विचार / लेख

जगन्नाथ रथयात्रा पर चंद बातें
09-Jul-2024 1:17 PM
जगन्नाथ रथयात्रा पर चंद बातें

शंभूनाथ

पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा ओडिशा के लोगों के लिए ही नहीं, इस्कॉन वालों और आमतौर पर सर्वत्र एक खास धार्मिक उत्सव है। हम बचपन के दिनों में (बंगाल में) उसे पापड़ भाजा खाने के दिन के रूप में याद करते थे। एक लोक प्रचलित मुहावरा ’अपना हाथ जगन्नाथ’ है।

पुरी के जगन्नाथ मंदिर की खूबी है, इसमें राधा-कृष्ण की जगह बलराम, सुभद्रा और कृष्ण की मूर्ति है। इससे सिस्टरहुड, ‘बहनचारा’ के भाव की स्थापना होती है, लेकिन कहीं भी इस अर्थ का प्रचार नहीं होता, जबकि होना चाहिए। देश–दुनिया में बहनचारा भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है भाईचारा की तरह। बहनचारा भाईचारा की पुरुष सत्तात्मकता से बचाती है।

पुरी का जगन्नाथ मंदिर लगभग हजार सालों से एक बड़ा तीर्थ है। यहां आदि शंकर आए थे। चैतन्य आए थे और भावविभोर होकर नृत्य किया था। बनारस के साथ साथ पुरी भी लंबे समय से एक बड़ा धार्मिक केंद्र था। फिर पंद्रहवीं सदी में मथुरा इन दोनों को चुनौती देता हुआ एक उदार हिंदू केंद्र के रूप में उभरा, जहां वल्लभ दक्षिण से आए और सूर थे। यहां मीरा आई थीं। चैतन्य भी आए थे।

पुरी के पंडे –पुजारियों के बारे में 17वीं सदी में भारत आए फ्रांसीसी बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि ये रथयात्रा के दिन रथ की रस्सी खींचने वाले साधारण लोगों के धार्मिक आवेश को देखकर उन्हें उकसाते थे कि वे रथ के भारी पहियों के नीचे दबकर अपनी जान दे दें, क्योंकि मरने से सीधे स्वर्ग मिलेगा। कुछ व्यक्ति जान दे भी देते थे। धर्म को कभी-कभी कितना नृशंस रूप दे दिया जाता था, उसका यह उदाहरण है।

ओडि़शा के ही 19वीं सदी के लोक कवि और महिमा धर्म चलाने वाले भीमा भोई ने अपनी एक कविता में लिखा है कि जगन्नाथ की मूर्ति केवल काठ का एक टुकड़ा है!

इन यथार्थों के बीच मेरे लिए जगन्नाथ रथयात्रा का महत्व बहनचारे के सबसे बड़े धार्मिक प्रतीक और पापड़ भाजा खाने के आनंद के रूप में है! विश्व इस कोण से जगन्नाथमय हो सके!

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news