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भारत और चीन वाले गुट पर अर्जेंटीना का बदला रुख, किसके लिए बताया जा रहा शर्मनाक
28-Nov-2023 4:32 PM
भारत और चीन वाले गुट पर अर्जेंटीना का बदला रुख, किसके लिए बताया जा रहा शर्मनाक

अर्जेंटीना के राष्ट्रपति चुनाव में हाबियर मिलेई की जीत से चीन के दबदबे वाले गुट ब्रिक्स के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई है।

ब्रिक्स में ब्राज़ील, रूस, इंडिया और साउथ अफ्ऱीका हैं।

इसी साल अगस्त महीने में दक्षिण अफ्ऱीका में इसे ब्रिक्स प्लस करते हुए कई अन्य देशों को भी सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया गया था।

जिन देशों को आमंत्रित किया गया था, उनमें अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और यूएई थे।

अगले साल जनवरी महीने में ये देश ब्रिक्स के पूर्णकालिक सदस्य बन जाते। लेकिन अर्जेंटीना में हाबियर मिलेई की नई सरकार ने ब्रिक्स में शामिल होने का इरादा बदल दिया है।

अर्जेंटीना के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति हाबियर मिलेई की विदेशी मामलों की सलाहकार दियाना मोनदिनो ने इसी महीने 19 नवंबर को कहा था कि अर्जेंटीना ब्रिक्स में शामिल होने की योजना पर आगे नहीं बढ़ेगा।

दियाना ने कहा क्या था?

दियाना मोनदिनो ने रूसी समाचार एजेंसी स्पूतनिक न्यूज़ से कहा था, ‘अर्जेंटीना अभी इस गुट से क्या हासिल कर लेगा, यह हमारी समझ से बाहर है। अगर भविष्य में हमें लगता है कि इसमें शामिल होना हमारे लिए फ़ायदेमंद है तो ज़रूर विचार करेंगे।’

अगस्त महीने में जिन छह देशों को ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, उनमें अर्जेंटीना दक्षिणी अमेरिका का एकमात्र देश था। लेकिन हाबियर मिलेई ने अपने चुनावी कैंपेन में ही वादा किया था कि वह चुनाव जीते तो ब्रिक्स की सदस्यता को स्वीकार नहीं करेंगे।

हाबियर मिलेई चुनाव जीत गए हैं और जनवरी 2024 से देश की बागडोर संभालेंगे।

सामरिक मामलों के जाने-माने विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी अर्जेंटीना के इस रुख़ को चीन के लिए शर्मिंदगी के रूप में देखते हैं।

ब्रह्मा चेलानी ने ट्वीट कर कहा है, ''चीन के लिए यह शर्मनाक है। चीन के अगुआई वाले इस गुट ने जोहानिसबर्ग में पाँच सदस्य से बढक़र 11 सदस्यों वाला गुट करने का फ़ैसला किया था। अर्जेंटीना में आने वाली नई सरकार ने कहा है कि वह ब्रिक्स में शामिल होने वाले निमंत्रण को स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि इससे कोई ठोस फ़ायदा नहीं होने जा रहा है।’

चेलानी कहते हैं, ‘अर्जेंटीना के इस क़दम को देखते हुए चीन ने ब्रिक्स को एक अहम मंच बताते हुए कहा कि वो ब्रिक्स परिवार में शामिल होने की इच्छा रखने वाले किसी भी देश का स्वागत करेगा। चीन बोल ऐसे रहा है जैसे वो ड्राइवर सीट पर हो और सब कुछ वही चला रहा है। हाल ही में चीन ने पाकिस्तान को ब्रिक्स में शामिल होने के लिए कहा था।’

चीन से संबंधों पर क्या रुख़

हाबियर मिलेई देश के चुनावों में वित्त मंत्री सर्जियो मासा के ख़िलाफ़ मैदान में थे। हालांकि चुनाव अधिकारियों ने चुनावी नतीजों का औपचारिक तौर पर एलान नहीं किया है।

शुरुआती आंकड़ों से पता चला है कि मिलेई को 56 फ़ीसदी वोट और मासा को 44 फ़ीसदी वोट मिले हैं। लगभग 99 फ़ीसदी वोटों को गिनती अब तक हो चुकी है।

इससे पहले दक्षिण पंथी मिलेई ने कहा था कि वो कम्युनिस्ट देशों के साथ व्यापार नहीं करेंगे। साथ ही मिलेई ने चीन से संबंध तोडऩे और 'दुनिया के सभ्य पक्षों' से संबंध स्थापित करने की वकालत की थी।

मिलेई ने चीन पर मासा के समर्थन में चलाए जा रहे यू-ट्यूब अभियानों को फंड करने का आरोप भी लगाया था।

हालांकि बीते कुछ हफ़्तों में मिलेई के सहयोगियों ने ये कोशिश की कि वो संंयम बरतते हुए बयानबाज़ी करें ताकि मतदाताओं को लुभाया जा सके।

इसी महीने आयोजित एक कार्यक्रम में दियाना मोनदिनो ने कहा कि अर्जेंटीना और बीजिंग के संबंधों में कोई रुकावटें नहीं आएंगी।

ठीक इसी दौरान मोनदिनो ने ये भी कहा कि मिलेई के साथ जो गठबंधन है, वो सरकार और चीन के बीच हुए किसी ''गोपनीय समझौते'' की जांच करने को उत्सुक रहेगा।

जानकारों का क्या कहना है?

