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‘सिविल सेवा में विकलांगों की नियुक्ति’ पर आईएएस अधिकारी के सवालों पर छिड़ी ये बहस
25-Jul-2024 3:21 PM
‘सिविल सेवा में विकलांगों की नियुक्ति’ पर आईएएस अधिकारी के सवालों पर छिड़ी ये बहस

INSTAGRAM/SMITA_SABHARWAL1 /आईएएस अधिकारी स्मिता सभरवाल

-अंशुल सिंह

बीते दिनों महाराष्ट्र कैडर की ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर का नाम अचानक से सुर्खियों में आया।

पुणे जि़ला मुख्यालय में ट्रेनिंग के दौरान पूजा खेडकर की ‘अनुचित मांगों और अभद्र व्यवहार’ की बात सामने आई तो उनका तबादला महाराष्ट्र के वाशिम जिले में कर दिया गया।

मामले पर पूजा ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ भी कहने की इजाजत नहीं है। इसके बाद संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी ने पूजा पर एफआईआर दर्ज कराई है और सिविल सर्विसेज एग्जाम 2022 के लिए उनकी उम्मीदवारी को रद्द करने का नोटिस जारी किया।

यूपीएससी का कहना है कि उन्होंने मामले की व्यापक जांच की और उन्हें फज़ऱ्ीवाड़े का पता चला।

पूजा ने विकलांग कोटे (पीडब्लूबीडी-5) के तहल सिविल सेवा परीक्षा 2022 पास की थी और उनका विकलांगता प्रमाण पत्र भी सवालों के घेरे में है। इसके बाद स्मिता सभरवाल नाम की आईएएस अधिकारी की लिखी एक पोस्ट पर बहस शुरू हो गई है।

क्या है पूरा मामला?

स्मिता सभरवाल 2001 बैच की आईएएस अधिकारी हैं और अभी तेलंगाना कैडर में अपनी सेवाएं दे रही हैं।

21 जुलाई की सुबह स्मिता ने एक्स पर विकलांग व्यक्तियों और सिविल सेवाओं को लेकर एक पोस्ट लिखा।

स्मिता ने लिखा, ‘विकलांगों के प्रति पूरा सम्मान रखते हुए। क्या एक एयरलाइन एक विकलांग पायलट को काम पर रख सकती है? क्या आप एक विकलांग सर्जन पर भरोसा करेंगे?’

‘आईएएस/आईपीएस/आईएसओएस जैसी सेवाओं की प्रकृति फील्ड-वर्क, लंबे समय तक काम करने वाले घंटे, लोगों की शिकायतों को सीधे सुनना है- जिसके लिए शारीरिक फिटनेस की ज़रूरत होती है। इस प्रीमियर सर्विस को इस कोटे (विकलांगता कोटा) की जरूरत क्यों है?’

इस पोस्ट के बाद स्मिता को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

एक दिन बाद यानी 22 जुलाई को स्मिता ने एक और पोस्ट लिखा।

उन्होंने लिखा, ‘मेरी टाइमलाइन पर काफी आक्रोश देखने को मिला। मुझे लगता है कि स्पष्ट रूप से मौजूद समस्या पर बात करने से ऐसी प्रतिक्रिया मिलती है।’

‘विकलांग अधिकार कार्यकर्ताओं से यह भी जांच करने का अनुरोध करूंगी कि यह कोटा अभी भी आईपीएस/आईएफओएस और रक्षा जैसे कुछ क्षेत्रों में क्यों लागू नहीं किया गया है। मेरा कहना यह है कि आईएएस अलग नहीं है।’

स्मिता सभरवाल ने आखिर में लिखा, ‘एक समावेशी समाज में रहना एक सपना है जिसे हम सभी मानते हैं। मेरे मन में असंवेदनशीलता की कोई जगह नहीं है। जय हिन्द।’

‘स्मिता सभरवाल की बातें अपमानजक और निराधार है’

नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपल संस्था के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने आईएएस स्मिता सभरवाल की टिप्पणी को भेदभावपूर्ण और विकलांगों के प्रति अज्ञानता बताया है।

