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धुर दक्षिणपंथी माहौल के सताए जर्मन शिक्षकों को मिला पुरस्कार
27-Nov-2023 7:04 PM
धुर दक्षिणपंथी माहौल के सताए जर्मन शिक्षकों को मिला पुरस्कार

जर्मनी में छात्रों के बीच धुर दक्षिणपंथी रुझानों के विरोध के बाद स्कूल छोड़ने को मजबूर दो शिक्षक नागरिक साहस पुरस्कार से सम्मानित किए गए. लेकिन स्कूलों में नस्लवाद की समस्या से निपटने के लिए साहसिक बदलावों की जरूरत है.


 पढ़ें डॉयचे वैले पर बेन नाइट का लिखा-

इनमें से एक शिक्षक हैं माक्स टेस्के। वे ये नहीं बताते कि अभी वो कहां काम करते हैं और ये बहुत स्वाभाविक भी है। इस साल जुलाई में, जर्मनी के पूर्वी प्रांत ब्रांडेनबुर्ग के बुर्ग शहर में उन्हें और उनकी सहकर्मी लॉरा निकेल को धुर-दक्षिणपंथी दबंगों ने स्कूल छोडऩे को मजबूर कर दिया। उनकी गलती बस इतनी थी कि उन्होंने स्कूल में धुर-दक्षिणपंथी प्रवृत्तियों के बारे में एक खुली चिट्ठी लिखी थी।

पूरे देश में हलचल मचा देने वाली उस चिट्ठी में उन्होंने कहा था कि उन्हें हर रोज ‘दक्षिणपंथी चरमपंथ, सेक्सिज्म और होमोफोबिया+ के मामलों का सामना करना पड़ता है। टेस्के और निकेल ने लिखा, ‘स्कूल के फर्नीचर स्वास्तिक के निशानों से अटे पड़े हैं, क्लास में उग्र दक्षिणपंथी संगीत बजता रहता है और स्कूल के गलियारे लोकतंत्र विरोधी नारों के शोर से पटे रहते हैं।’

‘दक्षिणपंथी छात्रों और उनके मातापिता के समूहों का खुला विरोध करने वाले अध्यापकों और विद्यार्थियों को अपनी सुरक्षा का डर सताता रहता है।’ ये लिखते हुए दोनों शिक्षकों ने ‘खामोशी की दीवार और स्कूल अधिकारियों और राजनीतिज्ञों से मदद के अभाव’ की आलोचना भी की। चिट्ठी सार्वजनिक होते ही दोनों टीचरों का जीना मुहाल हो गया। पूरे शहर में लैंपपोस्टों पर फ्लायर टंगे मिले जिनमें उनके खिलाफ लिखा था कि वे बर्लिन चले जाएं (फ...ऑफ टू बर्लिन)।’

बराबरी के लिए खड़े होने की जुर्रत
वारदात के चार महीने बाद, अब दोनों शिक्षकों को बर्लिन में एक नागरिक साहस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। होलोकॉस्ट स्मारक संगठन और बर्लिन का यहूदी समुदाय संयुक्त रूप से ये पुरस्कार देते हैं। टेस्के और निकेल इस बीच अपनी जिंदगियां फिर से संवार चुके हैं। अज्ञात शहरों में उन्हें न सिर्फ नई नौकरियां मिल गई बल्कि पब्लिक फिगर हो जाने के बाद उनके एक के बाद एक इंटरव्यू होने लगे और पैनल की बहसों में बुलाया जाने लगा।

टेस्के ने डीडब्ल्यू को बताया, ‘बहुत कुछ बदल गया। एक तरफ उस कॉटबुस शहर में जहां मैं 31 साल रहा, जो मेरा घर था, वहां से जाना पड़ा, नये सहकर्मी और विद्यार्थी मिले, और दूसरी तरफ मीडिया में जगह मिली जिसके जरिए हम इन मुद्दों को सार्वजनिक करने की कोशिश कर रहे हैं।’

उन्हें अपने लिए एक नया काम भी मिल गया, जर्मन ड्रीम के लिए ‘वैल्यू एम्बेसेडर्स’ की भूमिका। इसका मतलब वे स्कूलों में सेमिनार करते हैं, जहां अपने अनुभव सुनाते हैं और टीचरों और छात्रों को बताते हैं कि चरमपंथ के खिलाफ कैसे खड़ा होना है। टेस्के कहते हैं, ‘ये हमारे लिए वाकई महत्वपूर्ण हो गया है। हमने गौर किया कि हम अकेले नहीं थे और हमने जो किया वो सही था।’ उनके मुताबिक, ‘हम लोग खुद को माउथपीस कहेंगे और ये वो रोल है जिसकी मैं बड़ी कद्र करता हूं क्योंकि ऐसे बहुत से लोग हैं जो ऐसे हालात में फंसे हैं जो मेरी स्थिति से भी ज्यादा पेचीदा और मुश्किल है।’

टीचरों को उनके हाल पर छोड़ा
जर्मन ड्रीम की प्रमुख ड्युसेन टेकल ने 2019 में इस अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, ‘बुनियादी तौर पर ये इस बारे में है कि धुर-दक्षिणपंथी पॉपुलिज्म और यहूदियों के प्रति नफरत के खिलाफ लड़ाई में हम शिक्षकों को अकेला छोड़ रहे हैं। दुनिया बदल चुकी है। लेकिन पाठ्यक्रम अभी भी पुराने दशकों में फंसे पड़े हैं।’

जर्मन ड्रीम इस खाई को पाटते हुए उनके सेमिनारों का ढांचा बनाने की कोशिश करता है, जिनकी अगुवाई तमाम पेशों से जुड़े लोग करते हैं। टीचर अपनी गुजारिश भेजते हैं, उनके आधार पर मुद्दे चुने जाते हैं चाहे वो पश्चिम एशिया का मुद्दा हो, यूरोप में आप्रवासियों का या इस्लामोफोबिया या फिर समलैंगिकता।