जानकारों का कहना है कि चीन और अर्जेंटीना के संबंधों में बदलाव की संभावनाएं काफ़ी कम हैं।अर्जेंटीना के नेशनल साइंटिफिक एंड टेक्निकल रिसर्च काउंसिल के बेरनाबे मालकाल्ज़ा ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा, ‘अर्जेंटीना के पूर्व राष्ट्रपति और दक्षिणपंथी नेता माउरिसियो मैक्री का साथ पाने के लिए मिलेई के सहयोगियों को कुछ रियायतें देनी पड़ी थीं।’

ब्राज़ील के बाद चीन अर्जेंटीना का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। ऐसे में मैक्री की ओर से ये शर्त थी कि चीन से मज़बूत आर्थिक संबंध बनाए रखे जाएं।

मालकाल्ज़ा कहते हैं, ‘मौजूदा संकट के बीच अर्जेंटीना को डॉलर्स की सख़्त ज़रूरत है। साथ ही केंद्रीय बैंकों और प्रोजेक्टस को जारी रखने के लिए उसे फंड की ज़रूरत है। ऐसे में चीन एक अहम भूमिका निभा सकता है।’

2008 के बाद से अर्जेंटीना चीन से बड़े स्तर पर वित्तीय तौर पर जुड़ा रहा है। दोनों देशों के बीच नौ लोन एग्रीमेंट के ज़रिए 8।1 बिलियन डॉलर के समझौते हुए। इनमें से 7.7 बिलियन डॉलर सीधे चीन डिवेलपमेंट बैंक और चीन के एक्सपोर्ट इंपोर्ट बैंक के ज़रिए छह प्रोजेक्टस के लिए दिए गए।

चिली यूनिवर्सिटी के फ्रांसिस्को यूर्डिनेज़ कहते हैं- मिलेई ने चुनाव अभियान में वही घोर दक्षिणपंथी रणनीति अपनाई, वो पहले ब्राज़ील में बोलसोनारो और अमेरिका में ट्रंप भी अपना चुके हैं। इसके तहत चीन, एंटी कम्युनिस्ट बातें करके मतदाताओं का ध्यान खींचा जाता रहा है।

वो बोले- बातें भले ही चीन विरोधी कर ली जाएं, मगर चीन देश की अर्थव्यवस्था में काफ़ी शामिल है। ऐसे में चीन पर निर्भरता कम किया जाना काफ़ी मुश्किल है।

यूर्डिनेज़ ने कहा, ''जीत व्यवहारिकता की ही होगी और अंत में चीन से रिश्ते वैसे ही रहेंगे, जैसे पिछली सरकारों में रहे थे।

यूर्डिनेज़ का मानना है कि मिलेई और उनकी टीम के लिए ये चुनौतीपूर्ण रहेगा कि चीन से जो समझौते हुए, उनकी फिर से जांचा परखा जाए। ध्यान देने वाली बात ये है कि अगर ये समझौते किसी तरह से तोड़े गए तो तगड़ा जुर्माना होगा।

वो कहते हैं- चीन से संबंध खऱाब करने की दिशा में अगर अर्जेंटीना आगे बढ़ा तो इसके गंभीर नतीजे होंगे। वैचारिक भाषणों को एक तरफ़ रखकर समझौतों का पालन करें।

ब्रिक्स से दूरी की बात पर चीन का ज़ोर

अर्जेंटीना की नई हुकूमत की ओर से ब्रिक्स से दूरी की जब बातें हो रही हैं, तब चीन की सरकार हर तरह से अर्जेंटीना को लुभाने में लगा हुआ है।

चाइना डेली में एक संपादकीय छपा है जिसमें कहा गया है कि ब्रिक्स में शामिल होने से अर्जेंटीना को फ़ायदा होगा।

इस संपादकीय में कहा गया है कि ब्रिक्स में शामिल होने को लेकर जो भी फ़ैसला किया जाएगा, ये देश के आर्थिक भविष्य पर असर डालने वाला होगा। चुनावों से पहले चीन पर बरसने और ब्रिक्स में शामिल ना होने की बात करने वाले मिलेई व्यवहारिकता को अपनाते हुए अगर रुख़ बदलते हैं तो ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी।

