विचार / लेख

प्रदूषण में नंबर एक बनते हम
06-Nov-2023 8:21 PM
प्रदूषण में नंबर एक बनते हम

-डॉ. आर.के. पालीवाल
महानगरों में प्रदूषण पर वैश्विक नजऱ रखने वाली एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संस्था के सर्वे में दिल्ली का प्रदूषण विश्व में नंबर एक पर पहुंच गया है। यह भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार और आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार, दोनों के माथे पर कलंक की तरह है। दिल्ली की कमान पूरी तरह अपने हाथ में लेने के लिए यह दोनों दल एक दूसरे के साथ कभी हाई कोर्ट और कभी सुप्रीम कोर्ट में लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन इस कलंक के लिए वे एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालेंगे। 

दिल्ली के अलावा विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषित पांच महानगरों में भारत के कोलकाता और मुंबई के भी नाम हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि टॉप पांच में तीन हमारे शहर हैं। इसका अर्थ यह भी है कि प्रदूषण नियंत्रण के मानले में दिल्ली पर आधा आधा राज करने वाली भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी ही दोषी नहीं हैं बल्कि तृणमूल कांग्रेस पार्टी , शिंदे गुट की शिव सेना और अजित पवार समूह की एन सी पी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां भी बराबर की दोषी हैं। यदि इस सर्वे में सौ दो सौ शहरों को शामिल किया जाता तो निश्चित रुप से इसमें बैंगलोर, चेन्नई और हैदराबाद आदि शहर भी आसानी से शामिल हो जाते क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के मामले में कोई भी राजनीतिक दल जरा भी चिंतित दिखाई नहीं देता।

अगर दिल्ली की बात करें तो दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण निजी वाहनों की निरंतर बढ़ती भीड़ है जिसने दिल्ली की तमाम कॉलोनियों की सडक़ों को लगभग अतिक्रमित कर लिया है। केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को एक दूसरे को नीचा दिखाने से फुरसत मिले तो उन्हें साथ बैठकर इस जानलेवा समस्या से निजात पाने की कोशिश करनी चाहिए कि दिल्ली की सडक़ों पर डीजल और पेट्रोल से चलने वाले निजी वाहनों की भीड कैसे कम हो और उसकी जगह कैसे लोगों की पहली पसंद मेट्रो और सी एन जी से चलने वाली बसें बनें। 

दिल्ली के आकाओं को कुछ कड़े फैसले भी लेने चाहिएं, मसलन पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी स्कूल कॉलेज केवल सी एन जी बसों के माध्यम से ही आएं। अभी दीपावली भी नजदीक है। यदि अभी यह हाल है तब दीपावली के बाद क्या स्थिति होगी यह कल्पना की जा सकती है। यदि दीपावली पर पटाखे नही जलाने की नसीहत दी जाए तो इस पर बहुत से लोगों की धार्मिक भावनाओं के भडक़ने का खतरा रहता है इसलिए वोट बैंक खिसकने के भय से सरकार ऐसे कदम उठाने का साहस नहीं कर पाती जबकि जनहित में इस तरह के निर्णय अत्यन्त आवश्यक हैं।

जिन कार्यों को सरकार आसानी से कर सकती हैं उनमें  मेट्रो की ज्यादा फ्रिक्वेंसी बढ़ाकर और उसके किराए कम करने से काफी लोगों को मैट्रो में सफर करने के लिए आकर्षित जा सकता है।
 
सरकारी कॉलोनियों से फ्री सीएनजी चार्टर्ड बस सेवा चलाकर भी सरकारी और निजी वाहनों के चालन में काफी कमी आ सकती है। एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन से अधिक से अधिक शेयर्ड टैक्सी सुविधाएं शुरू की जा सकती हैं। सबसे ज्यादा आवश्यकता व्यापक जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को यह समझाना जरूरी है कि दिनोदिन बढ़ता प्रदूषण विशेष रूप से घर के बुजुर्गों और बच्चों के स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव डालता है। यह बेहद चिंता का विषय है कि केवल दिल्ली, कोलकाता और मुंबई आदि महानगर ही नहीं धीरे धीरे पूरा देश ही सर्वाधिक प्रदूषित देश होने की तरफ बढ रहा है। 

डीजल पेट्रोल के वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरु हुआ पराली जलाने का अभियान धीरे धीरे मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी तेजी से पैर पसार रहा है। देर सवेर इंदौर और भोपाल जैसे मध्यम वर्ग के शहर भी महानगरों की गति को प्राप्त होते दिखाई दे रहे हैं। समय रहते हुए राष्ट्रीय स्तर पर वृहद स्तर पर कारगर उपाय ही हमें प्रदूषण के दुष्प्रभाव से बचा सकते हैं ।

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