विचार / लेख

भारत रत्न की बरसात
12-Feb-2024 2:07 PM
भारत रत्न की बरसात

 डॉ. आर.के. पालीवाल

चुनावी वर्ष में वर्तमान केन्द्र सरकार भारी बहुमत हासिल करने के लिए चारों तरफ नए नए मोर्चे खोल रही है। इसी कड़ी में उसने पहले आनन फानन में शंकराचार्यों के विरोध को दरकिनार करते हुए अधूरे राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर पूरे देश में हिंदुत्व का माहौल बनाने की कोशिश की जिसमें गांवों, कस्बों और शहरों के हर मुहल्ले में दिवाली जैसा जश्न का माहौल बनाया। अब सरकार ने भारत रत्न का खजाना खोल दिया है। 2014 से 2023 तक नौ साल के कार्यकाल में वर्तमान सरकार ने मात्र पांच लोगों, मदन मोहन मालवीय, अटल बिहारी वाजपेई, भूपेन हजारिका, प्रणव मुखर्जी और नानाज़ी देशमुख को भारत रत्न दिया था।

 इधर पिछ्ले एक महीने में ही पांच भारत रत्न घोषित हो गए हैं। इसकी शुरुआत जनवरी में बिहार के लोकप्रिय जन नेता कर्पूरी ठाकुर से हुई थी और फऱवरी के नौ दिन में तड़ातड चार और भारत रत्न घोषित हो गए हैं जिनमें लाल कृष्ण आडवाणी को कुछ दिन पहले भारत रत्न मिला है और नौ फऱवरी को एक साथ तीन विभूतियों , चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव और डॉ एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न से नवाजा गया है।

लोकसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर एक साथ इतने ज्यादा भारत रत्न घोषित करने से एक तरफ इस सर्वोच्च पुरस्कार की गरिमा पर भी प्रश्न चिन्ह उभरा है, और दूसरी तरफ़ राजनीतिज्ञों को ही अधिकांश भारत रत्न देने से यह संदेश जाता है जैसे यही एक श्रेणी देश के लिए सबसे ज्यादा सेवा देती है। जहां तक पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव को भारत रत्न देने का सवाल है वह उतना ही विवादित है जितना लाल कृष्ण आडवाणी को दिया गया भारत रत्न। नरसिंह राव का प्रधानमन्त्री के तौर पर कार्यकाल तरह तरह के संवैधानिक और आपराधिक विवादों से घिरा रहा है। उनके समय में सरकार बनाने के लिए झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सांसदों की खरीद फरोख्त से संसद की गरिमा तार तार हुई थी। यूरिया घोटाले में उनके पुत्र और उनके प्रिंसिपल सेक्रेटरी के पुत्र पर मुकदमा दर्ज हुआ था। खुद नरसिंह राव पर भी चंद्रा स्वामी के माध्यम से गंभीर आरोप लगे थे। ऐसे में उन्हें अचानक भारत रत्न दिए जाने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता।

जिस तरह से पिछ्ले पंद्रह दिन में अचानक भारत रत्न घोषित करने की बौछार सी हुई है उससे यह तो साफ है कि इसके पीछे लोकसभा चुनाव की गणित ही मुख्य कारक है। वैसे भी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की ऐसी छवि बन गई है कि वे हर समय चुनावी मोड़ में रहते हैं। ऐसे में जब केंद्रीय सत्ता पर सवार होने के लिए जरुरी लोकसभा चुनाव एकदम सर पर आ गए हैं तब प्रधानमंत्री की विभिन्न वर्गों को साधने के लिए राजनीतिक सक्रियता का शिखर पर होना उनकी रणनीति का लाजिमी हिस्सा लगता है। जब चारों तरफ लोकसभा चुनाव की तैयारियों की ही चर्चा है तब भारत रत्नों की अचानक बेमौसम बरसात को इस नजरिए से ही देखा जाएगा। लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने से जहां भारतीय जनता पार्टी के अंदर नाराज और सत्ता से दूर चल रहा एक खेमा शांत हो सकता है, वहीं नरसिंह राव को पुरस्कृत कर एक तरफ तेलगुभाषी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को खुश करने के साथ साथ सरकार यह भी दिखाना चाहती है कि हम विरोधी दलों के नेताओं के लिए भी मेहरबान हैं।

साथ ही यह कांग्रेस को कटघरे मे खड़े करने जैसा भी है कि उसने अपने पूर्व प्रधानमंत्री को वह इज्जत नहीं बख्शी जो उन्हें वर्तमान केंद्र सरकार दे रही है। इस कड़ी में यदि निकट भविष्य में डॉ मनमोहन सिंह को भी भारत रत्न देने की घोषणा हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। जिस तरह बिहार की बडी आबादी को खुश करने के लिए केंद्र सरकार को कर्पूरी ठाकुर की याद आई है वैसा ही किसान आंदोलन से परेशान सरकार को प्रमुख किसान नेता चौधरी चरण सिंह की याद आई है। देखना यह है कि भारत रत्न की बौछार से सरकार को चुनाव में कितना लाभ मिलता है!

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