टेकल के मुताबिक, ‘बहुत सारे शिक्षक हमें अपने सुझाव या प्रतिक्रिया लिखकर भेजते हैं। दुनिया में जो कुछ हो रहा है, उससे वे भी हैरान-परेशान हैं। बच्चे स्कूल में एक खास माइंडसेट के साथ आते हैं, जो उन्हें अपने माता-पिता से मिला होता है या इंटरनेट से, और टीचर अपने स्तर पर इन तमाम चीजों से नहीं निपट सकते, चाहे वे कितने ही समर्थ और योग्य क्यों न हों।’

आंकड़े दिखाते हैं कि टेस्के और निकेल के अनुभव, अलग नहीं। अक्टूबर में जारी ब्रांडेनबुर्ग पुलिस के नये आंकड़ों के अनुसार 2022 में ‘प्रोपेगेंडा क्राइम’ के 159 मामले स्कूलों में आए। ज्यादातर नाजी प्रतीकों या निशानों से जुड़े थे। महामारी से पहले 2018 में 136 मामले सामने आए थे। टेस्के कहते हैं, ‘चिट्ठी लिखने से पहले हम जानते थे कि ये सिर्फ हमारे स्कूल तक सीमित नहीं। दक्षिण ब्रांडेनबुर्ग के एक शहर स्प्रेमबर्ग में एक स्कूल के दौरे पर मैंने खुद इसका अनुभव किया। दक्षिणपंथी छात्रों ने मुझे धमकाया और मुझ पर हमला किया।’

‘चुप्पी की दीवार’ को तोडऩे की जरूरत
टेस्के और निकेल ने जो तूफान पैदा किया, उस पर नेताओं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जर्मन राष्ट्रपति फ्रांक-वाल्टर श्टायनमायर ने कहा कि उस चिट्ठी और इस बात ने उन्हें ‘स्तब्ध’ कर दिया कि शिक्षकों को वो लिखनी पड़ी। टेस्के और निकेल ने जिन घटनाओं का जिक्र किया, उनके बारे में ब्रांडेनबुर्ग की सरकार ने जांच कराने का फैसला किया। शिक्षा मंत्री स्टेफेन फ्राइबर्ग ने शिक्षकों के इन आरोपों से इंकार किया कि उन्हें कोई मदद नहीं मिली।

अगस्त में उन्होंने टागेसश्पीगेल अखबार को बताया, ‘अपने इन दो अध्यापकों कि हिफाजत के लिए जो कुछ भी राज्य मशीनरी से संभव हो सका, वो सब हमने किया और करते रहेंगे।’ सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता फ्राइबर्ग ने ये वादा भी किया कि स्कूलों में हिंसा से निपटने की कार्ययोजना में नया साल शुरू होते ही सुधार किया जाएगा।

फिर भी उन्होंने माना कि समग्र तौर पर समाज में धुर-दक्षिण चरमपंथ की समस्या तो है। फ्राइबर्ग ने अखबार से कहा, ‘अलग-अलग परिवारों में अब दक्षिणपंथी चरमपंथ के रुझानों वाली दूसरी पीढ़ी उभर आई है। ये असर तो पड़ा ही है। ये भी सच है कि क्षेत्रीय स्तर पर कुछ नाजी ढांचे बने हुए हैं, इस नाटकीय स्थिति को मैंने कभी कमतर नहीं आंका।’

स्कूलों में बदलाव
लेकिन टेस्के और टेकल मानते हैं कि स्कूलों के भीतर गहरे स्तर पर बदलाव होने चाहिए। टेस्के कहते हैं, ‘राजनीतिक शिक्षा जैसे विषय क्लास में और ज्यादा पढ़ाए जाने चाहिए। सप्ताह में एक बार से ज्यादा। मेरा ये भी मानना है कि लोकतांत्रिक शिक्षा के विषय पर टीचरों के लिए अनिवार्य कोर्स रखे जाने चाहिए।’ जर्मनी में शिक्षा नीति, संघीय सरकार की ओर से नहीं बल्कि राज्यों के स्तर पर लागू की जाती है। हर राज्य ‘राजनीतिक शिक्षा’ का अपना स्तर खुद तय करता है कि लोकतांत्रिक संविधान के सिद्धांतों में से क्या, कब और कैसे पढ़ाना है।

युवाओं और बच्चों से जुड़ी चिंताएं पूर्वी जर्मनी तक सीमित नहीं। बवेरिया सरकार भी स्कूलों में धुर-दक्षिण रुझानों के उभार पर चिंतित है। बवेरिया प्रांत में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के हालिया चुनावी अभ्यास में धुर-दक्षिणपंथी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) पार्टी ने 14।9 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया। वास्तविक प्रांतीय चुनाव में भी एएफडी को करीब उतने ही 14।7 फीसदी वोट मिले थे। प्रतिक्रियास्वरूप बवेरिया राज्य के मुख्यमंत्री मारकुस सोयडर ने हर हफ्ते ‘संवैधानिक 15 मिनट’ का विचार पेश किया है जिसमें कक्षाओं में जर्मन संविधान के एक पहलू पर चर्चा होगी।
टेकल कहती हैं ऐसे विचार एक अच्छी शुरुआत हो सकते हैं लेकिन उन्हें आगे ले जाना होगा। ‘स्कूलों में हमें नए विषय चाहिए, हमें स्वीकार करना होगा कि ये आप्रवासन वाला समाज है। हमारे सामने पूरी तरह नई समस्याएं, नए मुद्दे और नए अवसर मौजूद हैं।’ (dw.com)

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