महासमुन्द
![गुड्डे-गुडिय़े की शादी तेलमाटी-चुलमाटी के साथ शुरू गुड्डे-गुडिय़े की शादी तेलमाटी-चुलमाटी के साथ शुरू](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1682068752MG_20230416_081606.jpg)
एक दिन पहले घरों में जाकर पीले चावल देकर शादी में आने का न्यौता भी दिया
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 21 अप्रैल। शादी ब्याह के बदलते ट्रेंड के बीच पुरानी रस्मों को याद रखने के लिए शनिवार को महासमुंद के सुभाषनगर में गुड्डे-गुडिय़े का ब्याह धार्मिक रीति-रिवाज तेलमाटी-चुलमाटी के साथ शुरू हो चुकी है। इससे पहले बच्चों ने आसपास के घरों में जाकर पीले चावल देकर शादी में शामिल होने का न्यौता भी दिया है।
बताना जरूरी है कि महासमुंद के पिटियाझर रोड स्थित रवि बैंडपॉर्टी का पूरा परिवार हर साल गुड्डे-गुडिय़े की शादी कार्यक्रम आहुत करता है। पास-पड़ोस के लोगों को भी इस शादी में आमंत्रित किया जाता है। हर साल ‘छत्तीसगढ़’ अखबार कार्यालय में भी निमंत्रण दिया जाता है। शनिवार को अक्षय तृतीया के दिन शाम गोधूलि बेला में फेरा कार्यक्रम के बाद बिदाई के साथ यह शादी समाप्त हो जाएगी।
यहां रवि बैंडवाले के 15 लोगों के परिवार में से पांच महिलाओं ने कल बाजार जाकर गुड्डे, गुडिय़े, उनके लिए कपड़े, मौर, हल्दी, पर्रा, बिजना आदि शादी का सामाना खरीदा। दिन भर पुरुष वर्ग के लोग आसपास के लोगों को निमंत्रण देने का काम करते रहे। शाम ढलते ही बैंड बाजे के साथ घर तथा पड़ोस परिवार के लोगों ने पर्रा, कलशा, साबर आदि के साथ नाचते-गाते सीतला मंदिर प्रांगण से चुलमाटी लाया। उस मिट्टी से घर के आंगन में गुड़्ेृ-गुडिय़े का अलग-अलग सुंदर सा मंडप तैयार हुआ।
रात 8 बजे गुड्डे गडिय़े को हल्दी चढ़ाने का नेंग हुआ। गुडिय़ा को अलग और गुड़्डे को अलग-अलग कमरे से निकाला गया। उनके लिए एक-एक सुआसीन की व्यवस्था भी है। मालूम हो कि सुआसीन ढेड़हिन को कहा जाता है जो पूरे समय दूल्हे-दुल्हन के साथ रहकर नेंग पूरा करती हैं। मंडप में आते ही दोनों को हल्दी चढ़ाने का रस्म पूरा हुआ। महिलाएं-बच्चे एक-एक कर मंडप में हल्दी चढ़ाने आते रहे। इस दौरान लगातार बैैंड बाजे में शादी के गीत बजते रहा और लोग नाचते रहे। इसके बाद सभी ने पंगत में बैठकर खाना खाया।
आज सुबह से इस घर में बैैंड बाजे की धुन सुनाई दे रही है। घर में पूरा शादी जैसा माहौल है और आज शाम तक मायन का रस्म मसलन हल्दी उतारने, दूल्हे-दुल्हन को नहलाने के अलावा बड़ी हल्दी का काम पूरा किया जाएगा। कल सुबह सज-धज कर दूल्हा बारात के लेकर निकलेगा और गुडिय़े के साथ उसकी शादी होगी। बहरहाल यह विवाह पूरे धार्मिक रीति रिवाज से मंडप के नीचे आहुत है। इस विवाह में बच्चों के साथ बड़े भी उत्साह के साथ शामिल हो रहे हैं। गुड्डा को दुल्हा व गुडिय़ा दुल्हन की तरह सजाने के लिए बच्चे तरह-तरह की तैयारियां कर रहे हैं। इस घर के बड़ों का मानना है कि बच्चे इससे अपनी संस्कृति समझ पाएंगे।
कल अक्षय तृतीया है और आज सुबह महासमुंद में सडक़ों के किनारे लगी दुकानों में नन्हीं मुनिया गुड़्ड़े गुडिय़े बेचती नजर आईं। महासमुंद मोती बाल उद्यान के सामने दरवाजे पर नेहरू जी की आदमकद प्रतिमा के नाचे बैठकर एक गुडिय़ा मिट्टी के गुडिय़े को काजल, माहुुर, लगाकर चूड़ी पहनाते नजर आईं। वहीं थाने के सामने के पसरे में एक बच्ची चुस्की खाते हुए गुडिय़ा खरीदने वालों से मोलभाव करते नजर आईं। उन्होंने बताया -गुडिय़ा और गुड्डे जोड़ी में बिकेंगे, अकेले नहीं। 70 रुपये दाम लेकर ही बेचेंगे। )