विचार / लेख
![नीचे मतलब कितना नीचे मतलब कितना](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1721988677hani.jpg)
-सच्चिदानंद जोशी
मालविका जी प्रति शनिवार शनि मंदिर और हनुमान जी के मंदिर जाती हैं। कभी कभार सारथी के रूप में हमें भी उनके साथ जाने का अवसर मिल जाता है। ऐसे ही एक दिन जब मैं मंदिर परिसर में दाखिल हुआ तो दूर शनि मंदिर में एक बाला शनि देवता को तेल चढ़ाती दिखाई दी। उसकी वेशभूषा बहुत विचित्र सी दिखाई दी तो मैने मालविका जी से कहा ‘देखो वो लडक़ी सुपरमैन जैसी ड्रेस पहनी है। और उसके इनर नीले नहीं बल्कि स्किन कलर के हैं। ’ मालविका जी ने पहले तो मुझे खा जाने वाली नजरों से घूरा और फिर बोली’ अभी पिछले हफ्ते ही तुम्हारी दूर की नजर का चश्मा बनवाया है न । क्या अभी भी तुम्हे दूर का ठीक से दिखाई नहीं देता। जरा ध्यान से देखो उसने कोई इनर नहीं पहना है। और हां वो कोई लडक़ी नहीं है , हमारी उम्र की ही है।’
मैने गौर से देखा। मालविका जी सही थी। जिसे मैं स्किन कलर का इनर समझ रहा था दरअसल वो स्किन ही थी। यानी शॉर्ट्स भी शरमा जाए इतनी छोटी होजरी की शॉर्ट्स थी। और ऊपर सिर्फ उनके अंतर्वस्त्रों को ढंक सके इतना टॉप था। उसमें भी प्रतिस्पर्धा थी कि कौन ज्यादा दिखे अंतर्वस्त्र या टॉप। उम्र के आकलन में मेरी हमेशा गफलत होती है इसलिए मैं कभी वो करता ही नहीं ।लेकिन इतना जरूर था उन महिला को युवा की नहीं प्रौढ़ की श्रेणी में ही रखा जा सकता था।
शनि देवता को तेल चढ़ाने के बाद वे महादेव जी को जल चढ़ाने गई। उनका ये परिधान मंदिर में आए काफी दर्शनार्थियों का ध्यान खींच रहा था।माना कि दिल्ली में गर्मी है और इस मौसम में तो उमस के कारण चिपचिपाहट भी होती है लेकिन इतनी ?
हमारे सभी देवता बहुत सहृदय है और वे अपने भक्तों के श्रद्धा भाव को प्रेम पूर्वक ग्रहण करते हैं। उनकी दृष्टि सभी प्रकार के भक्तों को देखने की समान ही होती है। लेकिन उनकी सहृदयता का ऐसा फायदा उठाना तो जरा ज्यादती ही है।
घर वापसी के समय मालविका जी से उसी विषय पर चर्चा होती रही । मैं तो फिर भी सम्हाल कर ही बोल रहा था क्योंकि उस वस्त्र विन्यास ( जो भी था ) में ज्यादा रुचि दिखाना भी धोखे का ही था। लेकिन मालविका जी को भी वो वस्त्र विन्यास नागवार गुजरा था।
वैसे तो मंदिरों में जाने का कोई ड्रेस कोड नहीं है। दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में है। कुछ उत्तर भारत के मंदिरों में भी है और जगहों पर भी हो सकता है। लेकिन ज्यादातर मंदिरों में ऐसा कोई ड्रेस कोड नहीं है। फिर भी आम धारणा है कि मंदिरों में सौम्य वेश में ही जाना चाहिए।
भारत अन्य कुछ देशों की तुलना में सामाजिक दृष्टि प्रगतिशील या आधुनिक न हो लेकिन उपासना पद्धति के मामले में भारत की स्वतंत्रता अद्वितीय अतुलनीय है।
