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अंबानी से लेकर कर्जदार पिता तक, शादियों पर भारत के लोग इतना खर्च क्यों करते हैं?
15-Jul-2024 3:52 PM
अंबानी से लेकर कर्जदार पिता तक, शादियों पर भारत के लोग इतना खर्च क्यों करते हैं?

MARRIAGE COLORS

-नंदिनी वेल्लाइसामी

पिछले कुछ दिनों से पूरे देश में एक शादी और उससे संबंधित आयोजन की ख़ूब चर्चा हो रही है।

ये शादी भारत के सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी है। इस शादी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी से मीडिया आउटलेट्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स भरे हुए हैं। इस शादी में शामिल होने वाली मशहूर हस्तियों और उनके डिजाइनर कपड़े और स्टाइलिश लुक की भी चर्चा हो रही है।

बॉलीवुड के सितारे, भारतीय क्रिकेट टीम के बड़े सितारे, शीर्ष उद्योगपति, कई देशों के प्रमुख नेताओं के अलावा पॉप आइकन जस्टिन बीबर जैसी हस्तियां मुंबई पहुंच चुकी हैं।

कई महीने से चल रहा है आयोजन

12 जुलाई को अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी हुई, लेकिन शादी को लेकर कई आयोजन पिछले कुछ महीने से चल रहे हैं। जिसमें होने वाले खर्चे को लेकर भी खूब कयास लगाए जा रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स की मुताबिक, इस आयोजन पर कुछ हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं।

दरअसल, भारत में शादियाँ ‘पारिवारिक उत्सव’ हैं। इसमें परंपराएं भी हैं और भारी खर्च घर-घर की कहानी हैं।

भारतीय परिवार अपने यहां होने वाली शादी के जरिए दौलत, रुतबा और साख को समाज को दिखाने की कोशिश करते हैं।

यहां तक  कि दिखावे के लिए परिवार कर्ज लेकर भी बड़ी रकम जुटाते हैं। हिंदू परिवार की शादियों में संगीत और हल्दी जैसी शादी की रस्में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती हैं।

वहीं मुस्लिम परिवार में होने वाले विवाहों में ‘मेंहदी’, ‘निकाह’ और ‘वलीमा’ जैसी रस्में शामिल हैं। ईसाई शादियों में सगाई, शादी और रिसेप्शन समारोह शामिल होते हैं। यानी केवल अंबानी के घर की शादी ही नहीं बल्कि भारतीय समाज में हर शादी को शान का प्रतीक माना जाता है।

हर परिवार अपनी क्षमता के अनुसार शादी समारोह की योजना बनाता है, कोशिश यही होती है कि आयोजन भव्य और यादगार दिखे।

हर परिवार अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और सामाजिक दायरे में अपनी हैसियत दिखाने के लिए भी बढ़ चढक़र खर्च करने में दिलचस्पी दिखाता है।

अरबों डॉलर का विवाह बाजार

निवेश बैंकिंग और पूंजी बाजार फर्म जेफरीज ने शादियों पर होने वाले भारी खर्च की जानकारी दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में शादी समारोहों से जुड़ा बाजार करीब 10.7 लाख करोड़ रुपये का है।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आम तौर पर भारतीय शिक्षा की तुलना में शादी पर दोगुना खर्च करते हैं। यह देश में खाद्य और किराना बाजार के बाद दूसरा सबसे बड़ा बाजार है।

हालांकि ऐसा भी नहीं है शादियों पर केवल भारतीय ही खर्च करते हैं। दूसरे देशों में भी ऐसा चलन है। भारत में शादी का बाजार अमेरिका (5.8 लाख करोड़) से लगभग दोगुना है। हालांकि यह चीन के बाजार (14.1 लाख करोड़) से छोटा है।

विवाह समारोहों की संख्या को देखते हुए भारत में हर साल 80 लाख से एक करोड़ तक विवाह समारोह होते हैं। जबकि चीन में यह आंकड़ा 70 से 80 लाख प्रति वर्ष और अमेरिका में 20-25 लाख है। यानी प्रति शादी के हिसाब से देखें तो चीन और अमेरिकी परिवार भारतीयों की तुलना में ज़्यादा खर्च करते हैं।

लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो भारतीय विवाह समारोहों के दौरान परिवार पर पडऩे वाला आर्थिक बोझ बहुत बड़ा होता है। जेफरीज की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में शादियों पर औसतन 12.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। धूमधाम से होने वाली शादियों पर औसतन 20-30 लाख रुपए ख़र्च होते हैं। लेकिन एक शादी पर खर्च होने वाला औसत व्यय यानी 12.5 लाख रुपये, भारत की जीडीपी की प्रति व्यक्ति आय (2.4 लाख रुपये) का लगभग पांच गुना है। साथ ही एक भारतीय परिवार की औसत सालाना आय (4 लाख रुपये) की तुलना में यह तीन गुना से भी ज्यादा है।

दिलचस्प बात यह है कि भारत में प्री-प्राइमरी स्तर से स्नातक स्तर तक की शिक्षा की औसत लागत की तुलना में यह लागत दोगुनी है। इन्हीं आंकड़ों पर गौर करें तो अमेरिका में शादियों पर होने वाला खर्च वहां की शिक्षा पर होने वाले ख़र्च का आधा है।

इसमें एक बात तो तय है कि ऐसी भव्य शादियाँ कम आय वाले परिवारों पर आर्थिक बोझ पैदा करती हैं।

कर्ज़ की चपेट में परिवार

चेन्नई की कृतिका (बदला हुआ नाम) की जिंदगी में शादी के दस साल तक सब कुछ ठीक रहा। लेकिन उन्होंने कहा कि इस शादी के कारण उनके माता-पिता को कर्ज के जाल से निकलने में करीब दस साल लग गए।

2014 में जब उनकी शादी हुई तो मंडप और खाने पर ही करीब दस लाख रुपये खर्च हो गए थे। यह तब था जब कृतिका लव मैरिज कर रही थी।

कृतिका ने अपनी शादी के खर्चों से सबक सीखा। अब उन्होंने तय किया है कि अपनी दोनों बेटियों की शादी सादगी से करेंगी। इसलिए उन्होंने लड़कियों को इसी जागरूकता के साथ आगे बढ़ाने की सोची है।

आलीशान पार्टियों की ओर युवाओं का आकर्षण

एक तरफ एक ऐसा वर्ग है जो शादी के लिए कर्ज में डूब जाता है तो दूसरी तरफ एक ऐसा वर्ग है जो अपनी जमा पूंजी का ज़्यादातर हिस्सा शादी पर खर्च कर देता है।

चेन्नई के ही दिनेश को अपनी शादी पर लगभग चार-पांच साल तक बचाए गए पैसे का लगभग 70 प्रतिशत खर्च करने में कुछ भी गलत नहीं लगता। दिनेश खुद एक इवेंट प्लानर हैं। उन्होंने शादी के लिए ज्वेलरी, वेडिंग हॉल और स्टेज और सजावट पर करीब 30 लाख रुपये खर्च किए।

दिनेश बताते हैं, ‘हमारी पारंपरिक परंपराओं के अनुसार हमें शादी से पहले कुछ रस्में निभानी होती हैं। हमने सब कुछ बहुत शानदार तरीके से किया। सगाई, शादी, रिसेप्शन, सब कुछ बहुत धूमधाम से किया गया।’

अकेले फोटोशूट के लिए दिनेश ने 1.5 लाख रुपए ख्रर्च किए।

ज्वेलरी पर होता है ज्यादा खर्च

आभूषणों पर होने वाला खर्च शादी के पूरे बजट को प्रभावित करता है। जेफरीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शादी समारोहों के दौरान अकेले आभूषणों पर 2.9 से 3.3 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाते है।

गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों की शादियों में जो महत्व सोने को दिया जाता है, विलासितापूर्ण शादियों में वही महत्व हीरे को मिलता है।

सोने के आभूषण लंबे समय से भारतीय शादियों का एक अभिन्न हिस्सा रहे हैं। दुल्हन का परिवार, दूल्हे के परिवार को दहेज के रूप में सोने के गहने देता आया है और इस पर बहुत पैसा ख़र्च करता है। माता-पिता कर्ज लेकर लड़कियों के लिए आभूषण खरीदते हैं।

