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लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न के बहाने पद्म पुरस्कारों की राजनीति
08-Feb-2024 4:46 PM
लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न के बहाने पद्म पुरस्कारों की राजनीति

डॉ. आर.के. पालीवाल

पदम पुरस्कारों को लेकर राजनीति शुरु से ही होती रही है और इसीलिए इन पुरस्कारों पर जब तब खूब आरोप भी लगते रहे हैं। जब पुरस्कार देने के लिए कोई पारदर्शी और निष्पक्ष व्यवस्था नहीं होती तब उसके संदिग्ध होने की संभावना भी काफी बढ जाती है। इसमें भी जब पुरस्कार देने का अंतिम निर्णय सरकार नाम की संस्था के हाथ में रहता है तब तो उसकी विश्वसनीयता और भी कम हो जाती है, और जब सरकार किसी कट्टर वाम या दक्षिण विचारधारा की समर्थक होती है या धर्म, जाति , भाषा और क्षेत्रीयता को लेकर संकीर्ण सोच वाली होती है तब तो यही कहा जा सकता है कि पुरस्कारों का भगवान ही मालिक है। लाल कृष्ण आडवाणी को सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न की घोषणा भी इतनी अप्रत्याशित रही है कि इस पर कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया केवल आश्चर्य चकित होने की ही हो सकती है।

सामान्यत: पदम पुरस्कारों की घोषणा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर की जाती है क्योंकि इस दिन ही देश का संविधान लागू हुआ था, इसलिए राष्ट्र के इस पवित्र दिन देश के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वाले अदभुत प्रतिभा की धनी विशिष्ट विभूतियों को विशेष पुरस्कारों से सम्मानित किया जाना समीचीन है। जहां तक लालकृष्ण आडवानी का प्रश्न है 2015 में उनके जीवन और व्यक्तित्व का समग्र मूल्यांकन करते हुए उन्हें पद्म विभूषण के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

2015 के बाद भारतीय जनता पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल होने के अलावा देश के नागरिकों को राष्ट्र के प्रति उनकी किसी अन्य सेवा की कोई खबर नहीं है जिस वजह से सात वर्ष बाद उनके पदम विभूषण को अपग्रेड कर भारत रत्न किया गया है। सरकार 2015 में भी वही थी जो 2024 में है इसलिए यह प्रश्न उठता है कि सात वर्ष में ऐसा क्या हुआ जो आडवाणी का पुरस्कार अपग्रेड हुआ।प्रबल संभावना है कि देर सवेर यह मामला भी सर्वोच्च न्यायालय पहुंच सकता है और पहुंचना भी चाहिए क्योंकि भारत रत्न कोई पदम श्री की तरह थोक में दिया जाने वाला पुरस्कार नहीं है।

   सरकार ने इसके पहले नानाजी देशमुख को भी भारत रत्न दिया था।उन थोड़ी अलग बात है। वे जनसंघ की स्थापना करने वाले नेताओं में अवश्य शरीक थे लेकिन अपने जीवन के उत्तरार्ध में वे अराजनीतिक होकर पूर्णत: व्यापक समाजसेवा को समर्पित हो गए थे। चित्रकूट के आसपास स्थित उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बहुतेरे गांवों में उनके प्रयास फलीभूत हुए हैं। इसी तरह अटल बिहारी वाजपेई के भारत रत्न की भी राष्ट्रीय स्वीकार्यता थी।उनकी छवि भी कवि हृदय उद्दात व्यक्तिव की थी जिनका सम्मान उनके विरोधी भी करते थे। नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेई की तुलना में लाल कृष्ण आडवाणी का व्यक्तित्व काफी हल्का पड़ता है। विशेष रूप से उनकी रथयात्रा और उसके बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस में उनकी प्रमुख भूमिका उनकी जीवन यात्रा के दो ऐसे पड़ाव हैं जिनसे भारतीय जनता पार्टी तो दिल से कृतज्ञ हो सकती है लेकिन भारत का संविधान, नियम कानून और नागरिक उनके प्रति कृतज्ञ नहीं हो सकते।

भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से जुड़े तीनों राजनीतिज्ञों को भारत रत्न इसी सरकार ने दिया है इसलिए इसका जोरदार विरोध भी स्वाभाविक है। कोई सरकार यदि पारदर्शी व्यवस्था के बजाय सिर्फ विचारधारा की वजह से सर्वोच्च पुरस्कार घोषित करेगी तो उसकी विवेचना और जरुरत पड़े तो कड़ी आलोचना होने की पूरी संभावना रहती है। बेहतर है सरकार खुद आगे आकर उन आलोचनाओं का तर्कपूर्ण उत्तर दे और यह स्पष्ट करे कि नौ साल बाद किस वजह से आडवाणी जी को प्रदत्त पुरस्कार अपग्रेड किया गया है!

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