भूटान यात्रा के दौरान थिंपू के साइट सीइंग का कार्यक्रम था। पहली रात गाइड ने ग्रुप के सभी लोगों को बता दिया था कि हम कल कुछ मंदिरो में भी जायेंगे और वहां शॉर्ट्स और स्लीवलेस की पहन कर जाने की अनुमति नहीं होती । इसलिए या तो आप ऐसे कपड़े पहन कर ही न आएं या आप उन मंदिरों के अंदर न जाए। अगले दिन इतना कहने के बावजूद हमारे समूह का एक परिवार शॉर्ट्स और स्लीवलेस में सज्ज था। ‘हम तो ऐसे ही जायेंगे। वहां कौन देखता है।’ वाला भाव उनके चेहरे पर था।जब हम चलने को हुए तो गाइड ने उन्हें एक बार बस देखा। थिंपू के प्राचीन थिंपू चोर्टन पहुंचे तो दरवाजे पर ही दरबान ने उन्हें रोक लिए। वे उससे बहस करने लगे लेकिन दरबान का रवैया देख उन्हें चुप होना पड़ा। अंतत: मंदिर के अंदर जाने के लिए उन्हें वहीं से एक ढीला पजामा और शर्ट खरीदना पड़ा। जब वे ये खरीद रहे थे तब दरबान हमारे गाइड को डांट रहा था कि तुम अपने टूरिस्ट को सही गाइड क्यों नहीं करते।
बैंकॉक का महल देखने जाए तो उसी परिसर में बना टेंपल ऑफ एमरल्ड बुद्ध अवश्य देखना चाहिए। इस स्थानों पर हमेशा हजारों पर्यटकों की भीड़ रहती है। लेकिन वहां भी दरवाजे पर सूचना है कि आप अंदर शॉर्ट्स और स्लीवलेस में नहीं जा सकते। पर्यटकों की सुविधा के लिए वहां नाममात्र किराए पर रेप अराउंड मिलते हैं। मजेदार बात ये है कि वहां ‘कौन देखता है इतनी भीड़ में , चुपचाप से अंदर सटक लेंगे’ का भाव लिए पर्यटक नहीं होते और सभी इस अनुशासन का पालन करते हैं।
ग्रीस यात्रा के दौरान एक दिन तीन द्वीपों पोरस, हाइड्रा और इजीना की क्रूज यात्रा की।।उस पूरे क्रूज में हम ही सबसे ज्यादा कपड़े पहने थे। हालांकि हम भी बस जींस और टी शर्ट में ही थे। नूडल स्ट्रैप पहली बार उसी दौरान देखा था। यूरोप में ये अच्छा है कि कोई किसी को नहीं देखता और सब अपने में मस्त रहते हैं और ‘कोई क्या कहेगा’ सिंड्रोम से मुक्त रहते हैं। क्रूज यात्रा के अंतिम पड़ाव पर हम इजीना के इगोइस नेक्टरियस मॉनेस्ट्री में गए। ये बहुत पवित्र स्थान माना जाता है और कहा जाता है कि यहां मांगी मन्नत पूरी होती है।
हम जैसे ही उस मंदिर में जाने लगे तो देखा हमारे क्रूज की अधिकांश जनता गायब है। हम लोगों में घटती आस्था के बारे में सोच ही रहे थे कि अचानक हमें बहुत सारे रंग बिरंगे काफ्तान और रैप अराउंड पहने लोगो का समूह दिखाई दिया। उन्हे पास से देखा तो चेहरे पहचाने से लगे। ये वही बालाएं थी जो दिन भर शॉर्ट्स और नूडल स्ट्रैप वाले टॉप में घूम रही थी। साथ में वही धुरंधर थे जो दिन भर लगभग खुले बदन हमारे साथ घूम रहे थे। मालूम हुआ कि इसके अंदर आप शॉर्ट्स और स्लीवलेस पहन कर नहीं जा सकते। एक काउंटर था जहां आपको काफ्तान और रैपराउंड मिलते थे जिसने दर्शन के बाद वही छोड़ कर जाना था।
कुछ साल पहले एक मित्र के परिवार में चर्चा सुनी थी जब उनकी बिटिया कॉलेज जाने लगी थी। मां ने बिटिया को टोका था ‘बेटी स्कर्ट थोड़ा नीचे तक पहना करो।’ और तब बिटिया ने झुंझलाते हुए कहा था ‘नीचे मतलब कितना नीचे? आप तो इंच टेप लेकर स्कर्ट की ऊंचाई तय कर दो।’ बहुत साल पहले मध्य प्रदेश और गुजरात के बीच नर्मदा नदी के बंटवारे को लेकर विवाद चलता था तो वो भी नवागाम बांध की ऊंचाई पर अटक जाता था। हम मध्य प्रदेश वाले कहते थे बांध की ऊंचाई कम करो और गुजरात वाले पूछते थे ‘नीचे मतलब कितना नीचे?’
वह विवाद तो खैर सुलझ गया और बांध भी बन गया। लेकिन स्कर्ट और शॉर्ट्स की ऊंचाई का विवाद तो शायद अभी भी कई घरों में चलता ही है। लेकिन सुपरमैन जैसी पोशाख और वो भी मंदिर में । बात कुछ अटपटी सी लगी इसलिए साझा कर दी।