विचार / लेख
-मोहम्मद हनीफ
बॉलीवुड की पुरानी फि़ल्मों में शादी का सीन जरूर होता था।
बारात गाजे-बाजे के साथ आती थी और जब शादी का समय आता था या जोड़ा सात फेरे लेने लगता था, तो एक टूटे दिल वाला ग़मगीन किरदार आता।
यह किरदार आकर डायलॉग बोलता था, ‘बाई, ये शादी नहीं हो सकती।’
फिर फि़ल्में मॉडर्न हो गईं। डायरेक्टरों को अहसास हुआ कि शादी, बारात और गाजे-बाजे के बिना भी फिल्में बनाई जा सकती हैं।
कछ लोगों ने सोचा कि असली और बड़ी कहानी शादी के बाद शुरू होती है और उस पर भी फिल्में बननी चाहिए।
अब आधा साल बीत चुका है। इस आधे साल में इसराइल ने गाजा में हजारों बच्चों की हत्या कर दी है। भारत, ब्रिटेन और फ्रांस में चुनाव भी हो चुके हैं।
एक क्रिकेट वल्र्ड कप भी हो चुका है, लेकिन अंबानी के बेटे की शादी अभी भी चल रही है।
शादी में सितारों का मजमा
शादी में दिखावा करना अमीर लोगों का पुराना रिवाज़ है। पहले मेहंदी, फिर बारात और फिर वलीमा (शादी की दावत) होता था।
चौधरी ने सारे गाँव को निमंत्रण दे दिया। जो शहर का सेठ होता था, वह किसी वजीर-सजीर को बुलाकर, किसी एक्टर या सिंगर को पैसे देकर उनके साथ तस्वीरें खिंचवाता।
इसके बाद रोटी खोल देनी, सबको पेट भरकर खिलानी और उसके बाद तम्बू-टेंट समेट दिए जाने और लोग अपने-अपने घर।
चूंकि अंबानी एक ग्लोबल सेठ हैं इसलिए उनके शगुन भी लंबे हैं। शगुन देने वाले लोगों की लिस्ट में मार्क जक़रबर्ग और बिल गेट्स भी शामिल हुए हैं।
बॉलीवुड के ख़ानों ने भी भांगड़ा किया। जस्टिन बीबर ने बनियान पहनकर डांस किया। रिहाना और दिलजीत दोसांझ नाचे भी हैं और उन्होंने सबको नचाया भी है।
खुद अंबानी और उनके बीवी-बच्चे भी गाने-बजाने के वीडियो दिखाते रहते हैं। मानो हमें बता रहे हों कि हम सेठों के सेठ बन गए हैं लेकिन अंदर से हम भी आपके जैसे ही हैं।
हमारा दिल भी यही चाहता है कि हम शाहरुख़ ख़ान और करीना कपूर बनें और कैमरे के सामने अपने होंठ हिलाएं।
‘हमारी जेब से पैसा निकालकर बेटे की शादी करा रहे’
पुराने सेठ मुनाफा भी मज़दूरों के पसीने से कमाते थे, लेकिन अब आ गये हैं महासेठ।
आजकल तो ऐसा लगता है कि कुछ तो अंबानियों के वर्कर हैं और बाकी सब उनके।
जिस वाई-फ़ाई या मोबाइल डेटा से आप यह लेख पढ़ रहे होंगे शायद उसका बिल आपको अंबानी की कोई कंपनी भेजे।
जिस मोटरसाइकिल में सुबह पेट्रोल भरवाया था वो भी उन्होंने आपको बेचा होगा।
जिस सडक़ पर आप मोटरसाइकिल चलाकर आये हैं हो सकता है उस सडक़ के निर्माण का ठेका भी उनके पास ही हो।
घर की रसोई में जाओगे तो, गैस सिलेंडर भी उनका है और आजकल तो सुना है आटा-दाल, आलू-टमाटर भी बेच रहे हैं।
बाथरूम में सफ़ाई का सामान भी आपको अंबानी की किसी कंपनी ने बेचा होगा।
अब पांच-छह महीने से चल रही शादी को देखकर ऐसा लग रहा है कि अंबानी एक हाथ से हमारी जेब से पैसे निकाल रहे हैं और दूसरे हाथ से उसी पैसे से अपने बेटे की शादी करा रहे हैं।
पता नहीं इतना लंबा जश्न इंडिया की सॉफ़्ट पावर दिखाने के लिए चल रहा है या सिफऱ् अपने बेटे का दिल ख़ुश करने के लिए।
या जैसा कि कुछ लोग कहते हैं कि हमसे कहा जा रहा है कि ‘अरे गरीबों, देखो और जलो।’
लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि अंबानी परिवार को इस बात का अहसास हो कि शादी में जितने भी सौ मिलियन डॉलर का ख़र्च हुआ है, आखिर इस ख़र्च में हमने भी रुपये-रुपये का योगदान दिया है और वे हमें यह बता रहे हैं कि आप भी वीडियो देखें और मजे करें।
इसे हमारी नहीं, बल्कि अपनी ही शादी समझो।
‘हुकूमत का शायद इतना दबदबा नहीं जितना अंबानियों का’
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इंडिया की हुकूमत का शायद इतना दबदबा नहीं है जितना कि अंबानियों का है।
इसलिए किसी में भी इतनी हिम्मत हो ही नहीं सकती कि यह कह दे कि यह शादी नहीं हो सकती है या इस शादी को अब ख़त्म भी कर दो।
लेकिन गरीब लोग हाथ जोडक़र दुआ तो कर ही सकते हैं कि भगवान इस जोड़े को सलामत रखे, लेकिन इस शादी को अभी खत्म होने दीजिए।
टेंट लपेटें। कहीं प्री-वेडिंग और वेडिंग के बाद पोस्ट वेडिंग जश्न न शुरू कर देना। ऐसा न हो कि हनीमून होटल के बाहर भी कैमरे लगे हों और दलेर मेहंदी कोई शादी का गाना गा रहे हों।
इसके बाद हमें किसी काम का नहीं रहना है।
आखिरकार नए जोड़े को भी बच्चे होंगे। फिर वे बड़े होंगे। फिर उनकी भी शादी होगी। उसका बोझ किसे उठाना है?
अगर हमारे पास मज़दूरी करने का समय न हो और हमने आपके मोबाइल डेटा बिल न दिए तो इन बच्चों के बच्चों की शादी का ख़र्च कहां से पूरा होगा? रब्ब-राखा।
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य और विचार बीबीसी के नहीं हैं और बीबीसी इसकी कोई जि़म्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेती है।)