अरमान अली का कहना है, ‘विकलांग व्यक्तियों की तुलना एयरलाइन पायलटों या सर्जनों से करना और यह कहना कि वे कुछ भूमिकाओं के लिए अयोग्य हैं, अपमानजनक और निराधार दोनों है। विकलांगों को मौक़े मिलें तो वो बेहतर कर सकते हैं। विकलांग डॉ। सतेंद्र सिंह इसका जीता-जागता उदाहरण हैं।’

अरमान बताते हैं, ‘यह तर्क कि अखिल भारतीय सेवाओं के लिए शारीरिक फिटनेस की आवश्यकता होती है और इस प्रकार विकलांग व्यक्तियों को बाहर रखा जाता है, सक्षमवादी और पुरानी सोच में निहित है। विकलांगता का मतलब अक्षमता नहीं है।’

वो बोले, ‘आईएएस में विकलांग व्यक्तियों को नहीं होना चाहिए, इस तरह के सुझाव देना न केवल अज्ञानपूर्ण है बल्कि आपत्तिजनक भी हैं। आईएएस में, विकलांग व्यक्ति अलग दृष्टिकोण और अनुभव लाते हैं जो निर्णय लेने और नीतियों को आगे बढ़ाने में सहायक होता है। भारत 10 करोड़ से अधिक विकलांग व्यक्तियों का घर है।’

मुकेश पवार दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्र हैं।

उनके शोध का विषय ‘हिंदी सिनेमा में विकलांग विमर्श 1982-2020’ हैं और वो खुद भी विकलांग हैं।

मुकेश का कहना है कि आईएएस स्मिता सभरवाल की बातें और तर्क पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं।

वो कहते हैं, ‘सिविल सेवाओं की कुल 24 सेवाओं में विकलांग लोगों को 7-8 सेवाओं में नहीं रखा जाता है। जिनमें प्रमुख रूप से आईपीएस और आईआरपीएफएस जैसी सेवाएं शामिल हैं। जहां तक बात फील्ड वर्क की है तो आप पहले से ही क्यों मान रहे हैं कि आईएएस अधिकारी अकेले फील्ड में जाएगा। हर आईएएस चाहे वो विकलांग हो या न हो, उसके साथ अन्य अधिकारी और सहायक तो होते ही हैं। अगर कोई विकलांग है तो व्हीलचेयर के साथ जाएगा और नेत्रहीन है तो स्टिक के साथ जाएगा।’

‘दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में यह प्रावधान है कि अगर कोई विकलांग कहीं नौकरी कर रहा है तो उसके लिए अनुकूल माहौल बनाने की जि़म्मेदारी सरकार की है तो सरकार अपना काम करे। इसलिए स्मिता सभरवाल की बातें निराधार हैं।’

डिफेंस और आईपीएस जैसी सेवाओं में विकलांग कोटा नहीं है-स्मिता

अरमान अली डिफेंस में विकलांग लोगों के सवाल पर कहते हैं कि चुनौतियां हर नौकरी में हैं और विकलांग व्यक्तियों के लिए उन पर काबू पाना कोई नई बात नहीं है।

अरमान कहते हैं, ‘आईएएस अधिकारी को मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) इयान कार्डोजो के बारे में जानना चाहिए। उन्होंने 1971 की जंग लड़ी और वो एक विकलांग भी हैं। वो भारतीय सेना के पहले विकलांग अफ़सर थे जिन्होंने पहले बटालियन और फिर एक ब्रिगेड को कमांड किया।’

वो बोले, ‘टाटा इंडस्ट्रीज के कार्यकारी निदेशक केआरएस जामवाल और जाने-माने ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. सुरेश आडवाणी दोनों व्हीलचेयर पर हैं। डिफेंस समेत हर क्षेत्र में विकलांग लोगों को वो अवसर मिलने चाहिए जिनके वो हकदार हैं।’

मुकेश पवार कहते हैं कि मैंने विकलांग लोगों को डिफेंस में देखा है और मैं चाहता हूं कि स्मिता सभरवाल भी ऐसे विकलांग लोगों से मिलें।

उनका कहना है, ‘डिफेंस में एक फील्ड होती है नॉन-कॉम्बैट, जहां विकलांग लोग ऑफिस वर्क और टेक्निकल काम करते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि वो सीमा पर जाकर नहीं लड़ पाएंगे। भारत में अभी महिलाएं भी सीमा पर तैनात नहीं होती हैं तो फिर विकलांगों को इस नजर से क्यों देखा जा रहा है।’

‘दरअसल समाज में समस्या यह है कि विकलांग व्यक्ति को हर क़दम पर साबित करना होता है कि वो योग्य है। यही समाज की सबसे बड़ी समस्या है। समाज अपने पूर्वग्राहों के आधार पर नियम बनाता है और विकलांगों को मौक़ा ही नहीं देता है।’

सोशल मीडिया पर क्या बोले लोग?

