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बांग्लादेश में शेख हसीना के संबोधन के बाद और भडक़ी हिंसा, अब तक 25 मौतें
19-Jul-2024 2:03 PM
बांग्लादेश में शेख हसीना के संबोधन के बाद और भडक़ी हिंसा, अब तक 25 मौतें

अकबर हुसैन

आरक्षण के विरोध में जारी देशव्यापी आंदोलन में अब तक बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में कम से कम 25 लोगों की मौत हो चुकी है।
इसके अलावा सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। आंदोलन और हिंसा लगातार तेज हो रही है। प्रदर्शनकारी कई जगहों पर पुलिस बल के साथ हिंसक संघर्ष में आमने-सामने हैं।
देश के कई हिस्सों में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण को खत्म कर दिया जाए।
यूनिवर्सिटी के छात्र बीते कुछ दिनों से 1971 के मुक्ति युद्ध में लडऩे वाले सैनिकों के बच्चों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का विरोध कर रहे थे।
1971 में पाकिस्तान से आज़ादी की जंग लडऩे वालों को यहां मुक्ति योद्धा कहा जाता है। देश में एक तिहाई सरकारी नौकरियां इनके बच्चों के लिए आरक्षित हैं।
इसी के खिलाफ छात्र बीते कुछ दिनों से रैलियां निकाल रहे थे। छात्रों का कहना है कि आरक्षण की ये व्यवस्था भेदभावपूर्ण है, जिसकी जगह पर मैरिट के आधार पर नौकरी दी जानी चाहिए।

शेख हसीना के संबोधन के बाद और भडक़ी हिंसा
प्रधानमंत्री शेख़ हसीना बुधवार को जब राष्ट्र के नाम संबोधन कर रही थीं तो सबकी निगाहें इस पर लगी थीं कि वो क्या बोलती हैं। लोग इंतज़ार कर रहे थे कि सरकार मौजूदा परिस्थिति में किस राह पर आगे बढ़ेगी।

साथ ही यह उत्सुकता भी थी कि आरक्षण विरोधी आंदोलनकारी प्रधानमंत्री के भाषण पर क्या प्रतिक्रिया जताएंगे।
प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री के भाषण को खारिज़ करने में ज्यादा देरी नहीं की। इस भाषण के बाद आरक्षण विरोधी आंदोलनकारियों ने ‘पूर्ण बंद’ का आह्वान किया। रात से ही देश के विभिन्न इलाकों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए।

एक ओर आरक्षण का विरोध करने वाले सडक़ों पर उतरे तो दूसरी ओर सत्तारूढ़ पार्टी के विभिन्न संगठन भी सडक़ों पर उतर आए।
उसके बाद राजधानी ढाका समेत विभिन्न इलाकों से मौत की खबरें सामने आती रहीं। मौजूदा हालात को देखकर लग रहा है कि बुधवार की रात को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद टकराव और बढ़ गया है।

प्रधानमंत्री के आश्वासन के बावजूद शांत नहीं हुए आंदोलनकारी
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आंदोलनकारियों से धैर्य रखने का आग्रह करते हुए भरोसा दिया कि अदालत के जरिए उनको ‘इंसाफ’ मिलेगा। उन्होंने लोगों से न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा रखने की भी अपील की।

राजनीतिक पर्यवेक्षक मोहिउद्दीन अहमद का कहना था, ‘मौजूदा परिस्थिति में एक सरकार का मुखिया अपने शासन के समर्थन में जैसी सफाई दे सकता था, हसीना ने ठीक वैसा ही कहा है। मूल समस्या यह है कि उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है।’

सरकार की ओर से शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने और विश्वविद्यालयों के आवासीय छात्रावासों को ख़ाली कराने के बाद भी हकीकत में आंदोलन की तस्वीर नहीं बदली है।
लेकिन आरक्षण विरोधियों का कहना है कि उनको प्रधानमंत्री के भाषण से जिसकी उम्मीद थी, वह हासिल नहीं हो सका। ढाका के विभिन्न इलाकों में आरक्षण विरोधी गुरुवार सुबह से ही सडक़ों पर उतर आए थे।

ढाका कैंटोनमेंट के पास स्थित ईसीबी परिसर भी ऐसा ही एक इलाका है, जहां बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं। वहां कुछ आंदोलनकारी आरक्षण व्यवस्था में सुधार के समर्थन में नारे लगा रहे थे। उसी समय छात्रों ने कुछ वाहनों में तोडफ़ोड़ करने के बाद उनमें आग लगा दी।

प्रधानमंत्री ने बुधवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में आरक्षण सुधार आंदोलन के मुद्दे पर जो कुछ कहा, उस पर कुछ छात्रों ने आपत्ति जताई।
खुद को एक निजी विश्वविद्यालय का छात्र बताने वाले अलीम खान ने बीबीसी बांग्ला से कहा कि प्रधानमंत्री का भाषण हम लोगों को स्वीकार नहीं है। इसकी वजह यह है कि उन्होंने अपने भाषण में आरक्षण रद्द करने के बारे में कुछ नहीं कहा है।

