विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
नई लोकसभा में भाजपा जिस कांग्रेस मुक्त भारत की कामना कर रही थी वह कामना तो फ्लॉप हो गई, उल्टे वर्तमान लोकसभा में कांग्रेस का उरूज हुआ है और वह दोगुने जोश के साथ निन्यानवें सीट लेकर और गठबंधन के साथ लोकसभा की लगभग चालीस प्रतिशत सीटों के साथ मजबूत विपक्ष के रूप में मौजूद है। दूसरी तरफ अपने दम बहुमत के बहुत आगे बढऩे के दावे ठोकने वाले मोदी जी को बहुमत से बत्तीस सीट कम देकर जनता ने न केवल उनके अहंकार के पर काट दिए बल्कि भाजपा को भी पशोपेश में डाल दिया।
शायद उसी की बौखलाहट है कि मोदी जी और उनकी किचेन कैबिनेट के चंद लोगों ने लोकसभा की शुरूआत में कांग्रेस को आपातकाल के पचास साल पुराने कलंक से घेरने की कोशिश की है। नए सत्र की शुरूआत में सदन में आपातकाल की स्मृति में दो मिनट का मौन रखना गड़े मुर्दे उखाडकर विपक्ष की भावनाओं को भडक़ाने के अलावा कुछ भी नहीं है। संभव है कि कालांतर में कांग्रेस भी यह मांग कर सकती है कि महात्मा गांधी की हत्या की पचहत्रवी बरसी पर संसद में गोडसे के कुकृत्य के लिए ऐसा ही निंदा प्रस्ताव पारित किया जाए। सत्ताधारी दल ने आपातकाल की बात यहीं खत्म नहीं की। राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी आपातकाल का जिक्र करना दर्शाता है कि सत्ता पक्ष सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को नीचा दिखाने के लिए लगातार प्रयास करता रहेगा। निश्चित रूप से कांग्रेस भी क्रिया की प्रतिक्रिया में पलटवार करते हुए भारतीय जनता पार्टी की दुखती रगों पर मिर्च रगडऩे का कोई अवसर हाथ से नहीं निकलने देगी। इस लिहाज से लोकसभा का यह कार्यकाल अगले पांच साल काफी हंगामेदार रहने की उम्मीद है।
जैसी कि उम्मीद की जा रही थी कि नरेंद्र मोदी की गठबन्धन सरकार अपने पहले और दूसरे कार्यकाल की तुलना में तीसरे कार्यकाल में अधिक संजीदा रहेगी और विरोधियों के गड़े मुर्दे उखाडऩे की बजाय अपनी सकारात्मक योजनाओ के माध्यम से भाजपा और एन डी ए की खोई हुई साख पुनर्स्थापित करने की कोशिश करेगी, वैसा नहीं लगता। संसद के शुरुआती कारोबार से तो ऐसा आभास होता है कि जब तक भाजपा के सहयोगी दल, विशेष रूप से तेलगु देशम पार्टी और जनता दल दबाव नहीं बनाएंगे तब तक भाजपा का वर्तमान संगठन और नेता अपनी कार्यशैली नहीं बदलेंगे। जहां तक मंत्रिमंडल के गठन का मुद्दा था उसमें निश्चित तौर पर यह स्पष्ट दिखा है कि बड़े मंत्रालयों में कोई खास परिर्वतन नहीं हुआ। लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव भी बहुत आराम से निबट गया और ओम बिरला को यह सौभाग्य दूसरी बार मिल गया। हालांकि अभी लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पाया। यह तो साफ़ दिख रहा है कि यह पद विपक्ष को नहीं मिलना। सवाल यह है कि क्या भाजपा उपाध्यक्ष भी अपने दल से बना पाएगी या जनता दल और तेलगु देशम में से किसी को यह पद मिलेगा।
लोकसभा का पहला सत्र औपचारिक अधिक होता है जिसमें सदस्यों का शपथ ग्रहण और राष्ट्रपति का अभिभाषण ही प्रमुख होते हैं। हालांकि इस दौरान नीट परीक्षा लीक होने के मुद्दे पर कांग्रेस और विपक्ष ने सरकार को घेरने की जोरदार कोशिश की। सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई में यह साफ हो गया है कि इस प्रतिष्ठित परीक्षा का पेपर लीक हुआ है। यह कितने केंद्रों पर हुआ है और कितने परीक्षार्थी इसके लाभार्थी हुए इस मुददे पर सी बी आई जांच के साथ साथ सर्वोच्च न्यायालय भी मामले की सुनवाई में अपनी तरफ़ से सघन छानबीन कर रहा है।
राहुल गांधी ने इस बार जिस तरह से बिना ना नुकुर किए नेता विपक्ष का पद स्वीकार किया है और जिस तेज तर्रार अंदाज में ज्वलंत मुद्दों को अपने भाषण में उठाया है उससे प्रधानमंत्री सहित तमाम वरिष्ठ मंत्रियों को बीच बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा था। इन सब तथ्यों से यही संकेत मिलते हैं कि लोकसभा का आगामी बजट सत्र अच्छा खासा हंगामेदार होगा।