स्मिता सभरवाल के पोस्ट पर शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने आलोचना करते हुए इसे ‘सीमित सोच’ और ‘नौकरशाहों का विशेषाधिकार’ बताया।

उन्होंने लिखा, ‘यह बहुत ही दयनीय और बहिष्कार करने वाला नज़रिया है। यह देखना दिलचस्प है कि नौकरशाह कैसे अपनी सीमित सोच और विशेषाधिकार दिखा रहे हैं।’

स्मिता सभरवाल ने प्रियंका को जवाब देते हुए लिखा, ‘मैडम, सम्मान के साथ, अगर नौकरशाह शासन के प्रासंगिक मुद्दों पर नहीं बोलेंगे तो कौन बोलेगा? मेरे विचार और सोच 24 साल के करियर के अनुभव से आई है। यह कोई सीमित अनुभव नहीं है।’

‘कृपया पूरी बात पढ़ें। मैंने कहा है कि दूसरी सेंट्रल सर्विसेज की तुलना में ्रढ्ढस् (ऑल इंडिया सर्विसेज) की जरूरतें अलग हैं। प्रतिभाशाली विकलांगों को निश्चित रूप से बेहतरीन अवसर मिल सकते हैं।’

सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने लिखा, ‘हैरान हूं कि एक आईएएस अधिकारी विकलांगता के बारे बुनियादी रूप से इतनी अंजान हैं। अधिकांश विकलांगताओं का सहनशक्ति या बुद्धिमत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन यह ट्वीट दिखाता है कि इन्हें ज्ञान और विविधता की सख़्त जरूरत है।’

करुणा नंदी के पोस्ट पर भी स्मिता सभरवाल ने प्रतिक्रिया दी है।

उन्होंने लिखा, ‘मैडम, मुझे बुनियादी रूप से इस नौकरी की ज़रूरतों के बारे में पता है। यहां मुद्दा फ़ील्ड की नौकरी के लिए योग्य होने का है। इसके अलावा मेरा विश्वास है कि सरकार के अंदर अन्य सेवाएँ जैसे डेस्क वर्क या थिंक-टैंक उनके (विकलांग) के लिए सही हैं।

‘कृपया तुरंत निष्कर्ष पर ना पहुंचें। कानूनी ढांचा समानता के अधिकारों की पूरी सुरक्षा के लिए है। वहां कोई बहस नहीं है।’

नियम क्या कहते हैं?

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत कुल 21 श्रेणियों की विकलांगताओं को मान्यता दी गई है।

विकलांगता के मामले में संघ लोक सेवा आयोग इसी अधिनियम के तहत काम करता है।

अधिनियम के मुताबिक़, विकलांग लोगों के लिए पांच तरह की विकलांगता श्रेणियों में आरक्षण तय किया गया है:-

दृष्टिहीन या आंखों की रोशनी कम है

बिल्कुल ना सुनाई दे, कम सुनाई दे या सुनने में दिक्कत

चलने-फिरन में अक्षम लोग, एसिड अटैक पीडि़त, बौनापन या जिनका मांसपेशीय विकास ठीक से न हुआ हो

ऑटिज्म, बौद्धिक विकलांगता और मानसिक बीमारी

इन चारों में से एक से ज़्यादा प्रकार की विकलांगता

इस आधार पर यूपीएससी में विकलांग व्यक्तियों के लिए चार फीसद नौकरियां आरक्षित हैं और इस आरक्षण का लाभ लेने के लिए कम से कम 40 फीसदी विकलांगता होनी चाहिए। हालांकि, इस अधियनियम के दायरे से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), भारतीय रेलवे सुरक्षा बल सेवा (आईआरपीएफ़एस) और दानिप्स जैसी सेवाओं को बाहर रखा गया है। (bbc.com/hindi)

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