विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बैंच ने एक अभूतपूर्व फैसले में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले देश के तमाम सांसदों और विधायकों पर नकेल कसने की शानदार शुरुवात की है। यदि उनके इस फैसले को विभिन्न राज्यों के हाई कोर्ट और जि़ला अदालतों ने अपने अपने क्षेत्राधिकार में ठीक से कार्यान्वित कर दिया तो यह निर्णय राजनीति से आपराधिक तत्वों की सफाई के लिए मील का पत्थर साबित होगा और भविष्य के लिए ऐतिहासिक नजीर बन सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने दिशा निर्देश जारी किए हैं कि देश के सभी हाई कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश स्वत: संज्ञान लेकर अपने अपने क्षेत्र में सांसदों और विधायकों के आपराधिक मामलों की समीक्षा करें। उन्होने जि़ला अदालतों के प्रमुखों को भी यह दायित्व सौंपा है कि वे अपने जिलों के सांसदों और विधायकों के आपराधिक मामलों के डोजियर हमेशा अपडेट करते रहेंगे ताकि जब भी हाई कोर्ट उनसे यह जानकारी मांगे तो वे तुरंत अद्यतन जानकारी हाई कोर्ट की समीक्षा के लिए प्रस्तुत कर सकें।
यदि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ज़ारी यह दिशा निर्देश सभी हाई कोर्ट भी उसी भावना से लागू कर दें जो सर्वोच्च न्यायालय ने दिखाई है तो एक पंच वर्षीय योजना में सांसदों और विधायकों के अरसे से लटके सभी मामलों में त्वरित निर्णय आ सकते हैं। यह और बेहतर होता यदि सर्वोच्च न्यायालय यह भी निर्देश देता कि तीन साल से अधिक लंबित मामलों में संबंधित न्यायालय के जज को हर तीन महीने में एक रिर्पोट देनी होगी कि यह मामला अभी तक क्यों नहीं निबटा और पिछली तिमाही में उसमें क्या प्रगति हुई है। यह प्रशासनिक प्रावधान भी जरूरी है कि ऐसे मामलों की प्रतिदिन सुनवाई होनी चाहिए जो पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं। वर्तमान दौर में चुनाव इतने महंगे हो गए हैं कि अधिकांश विधायक और सांसद करोड़पति हैं क्योंकि आम आदमी के लिए दलों का टिकट पाना लगभग असंभव हो गया। उनके रसूख हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले बड़े वकीलों से हैं। धन और रसूख के कारण जन प्रतिनिधि अपने आपराधिक मामलों को साल दर साल टालने में सक्षम हैं।सत्ताधारी दलों के सांसदों और विधायकों की पहुंच पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों तक भी होती है जिनकी मदद से वे हर पल शहर में उपलब्ध होते हुए भी खुद को आसानी से कई साल तक फरार दिखा कर अदालती कार्यवाही से बचते रहते हैं।ज्यादा समय मिलने पर गवाहों को भय और लालच से तोडऩे का खतरा भी बहुत बढ जाता है।
जिला अदालतों और हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले संवेदनशील वकीलों और बार संघों का भी यह कर्तव्य बनता है कि वे भी अपने इलाकों में सांसदों और विधायकों के आपराधिक मामलो की प्रगति पर पैनी नजऱ रखें और समय समय पर जिला न्यायधीश और अपने राज्य के हाई कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को ज्यादा विलंब वाले मामलो की सूचना देते रहें।सर्वोच्च न्यायालय ने जो साहसिक कदम उठाया है उसमें सब प्रबुद्ध नागरिक और न्याय एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था मे सुधार के लिए प्रयासरत समाजसेवी संस्थाएं जुड़ेंगी तो निश्चित रूप से राजनीतिक भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी पर लगाम कसी जा सकती है। संवेदनशील मीडिया की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि जिन मामलों को उसने घटना के समय सनसनीखेज खबरों की सुर्खियां बनाकर प्रकाशित किता था, निश्चित अंतराल के साथ उन मामलों की न्यायिक प्रगति की रिर्पोट भी प्रकाशित करें ताकि यह सब मामले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आते रहें।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर नागरिक का कर्तव्य होता है कि वह समाज की शुचिता के लिए हर संभव प्रयास करे। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय की पहल अपना रंग दिखाएगी।