विचार / लेख

इन जर्मन कंपनियों में करना होगा हफ्ते में बस चार दिन काम
05-Feb-2024 7:07 PM
 इन जर्मन कंपनियों में करना होगा हफ्ते में बस चार दिन काम

हर हफ्ते काम कम, छुट्टी ज्यादा, लेकिन सैलरी पूरी मिलेगी. कई जानकार कहते हैं कि दफ्तरों में ऐसा नियम शुरू हो जाए, तो लोग ज्यादा प्रोडक्टिव हो जाएंगे. कई जर्मन कंपनियां 'फोर-डे वीक' का प्रयोग शुरू कर रही हैं.

  डॉयचे वैले पर क्रिस्टी प्लैडसन | इंसा व्रेडे का लिखा-

जर्मनी भी कई और देशों की तरह कामगारों की कमी झेल रहा है। एक ओर जहां उद्योग-धंधों में काम करने के लिए लोगों की सख्त कमी है, वहीं दर्जनों कंपनियां अब कर्मचारियों के काम के घंटे और कम करने का एक प्रयोग शुरू कर रही हैं। इसमें कर्मचारी हफ्ते में पांच दिन की जगह चार दिन ही काम करेंगे। इसमें जर्मनी की 45 कंपनियां और संगठन शामिल हैं।

फरवरी से शुरू हो रहे इस प्रयोग में कर्मचारी करीब आधा साल ‘फोर-डे वीक’ काम करेंगे। इसके कारण वेतन में कोई कटौती नहीं होगी। यह अभियान ‘इंट्राप्रेनॉर’ नाम की एक कंसल्टिंग फर्म के नेतृत्व में हो रहा है और इसमें ‘फोर डे वीक ग्लोबल’ नाम का गैर-लाभकारी संगठन भी शामिल है।

समर्थकों का तर्क है कि हफ्ते में चार दिन काम करने पर कामगारों की उत्पादकता बढ़ेगी और इसके कारण देश में कुशल श्रमिकों की कमी घटाई जा सकेगी। मेहनत और योग्यता के मामले में जर्मनी की साख रही है। फिर भी हालिया सालों में यहां उत्पादकता घटी है।

उत्पादकता क्या है?
इसका सीधा सा मतलब यह नहीं है कि काम करने वाले आलसी हैं। आर्थिक उत्पादन को काम करने के घंटों के आधार पर बांटकर उत्पादकता मापी जाती है। पिछले कुछ साल से ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के कारण कंपनियों और साथ-साथ देश का उत्पादन प्रभावित हुआ है। अगर कर्मचारियों के काम के कम घंटों के साथ कंपनियां अपना मौजूदा उत्पादन बरकरार रख पाती हैं, तो स्वाभाविक तौर पर इससे उत्पादकता का स्तर बढ़ेगा। लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा?

इस नई योजना के समर्थकों का तो ऐसा ही मानना है। वे कहते हैं कि हफ्ते में पांच की जगह चार दिन काम करने वाले कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है और वो ज्यादा उत्पादक साबित होते हैं। यह व्यवस्था शायद और भी लोगों को आकर्षित करे, ऐसे लोग जो हफ्ते में पांच दिन काम करने को राजी नहीं हैं। इस तरह श्रमिकों की कमी की समस्या दूर करने में मदद मिलेगी।

कम दिन काम करने से तनाव घटता है
इस सिद्धांत को जर्मनी से बाहर भी जांचा जा चुका है। 2019 से ही ‘फोर डे वीक ग्लोबल’ दुनियाभर में ऐसे अभियान चला रहा है। इनमें ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और अमेरिका शामिल हैं। 500 से ज्यादा कंपनियां इस प्रयोग में हिस्सा ले चुकी हैं और शुरुआती नतीजे पक्ष में जाते दिखते हैं।

ब्रिटेन में ऐसा ही एक प्रयोग हुआ था, जिसमें करीब 3,000 लोग शामिल थे। इसकी समीक्षा कर केम्ब्रिज और बॉस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि लगभग 40 फीसदी प्रतिभागियों ने प्रयोग के दौरान कम तनाव में होने की बात कही। साथ ही, इस दौरान इस्तीफों में भी 57 फीसदी तक की कमी आई। 

