महासमुन्द
विकासखंड बागबाहरा में 11 विशेष पिछड़ी जनजाति समूह की महिलाएं बिहान से जुड़ीं
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,15 जनवरी। महासमुंद जिले से बनी बांस कलाकृतियां प्रदेश में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी लोकप्रिय है। महासमुंद की बांस शिल्प और यहां की कलाकृतियां शहरों और गांवों में अधिकांश घरों में किसी न किसी रूप में देखने को मिल जाती है। यह सुलभ, सरल एवं लोकप्रिय है। स्थानीय ग्रामीण आदिवासी और यहां की कमार महिलाएं बांस शिल्प का उपयोग और महत्व को जानती और पहचानती हैं। लिहाजा वे बांस का काम प्रमुखता से करती हैं और बांस से अनेक उपयोगी एवं मनमोहक सामग्रियां तैयार करती हैं। वे इस वक्त बांस से टोकरी, सूपा, चटाई, झाडू समेत रोजमर्रा के घरेलू उपयोग की कई चीजें बना रही हैं।
महासमुंद जिले के विकासखंड बागबाहरा में लगभग 11 विशेष पिछड़ी जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण मिशन बिहान अन्तर्गत जुड़ी है। ये जनजातियां पहले परम्परागत कार्य जैसे कृषि या छोटे स्तर पर बांस की टोकरियां, सूपा, चटाई, झाडू आदि घरेलू सामान्य सामग्रियां बनाती थीं। ज़्यादातर इस जाति के लोग रोज़ी-रोटी के लिए शहरों की ओर रुख करते थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थित दयनीय होती थी आरै बच्चे पढ़ाई-लिखाई से दूर रहते थे। तब महिलाएं भी किसी से बहुत कम बातचीत करती थीं।
इन महिलाओं को बिहान समूह से जोड़ा गया और उन्हें सीआरपी सामुदायिक संसाधन व्यक्ति चक्र के तहत बांस और अन्य कार्य का प्रशिक्षण दिया गया। सबसे पहले ग्राम पंचायत ढोढ़ की महालक्ष्मी आदिवासी महिला स्व सहायता समूह को जोड़ा गया। समूह की अध्यक्ष जयमोतिन कमार और सचिव रूपाबाई कमार समेत 10 महिलाओं का समूह बना।
यह समूह इस वक्त बांस से गुलदस्ता भी बना रही हैं। बांस के प्रति यहां के लोगों की रूचि और उसका बेहतर उपयोग के कारण स्थानीय निवासी महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बांस शिल्प के साथ ही काष्ठ कला का भी प्रशिक्षण दिया गया है।
बिहान से जुडऩे की शुरुआत में प्रमिला कमार ने अपनी बाड़ी के बांस का उपयोग कर समूह की महिलाओं के साथ विभिन्न प्रकार की बांस की सामग्री मससन गुलदस्ते, सूपा, टोकरी आदि बनाकर अपनी आमदनी में इजाफ ा किया।
शुरुआत में खुद की बाड़ी का बांस ही कमाई का ज़रिया बना। अब मशन द्वारा उन्हें बांस उपलब्ध कराया जा रहा है। जिला प्रशासन द्वारा ुनकी इस कला को लेकर विशेष प्रयास कर रही है। वन विभाग से बातचीत कर वन डिपो से बांस की खेप मंगा कर इन्हें बांस की पूर्ति की जा रही है। जिससे बांस शिल्प कला में रुचि रखने वाली और महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें आर्थिक स्थित से और मजबूत किया जा सके।
मालूम हो कि महासमुंद जिले में कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की पहल पर कौशल उन्नयन के तहत स्वरोजगारोन्मुख कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। हालांकि प्लास्टिक के सामानों का उपयोग बढऩे और सहज उपलब्धता के कारण इस शिल्प की बिक्री पर भी असर पड़ा है और बांस के सामानों की पूछ परख भी प्लास्टिक से कम है लेकिन बांस से बनी उपयोगी वस्तुओं की बिक्री भी अब बराबर होने लगी है। इस तरह कोरोना से बंद पड़े स्थानीय बाजार, हाट-बाजारों में अब इनकी हस्तशिल्प सामग्री बिकने लगी हैं। इनके द्वारा बनाई जाने वाली बांस की सामग्रियों को अशासकीय संस्थाओं द्वारा भी क्रय की जा रही हैं। इससे उनकी मासिक आय में वृद्धि हो रही है साथ ही उनके जीवन स्तर में सुधार आ रहा है। जिले के कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर ने बताया है कि जिला पंचायत द्वारा मापदण्ड के आधार पर 18 वर्ष से 30 साल उम्र के साक्षर लोगों को उनकी अभिरूचि के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें सूप, टोकरी, कंधे पर ढोई जाने वाली बहगी, मछली फंसाने वाला जाल के साथ ही घरेलू सजावट की वस्तुएं फूलदान, हैंडबैग आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। जिनका विक्रय इस संस्था और आसपास के बाजारों और मड़ई मेलों में प्रदर्शनी लगाकर किया जाता है।