शादी समारोह में आभूषणों के बाद खाना ही दूसरा सबसे बड़ा ख़र्च होता है। आमतौर पर लोगों के मनोरंजन पर 1.9 से 2.1 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं। इसके अलावा कपड़े, मेकअप, फोटोग्राफी और अन्य पहलुओं पर खर्च अलग से होता है।

भारत में विवाह के सांस्कृतिक महत्व के कारण भारत के बाहर के देशों में भारतीय विवाह से संबंधित बाजार को बढ़ावा मिला है। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शादी समारोह भारत में ही मनाने पर जोर दिया था।

उन्होंने भारतीय परिवारों से विवाह समारोहों के लिए विदेश जाने के बजाय घरेलू आयोजन स्थलों को चुनने का अनुरोध किया।

भारत को ध्यान में रखते हुए, मुख्य रूप से जयपुर और उदयपुर में महल और होटल और गोवा में समुद्र तट ऐसे स्थान हैं जहां अमीर या बॉलीवुड हस्तियों के विवाह समारोह आयोजित किए जाते हैं।

‘मैरिज कलर्स’ के क्रिएटिव डायरेक्टर प्रदीप चंदर ने कहा कि दक्षिण भारत के तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में मशहूर हस्तियों की शादी करने का चलन बढ़ा है।

वे बताते हैं, ‘अंबानी परिवार ने खाली जगहों पर भव्य दिव्य सेट बनाकर शादी से पहले समारोह आयोजित करके एक नया चलन स्थापित किया। वहीं बॉलीवुड सेलिब्रिटीज अब बीच वेडिंग या हिट फिल्मों पर आधारित अनोखी थीम पर शादी की ओर रुख़ कर रहे हैं। कुछ लोग 'पोन्नियन सेलवन' और ‘बाहुबली’ फिल्मों जैसे थीम सेट भी मांग रहे हैं।’

हालांकि इसके साथ ही ऐसे युवाओं की संख्या भी अच्छी-खासी है जो सादगी से शादी करके खर्च कम करना चाहते हैं। तमिलनाडु के मदुरै जिले के मनोज उनमें से एक हैं।

उन्होंने कहा, ‘मैंने प्रेम विवाह किया। मैंने कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों की मौजूदगी में समारोह किया। कर्ज लेने और शादी के लिए लाखों रुपये खर्च करने के बजाय, हमने उसी पैसे से घर के लिए महत्वपूर्ण घरेलू सामान खरीदने का फैसला किया।’

सामाजिक दबाव और उपभोक्ता संस्कृति

दिल्ली में महिला विकास अध्ययन केंद्र की निदेशक एन। मणिमेकलाई के मुताबिक, मध्यम वर्ग अमीरों की भव्य, असाधारण शादियों की ओर आकर्षित होता है।

उन्होंने बताया, ‘लेकिन, ऐसी महंगी शादियाँ समाज में दबाव पैदा करती हैं। कई लोग किसी भी स्थिति में भव्य समारोह आयोजित करने का दबाव महसूस करते हैं। अगर उसके लिए कर्ज लेने की जरूरत हो तो वे लोग लेते हैं। उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित होकर, युवा पीढ़ी जीवन का भरपूर आनंद लेना चाहती है।’

सच ये भी है कि लोगों के व्यवहार में बदलाव के कारण ऐसे भव्य विवाह समारोह आयोजित करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आम लोगों में दूसरों के व्यवहार को देखकर उसे अपनाने का चलन बढ़ा है। इसे प्रदर्शन से प्रभावित प्रभाव कहा जाता है।

मणिमेकलाई कहती हैं, ‘विवाह समारोहों के दौरान, दुल्हन का परिवार आभूषण, बर्तन, बिजली के उपकरण और अन्य घरेलू सामान खरीदने का खर्च वहन करता है। इसके लिए उन्हें कर्ज भी लेना पड़ता है। लेकिन, कामकाजी लड़कियों की शादी के बाद, माता-पिता को कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती है, जिससे बुजुर्ग माता-पिता कर्ज़ के बोझ तले दब जाते हैं। ’ (bbc.com/hindi)

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