विचार / लेख

जाति का भूत
09-Nov-2023 3:45 PM
जाति का भूत

 डॉ. आर.के. पालीवाल

अंग्रेजों ने हम भारतीयों के साथ हिंदू मुस्लिम कार्ड खेलकर बंगाल विभाजन से लेकर भारत के विभाजन तक का बड़ा नुकसान किया था। वह तो गनीमत रही कि उस दौर में महात्मा गांधी और मौलाना आजाद जैसे नेता थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माध्यम से धार्मिक नफरत के जहर को कम करने की जी जान से कोशिश की वरना धार्मिक उन्माद में हुए नर संहार और दुर्दांत ज्यादतियों का दायरा न जाने और कितना घृणित होता। अंग्रेज दलित कार्ड खेलकर हिंदुओं को भी बांटना चाहते थे लेकिन महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर की सूझबूझ से पूना समझौते ने उसे विफल कर दिया था। वर्तमान दौर के सत्ता लोलूप नेता जाति का कार्ड खेलकर जब तब समाज में जातिगत भावना भडक़ाने की कोशिश करते रहते हैं ताकि जातिगत समीकरण के आधार पर सत्ता हासिल कर सकें।

जातिगत अहंकार और भेदभाव ने भारतीय सनातन समाज का कालांतर में वैसे ही खूब नुकसान किया है। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, डॉक्टर अंबेडकर, डॉ राम मनोहर लोहिया आदि विभूतियों ने अपनी अपनी तरह से सनातन धर्म और संस्कृति की एकता  और जातिगत अहंकार और भेदभाव को काफी हद तक कम कर सामाजिक सौहार्द के लिए काफी प्रयास किए हैं लेकिन सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने वाले नेता जातियों के बीच की खाई को और चौड़ा एवं और गहरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। ट्विटर आदि सोसल नेटवर्किंग प्लेटफार्म पर बिहार से शुरु हुई जातिगत जनगणना पर जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही हैं उनसे लगता है कि जाति की राजनीति करने वाले नेता जातिगत बंटवारे को स्थाई और ज्यादा गहरा करके ही दम लेंगे।बिहार का ही उदाहरण लें तो जातिगत जनगणना का समर्थन करने वाले सत्ताधारी दलों के लिए भी जातिगत आंकड़े परेशानी का सबब बन रहे हैं। ऐसी मांग उठ रही है कि मुस्लिम यादव से ज्यादा हैं, इसलिए लालू प्रसाद यादव और उनके कुनबे राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव की जगह मुस्लिम नेता को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। ब्राह्मण मात्र चार प्रतिशत हैं इसलिए वे अल्पसंख्यक घोषित होने की दावेदारी कर रहे हैं। भविष्य में इसी तरह की मांग अन्य जातियों से आएंगी। मणिपुर की हिंसा से हमने कोई सबक नहीं लिया। राजस्थान के गुर्जर आंदोलन से हमने कोई सबक नहीं लिया। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी में हाशिए पर पहुंची उमा भारती ने पिछड़ी जातियों की राजनीति की हुंकार भर अपनी पार्टी को भी कटघरे मे खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान हालात में पिछड़ी जातियों के आरक्षण को कोई माई का लाल नहीं रोक सकता और महिलाओं के आरक्षण में भी पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिए बगैर यह बिल महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं कर सकता।

पिछड़ी जातियों का कुल वोट प्रतिशत एक वर्ग के रुप में सबसे ज्यादा है इसलिए वह राजनीति के लिए नई गोट बन गया है। हालाकि अनुसूचित जातियों और जन जातियों की उपजातियों की आपसी विषमताओं की तरह पिछड़ी जातियों में भी एकरसता का नितांत अभाव है। जिस तरह जनजातियों में मीणा और कोरकू, सहरिया और बैगा आदि जनजातियों के हालात में धरती आसमान का अंतर है उसी तरह यादव और अन्य पिछड़ी जातियों में भी वैसा ही अंतर है। आगे चलकर पिछड़ी जातियों में भी नई नई खाई पैदा करने की कोशिश की जाएंगी।1931 में ब्रिटिश शासन में जातिगत जनगणना हुई थी। आज़ादी के बाद आरक्षण के सबसे प्रबल समर्थक डॉ अम्बेडकर ने भी केवल दस साल के लिए आरक्षण की वकालत की थी जिसे अधिकतम बीस साल किया जा सकता है। आज़ादी के बाद के नेताओं को जातिगत आरक्षण एक ऐसी मुर्गी दिखाई देने लगी जो चुनाव के समय सत्ता के अंडे देती है। इसे पहले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पाला, फिर अर्जुन सिंह ने और अब नीतीश कुमार और लालू यादव के परिवार के साथ नेहरू के वंशज राहुल गांधी भी पाल रहे हैं।

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