चाइना डेली लिखता है कि एक ऐसा देश जहां गऱीबी दर 40 फ़ीसदी से ज़्यादा है, जहां काफी महंगाई है और आर्थिक चुनौतियां हैं, वहां विपक्ष से सत्ता में आए मिलेई के सामने मुश्किल रास्ता है।

संपादकीय के मुताबिक़, ब्रिक्स के उभरते हुए बड़े बाज़ारों के साथ अर्जेंटीना के अच्छे रिश्ते काफ़ी ज़रूरी हैं।

सत्ता से अब बाहर हुए राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडिज़ ने कहा था- ब्रिक्स में शामिल होकर अर्जेंटीना को मदद मिलेगी और इससे नए बाज़ार की संभावनाएं खुलेंगी। नौकरियां मिलेंगी, नया निवेश आएगा और निर्यात बढ़ेगा।

ब्रिक्स देशों में दुनिया की 42 फ़ीसदी आबादी है और ये दुनिया की जीडीपी में एक चौथाई हिस्सा रखते हैं।

जिन नए देशों को ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है, उनके शामिल होने पर ब्रिक्स समूह में दुनिया की 46 फ़ीसदी आबादी आएगी और दुनिया की जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 37 फ़ीसदी होगी।

इस संपादकीय में लिखा है कि ब्रिक्स विकासशील देशों और उभरते बाज़ारों के लिए अहम मंच है। ब्रिक्स देशों के लिए बने न्यू डेवलपमेंट बैंक में अरबों रुपये हैं, इससे अर्जेंटीना को कज़ऱ् से निपटने में मदद मिलेगी।

अर्जेंटीना के पास खोने के लिए कुछ नहीं है लेकिन पाने के लिए सब कुछ है। अगर अर्जेंटीना ने ऐसा नहीं किया तो इससे देश का नुकसान होगा।

ब्रिक्स में शामिल होकर अर्जेंटीना को क्या फ़ायदा?

साउथ अफ्रीका के ब्रिक्स शेरपा प्रोफ़ेसर अनिल सूकलाल ने स्पूतनिक अफ्रीका से कहा, ‘अर्जेंटीना स्वतंत्र है कि वो ब्रिक्स में शामिल होता है या नहीं। जिन छह नए देशों को आमंत्रित किया गया है, अगर उनमें से कोई एक शामिल नहीं हुआ तो ब्रिक्स समूह गऱीब नहीं हो जाएगा।’

प्रोफ़ेसर अनिल सूकलाल ने कहा, ‘लातिन अमेरिका का बड़ा देश अर्जेंटीना अगर ब्रिक्स में शामिल होता है तो हम बिल्कुल स्वागत करेंगे। इसी कारण नेताओं को ये महसूस हुआ कि अर्जेंटीना के शामिल होने से ब्रिक्स समूह मजबूत हो जाएगा। ऐसे में अगर अर्जेंटीना शामिल नहीं हुआ तो बचे हुए पांच देश ब्रिक्स को समृद्ध करेंगे।’

प्रोफ़ेसर अनिल सूकलाल कहते हैं कि ब्रिक्स ग्लोबल साउथ का अहम प्लेटफॉर्म बन गया है। दक्षिण अफ्रीका में हुए सम्मेलन में 60 देश शामिल हुए और ये स्वीकार किया कि ग्लोबल साउथ को साथ आने की ज़रूरत है।

दियाना मोनदिनो ने स्पूतनिक से कहा कि अर्जेंटीना का ब्रिक्स में शामिल ना होने का कोई मतलब नहीं है।

रूस के विदेश मंत्रालय ने अर्जेंटीना पर कहा कि रुख़ में स्पष्टता को लाए जाने की ज़रूरत है और रूस अर्जेंटीना के संकेतों का इंतज़ार करेगा, ख़ासकर नए प्रशासन के सत्ता संभालने के बाद। रूसी उप विदेश मंत्री ने अर्जेंटीना की जगह किसी और देश को शामिल किए जाने के विचार को ख़ारिज किया।

प्रोफेसर अनिल सूकलाल बोले, ‘मुझे लगता है कि जिन देशों से ब्रिक्स में शामिल होने के लिए कहा गया, वो ब्रिक्स सदस्य बनकर फायदे में रहेंगे। इसी कारण आप देखेंगे कि ऐसे देशों की लंबी लिस्ट है जो ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं। ऐसे में फैसला अर्जेंटीना को लेना है कि वो शामिल होना चाहता है या नहीं।’

प्रोफ़ेसर अनिल सूकलाल ने कहा, ‘जो नई सरकार बनी है, वो जब तक औपचारिक तौर पर हमें इस बारे में कुछ नहीं बताती है तब तक हमें इंतजार करना होगा। (bbc.com/hindi)

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