बीमारी की छुट्टी में 26 अरब यूरो का नुकसान
लोग बीमार पडऩे पर जो छुट्टी लेते हैं, उसमें भी दो-तिहाई तक की कमी आई। डीएके, जर्मनी की एक स्वास्थ्य बीमा कंपनी है। इसका हालिया डाटा बताता है कि पिछले साल जर्मनी में काम करने वालों ने औसतन 20 दिन बीमारी की छुट्टी ली। जर्मन एसोसिएशन ऑफ रिसर्च बेस्ड फार्मासूटिकल कंपनीज (वीएफए) के मुताबिक, इसके कारण आमदनी में करीब 2,600 करोड़ यूरो का नुकसान हुआ। यह सिर्फ पिछले साल का आंकड़ा है। जाहिर है, इससे आर्थिक उत्पादन पर भी असर पड़ा।

ब्रिटेन में हुए प्रयोग में शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि हिस्सा लेने वाली 61 कंपनियों में से 56 का औसत रेवेन्यू करीब 1।4 फीसदी बढ़ गया। ज्यादातर कंपनियों ने प्रयोग की अवधि पूरी होने के बाद भी फोर-डे वीक की व्यवस्था जारी रखने में दिलचस्पी दिखाई।

रचनात्मक काम पर असर पड़ सकता है
क्या यह व्यवस्था जर्मनी में भी काम करेगी? श्रम बाजार के विशेषज्ञ एन्सो वेबर बहुत आश्वस्त नहीं हैं। वह यूनिवर्सिटी ऑफ रेगेन्सबुर्ग और इंस्टीट्यूट फॉर एंप्लॉयमेंट रिसर्च में शोध करते हैं। उन्हें पहले हुए कुछ प्रयोगों के नतीजों में दिक्कत दिखती है। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि केवल वही कंपनियां जिनका काम फोर-डे वीक के माकूल है, ऐसे प्रयोग के लिए आवेदन करेंगी। इसलिए इनके नतीजे पूरी अर्थव्यवस्था के संदर्भ में नहीं देखे जा सकते हैं।

वेबर सकारात्मक नतीजों को भी संशय से देखते हैं क्योंकि काम के घंटे कम करने के कारण काम में एकाग्रता बढ़ सकती है। छोटी शिफ्ट के कारण काम के सामाजिक और रचनात्मक पक्ष पर असर पड़ सकता है। इन पक्षों पर पडऩे वाला असर फौरन महसूस नहीं होगा, खासतौर पर तब जबकि प्रयोग केवल छह महीने ही चलने वाला हो।

कई उद्योग इस दायरे में नहीं आएंगे
कुछ अन्य जानकार उत्पादकता मापने की चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाते हैं। काम के कम घंटे ऐसे व्यवस्थागत बदलावों की ओर ले जा सकते हैं, जिनका उत्पादकता पर ज्यादा असर होगा। होल्गर शेफर, कोलोन के जर्मन इकनॉमिक इंस्टीट्यूट में शोधकर्ता हैं। उनका कहना है कि काम के घंटों में 20 फीसदी कमी के बदले में 25 फीसदी उत्पादकता बढऩे की उम्मीद करना कोरी कल्पना है।

अर्थशास्त्री बैर्न्ड फित्सेनबैर्ग कहते हैं कि फोर-डे वीक के कारण कंपनियों की लागत बढ़ेगी। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, ‘यह उन क्षेत्रों में चुनौतीपूर्ण होगा, जिनमें ग्राहकों या देखभाल के जरूरतमंद लोगों के लिए तयशुदा समय पर सेवाएं उपलब्ध करवानी होती हैं।’ फित्सेनबैर्ग यह भी कहते हैं कि नर्सिंग, सुरक्षा सेवाओं या परिवहन जैसे क्षेत्रों में फोर-डे वीक लागू करना ज्यादा मुश्किल होगा। वह जोड़ते हैं, ‘अगर हम यह नियम एक ही तरह से सभी क्षेत्रों में लागू करते हैं, तो इससे प्रतिद्वंद्विता को नुकसान पहुंचेगा।’

जवाबी दलीलों के बावजूद फोर-डे वीक लोगों को आकर्षित कर रहा है। यहां तक कि बड़ी स्थापित कंपनियां भी दिलचस्पी दिखा रहा है। जर्मनी की ट्रेड यूनियन आईजी मेटाल पिछले कुछ समय से काम के घंटे कम करने का समर्थन कर रही है। स्टील उद्योग में तो अभी ही हफ्ते में केवल 35 घंटे की शिफ्ट है। 
(dw.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news