महासमुन्द

पासिद जलाशय के लिए 30 साल पहले दान में मिली जमीन मामले में फैसला जल संसाधन के पक्ष में, पंजीकृत विक्रय पत्र शून्य घोषित
01-May-2024 2:48 PM
पासिद जलाशय के लिए 30 साल पहले दान में मिली जमीन मामले में फैसला जल संसाधन के पक्ष में, पंजीकृत विक्रय पत्र शून्य घोषित

नामांतरण नहीं होने का फायदा उठाकर 15 साल बाद 2009 में इस जमीन को बेच दिया गया था 

खरीददार को 2 माह के भीतर जमीन का रिक्त आधिपत्य शासन को सौंपने का आदेश 

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,1 मई।
तीस साल पहले शासन को पासिद जलाशय के लिए 10.22 एकड़ भूमि दान करने वालों ने नामांतरण नहीं होने का फ ायदा उठाकर 15 साल बाद 2009 में इस जमीन को बेच दिया। मामला रायपुर के एक वरिष्ठ भाजपा नेता से जुड़ा है। 

इस मामले में 21 साल बाद जल संसाधन विभाग की नींद खुली, तब उसने 2015 में उक्त जमीन की वापसी के लिये उस बिक्री के पंजीकृत बैनामा को शून्य घोषित करने के लिये वाद दायर किया। लेकिन प्रथम व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-1 महासमुंद न्यायालय में निर्णय व डिक्री का आदेश जल संसाधन विभाग के खिलाफ  गया। तब इस निर्णय के विरूद्ध जल संसाधन विभाग ने सरिता अग्रवाल को वाद भूमि का आधिपत्य वादी जल संसाधन संभाग महासमुंद को 2 माह के भीतर सौंपने का आदेश दिया है। 

वर्ष 1994 में मप्र शासन द्वारा पासिद जलाशय का निर्माण किया जा रहा था। इसके लिये सभी 6 भू स्वामियों द्वारा स्वेच्छा पूर्वक अपीलार्थी जल संसाधन पक्ष में पंजीकृत दान पत्र के जरिये 2 मार्च 1994 को उप पंजीयक महासमुंद के समक्ष निष्पादित कर उक्त वाद ग्रस्त भूमि को दान कर कब्जा मप्र शासन को सौंपा था। साल 2000 में छग अलग राज्य बना। महासमुंद भी नया जिला बन गया। तब इस भूमि को छग शासन जल संसाधन विभाग महासमुंद को भूमि स्वामी दर्शाया गया। नये बंदोबस्त पश्चात वादग्रस्त भूमि खसरा नंबर परिवर्तित होकर 117 से बदलकर 802 हो गई। 

जानकारी अनुसार प्रथम व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-1 महासमुंद न्यायालय में पंजीकृत विक्रय पत्र दिनांक 17-07-2009 को निर्णय व डिक्री का आदेश जल संसाधन विभाग के खिलाफ  गया था। तब इस निर्णय के विरूद्ध जल संसाधन सर्व जल संसाधन विभाग की नींद खुली। विभाग ने सन 2015 में उक्त जमीन की वापसी के लिये उस बिक्री के पंजीकृत बैनामा को शून्य घोषित ’करने के लिये वाद दायर किया। 

यह अपील प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश महासमुंद संघपुष्पा भतपहरी के न्यायालय में जल संसाधन संभाग महासमुंद की ओर से पेश की गयी।
अपीलार्थी ने न्यायालय को जानकारी दी थी कि दान करने के बाद समस्त भू राजस्व अभिलेखों में नामांतरण की कार्रवाई नहीं होने से जल संसाधन विभाग महासमुंद का नाम अभिलेखों में दर्ज नहीं हो सका था। इसी का अनुचित लाभ उठा कर विष्णु उर्फ  श्याम लाल पिता इतवारी साहू 66 वर्ष, किसनु पिता ईतवारी साहू 52 वर्ष, कृष्ण लाल पिता ईतवारी साहू 57 वर्ष तीनों निवासी जलकी ने वाद ग्रस्त भूमि का खाता विभाजन कर तथ्यों को छिपाकर समस्त भू.अ भिलेखों में अपना नाम दर्ज कराकर पृथक.पृथक भू स्वामी ऋण पुस्तिका तैयार की और पृथक.पृथक 3 पंजीकृत बैनामा द्वारा 17 जुलाई 2009 को यह जमीन सरिता अग्रवाल पति बीएम अग्रवाल 51 वर्ष रामसागर पारा रायपुर को बेचकर उप पंजीयक महासमुंद के समक्ष पंजीकृत बैनामा का निष्पादन कर दिया। 

जमीन बेचे जाने के 6 साल बाद 1 अप्रैल 2015 को जल संसाधन विभाग को इसकी जानकारी हुई। अब न्यायालय के आदेश पर विभाग ने सरिता अग्रवाल को वाद भूमि का आधिपत्य वादी जल संसाधन संभाग महासमुंद को 2 माह के भीतर सौंपने का आदेश दिया है।

यह मामला प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश महासमुंद सुश्री संघपुष्पा भतपहरी के न्यायालय में जल संसाधन संभाग महासमुंद की ओर से पेश की गयी। जिस पर 23 अप्रैल 2024 को फैसला जल संसाधन संभाग के पक्ष में आया। न्यायालय ने 28-9-2018 का निर्णय एवं डिक्री को अपास्त कर दिया है जिसमें सरिता अग्रवाल पति बीएम अग्रवाल 51 वर्ष राम सागर पारा रायपुर के पक्ष में निष्पादित कर दिया था।  
 

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