अलीम खान ने कहा, ‘प्रधानमंत्री एक ओर तो छात्रों से शांति और संयम बरतने को कह रही हैं, लेकिन दूसरी ओर पुलिस और बीजीबी ने छात्र लीग के सदस्यों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। यह सरकार का दोहरा मापदंड है।’

सरकार का रुख़ साफ़ नहीं, छात्रों ने कहा-माकूल जवाब देंगे
कानून मंत्री अनीस-उल हक ने छात्रों के कड़े विरोध के बीच गुरुवार की दोपहर को कहा, ‘आरक्षण में सुधार के मुद्दे पर सरकार में सैद्धांतिक रूप से आम सहमति बन गई है। सरकार सुधार के मुद्दे पर आंदोलनकारियों के साथ किसी भी समय बातचीत के लिए तैयार है।’

लेकिन बुधवार को प्रधानमंत्री के भाषण में आंदोलनकारियों के साथ बातचीत का कोई जिक्र नहीं था।
परिस्थिति पर काबू पाने के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन आरक्षण मुद्दे की सुनवाई को तय समय से पहले कराने की पहल की है।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि छात्रों का विरोध प्रदर्शन इस स्तर तक पहुंच गया है कि बिना बातचीत के महज बल प्रयोग से इस समस्या का समाधान संभव नहीं है।
आरक्षण सुधार आंदोलन के प्रमुख संयोजक नाहिद इस्लाम ने फेसबुक पर जारी एक बयान में यह बात साफ कर दी है।

उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है, ‘सरकार ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए हिंसा का सहारा लेकर मौजूदा स्थिति पैदा की है। इसके लिए सरकार ही जि़म्मेदार है। सरकार ने बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। अगर सुरक्षा बलों को सडक़ों से नहीं हटाया गया, हॉल, कैंपस और शैक्षणिक संस्थान नहीं खोले गए और अगर अब भी गोलीबारी जारी रही तो सरकार को इसकी पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी।’

उनका कहना था कि महज़ आरक्षण व्यवस्था में सुधार से ही कोई नतीजा नहीं निकलेगा। पहले तो सरकार ने न्यायपालिका का इस्तेमाल करते हुए हमारी मांग पर ध्यान नहीं दिया।
उसने सुरक्षाबलों और पार्टी के काडरों की सहायता से आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया। अब वह बातचीत के नाम पर नया नाटक कर रही हैं। हम न्यायिक जांच समिति के नाम पर भी कोई नाटक स्वीकार नहीं करेंगे।

इस आंदोलन के एक अन्य संयोजक आसिफ महमूद ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा है, ‘एक के बाद एक हत्याओं के जरिए सरकार आखिर क्या संदेश देना चाहती है? इस अत्याचार का माकूल जवाब दिया जाएगा।’

आंदोलन के हिंसक होने से बढ़ी चिंता
कई लोग मानते हैं कि यह आंदोलन अब सिर्फ आरक्षण विरोधी आंदोलन तक ही सीमित नहीं रह गया है।
कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह आंदोलन युवा समाज में बढ़ रही नाराजगी की अभिव्यक्ति है।
हालांकि आंदोलन का नेतृत्व करने वाले छात्र पहले कहते रहे हैं कि उनका आंदोलन सिर्फ आरक्षण सुधार के मुद्दे तक ही सीमित है। इसके साथ किसी अन्य मुद्दे का कोई संबंध नहीं है।
कई आंदोलनकारियों का मानना है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के जरिए छात्रों को तात्कालिक रूप से शांत करने का प्रयास किया था।

अहमद कहते हैं, ‘एक ओर तो आंदोलनकारियों पर हमले किए जा रहे हैं और दूसरी ओर वो (प्रधानमंत्री शेख हसीना) अपने भाषण के ज़रिए परिस्थिति संभालने का प्रयास कर रही हैं। यह परस्पर विरोधाभासी स्थिति है।’

करीब दो सप्ताह पहले शुरू होने वाला आरक्षण विरोधी आंदोलन शुरुआत में शांतिपूर्ण था। सत्तारूढ़ पार्टी के छात्र संगठन ने इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया था। आंदोलनकारियों ने भी पहले हिंसा का रास्ता नहीं चुना था। लेकिन अचानक यह आंदोलन हिंसक हो उठा।

राजनीतिक विश्लेषक और जगन्नाथ विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति प्रोफेसर सादिका हलीम को लगता है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में वह सब कहा है, जितना संभव था।

वह कहती हैं, ‘प्रधानमंत्री की ओर से अदालत के बारे में कोई सीधी टिप्पणी करना संभव नहीं है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण हसीना के लिए राष्ट्र प्रमुख के तौर पर आरक्षण रद्द करने का ऐलान करना संभव नहीं है। सरकार की मुखिया के तौर पर उन्होंने साफ़ संकेत दिया है कि अदालत का फ़ैसला छात्रों ख़िलाफ़ नहीं जाएगा।’

हलीम का कहना था, ‘शुरुआत में आंदोलन केवल छात्रों तक ही सीमित था। जैसे-जैसे यह आगे बढऩे लगा, कई अन्य लोग भी इसमें शामिल हो गए। उसके बाद आंदोलन का स्वरूप बदलने लगा है।’ (बीबीसी)

 

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