होता है । शिव कमल का वनस्पतीय नाम Couroupita guianensis है तथा इस सामान्यत:Ayahuma Cannonball Tree के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद की नजर से नागकेशर पोषक , सुंदरता निखारने वाला ओर कीटाणुनाशक माना गया है । अध्यात्म के क्षेत्र मैं नागकेशर को उच्च स्थान प्राप्त है, शिवजी को यह बहुत पसंद है। मंत्र तंत्र साधना में इसका काफी उपयोग है।
नक्षत्र
चंद्रमा के पथ में पडऩे वाले तारों का समूह जो सौर जगत के भीतर नहीं है। इनकी कुल संख्या 27 है। पुराणों में इन्हें दक्ष प्रजापति की पुत्रियां बताया गया है जो सभी सोम अर्थात चंद्रमा को ब्याही गईं थीं। इनमें से चंद्रमा को रोहिणी सबसे प्रिय थी जिसके कारण चंद्रमा को शापग्रस्त भी होना पड़ा था। नक्षत्रों का महत्व वैदिक काल से ही रहा है।
शतपथ ब्राह्मण में नक्षत्र शब्द का अर्थ न + क्षत्र अर्थात शक्तिहीन बताया गया है। निरूक्त में इसकी उत्पत्ति नक्ष अर्थात प्राप्त करना धातु से मानी है। नक्त अर्थात रात्रि और त्र अर्थात संरक्षक । लाट्यायन और निदान सूत्र में महीने में 27 दिन माने गए हैं। 12 महीने का एक वर्ष है। एक वर्ष में 324 दिन माने गए हैं। नक्षत्र वर्ष में एक महीना और जुड़ जाने से 354 दिन होते हैं। निदान सूत्र ने सूर्य वर्ष में 360 दिन गिने हैं। इसका कारण सूर्य का प्रत्येक नक्षत्र के लिए 13 दिन बिताना है। इस तरह 13 & 27 = 360 होते हैं। चंद्रमा का नक्षत्रों से मिलन नक्षत्र योग और ज्योतिष को नक्षत्र विद्या कहा जाता है। अयोग्य ज्योतिषी को वराहमिहिर ने नक्षत्र सूचक कहा है।
भारतीय हिन्दू संस्कृति में नक्षत्रों की गणना आदिकाल से की जाती है। अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण के अनुसार आकाश मंडल में 27 नक्षत्र और अभिजित को मिलाकर कुल 28 नक्षत्र हैं। वैदिक साहित्य विशेष रूप से ऋग्वेद में सभी दिन - रात एवं मुहूर्त को शुभ माना जाता है। वाजसनेय संहिता का भी मानना है कि समस्त काल उस विराट पुरुष से ही उत्पन्न हुए हैं, इसीलिए सभी काल पवित्र हैं, वैदिक ज्योतिष नक्षत्रों पर आधारित हैं। ऋग्वेद में नक्षत्र उन लोकों को कहा गया है, जिसका क्षय नहीं होता। यजुर्वेद में नक्षत्रों को चंद्र की अप्सराएं तथा ईश्वर का रूप व अलंकार कहा गया है। तैत्तरीय ब्राह्मण इन्हें देवताओं का गृह मानता है। वास्तविकता तो यह है कि वैदिक साहित्य में सभी नक्षत्र शुभत्व के प्रतीक हैं।
नक्षत्र का सिद्धांत भारतीय वैदिक ज्योतिष में पाया जाता है। यह पद्धति संसार की अन्य प्रचलित ज्योतिष पद्धतियों से अधिक सटीक व अचूक मानी जाती है। आकाश में चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा पर चलता हुआ 27.3 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है। इस प्रकार एक मासिक चक्र में आकाश में जिन मुख्य सितारों के समूहों के बीच से चन्द्रमा गुजरता है, चन्द्रमा व सितारों के समूह के उसी संयोग को नक्षत्र कहा जाता है। चन्द्रमा की 360? की एक परिक्रमा के पथ पर लगभग 27 विभिन्न तारा-समूह बनते हैं, आकाश में तारों के यही विभाजित समूह नक्षत्र या तारामंडल के नाम से जाने जाते हैं।
एक राशि में 2.25 नक्षत्र आया है, इसीलिए एक नक्षत्र को 4 चरणों में बाँटा गया है और एक राशि को 9 चरण प्राप्त हुए हैं। 12 राशियों को 108 चरणों में विभक्त कर दिया, यही नवांश कहलाए तथा 108 की संख्या के शुभत्व का आधार भी यही नक्षण-चरण विभाजन माना जाता है।
सारे नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मॄगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेशा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती।