विचार / लेख

सोनिया गांधी का राज्यसभा का रुख करना क्या कांग्रेस के हित में है?
15-Feb-2024 2:11 PM
सोनिया गांधी का राज्यसभा का रुख करना क्या कांग्रेस के हित में है?

 विनीत खरे

ऐसे वक़्त जब लोकसभा चुनाव की घोषणा होने में कुछ ही हफ़्ते रह गए हैं, पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने आने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए राजस्थान से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है।

साल 2004 से सोनिया गांधी लोकसभा में रायबरेली का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।

ये फ़ैसला ऐसे वक़्त आया है जब पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर हैं और इस यात्रा की टाइमिंग को लेकर आलोचना हो रही है, ओपिनियन पोल्स में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव में जीत की भविष्यवाणी की जा रही है, एक के बाद एक कांग्रेस नेताओं का पार्टी छोडऩा जारी है और विपक्षी इंडिया अलायंस की पार्टियों के बीच सीटों पर तालमेल को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार सुषमा रामचंद्रन ने सोनिया गांधी के फ़ैसले को ‘एक युग का अंत’ बताया, और कहा कि ये फ़ैसला कांग्रेस और विपक्ष के लिए ‘नुक़सान’ है।

वो कहती हैं, ‘न सिफऱ् कांग्रेस, बल्कि विपक्ष के लिए भी सोनिया गांधी का लोकसभा में रहना हौसला बढ़ाने वाला था। वो विपक्ष की ओर से अपनी बात रखती थीं। ये फ़ैसला उन्हें सीधी चुनावी राजनीति से ऐसे वक़्त दूर ले जाएगा जब कांग्रेस का पतन हो रहा है।’

तो रायबरेली से चुनाव मैदान में कौन?

अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा कहते हैं, ‘उनकी उम्र 77 साल की है। वो सीधे चुनाव से ख़ुद को दूर कर रही हैं, ऐसे वक़्त जब उनकी तबीयत ठीक नहीं है। रायबरेली जीतना आसान नहीं है और इसके लिए उन्हें कैंपेन में ज़ोर लगाना पड़ता, इसलिए बेहतर है कि ये काम किसी युवा पर छोड़ दिया जाए।’

याद रहे कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है।

मीडिया कयासों की मानें तो सोनिया गांधी की जगह उनकी बेटी और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा रायबरेली से कांग्रेस उम्मीदवार हो सकती हैं, हालांकि पार्टी की ओर से इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा गया है।

वरिष्ठ पत्रकार जावेद अंसारी कहते हैं, ‘मुझे साफ़ याद है कि 1999 में जब पहली बार सोनिया गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ा था तो ये प्रियंका ही थीं जिन्होंने चुनाव का सारा कामकाज संभाला था। तो संभावना यही है कि हम चुनावी राजनीति में प्रियंका गांधी की शुरुआत देख सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि प्रियंका को कोई समस्या होगी। आम लोगों के साथ उनका जुड़ाव है, उनका लोगों से बातचीत करने का तरीका ज़बरदस्त है और वो उस इलाके में काफ़ी लोकप्रिय हैं। उन्होंने अपने भाई और मां के लिए कई चुनावों में काफ़ी कैंपेन किया है।’

‘राजनीति से रिटायर नहीं हो रही’

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफ़ेसर और राजनीतिक विश्लेषक ज़ोया हसन कहती हैं, ‘उन्हें पार्टी के लिए जो करना था वो किया। उन्होंने कांग्रेस को पुनर्जीवित किया, वो कांग्रेस को सत्ता में लेकर आईं, उन्होंने गठबंधन बनाया, वो 20 साल कांग्रेस प्रमुख रहीं। उन्होंने सालों पार्टी को एकजुट रखा, अब वो परिवार के सदस्यों और दूसरे लोगों के लिए जगह छोड़ रही हैं, और उन्हें ये फ़ैसला लेने का हक़ है कि क्या वो अगला चुनाव लडऩा चाहती हैं या नहीं।’

वो कहती हैं, ‘मुझे नहीं लगता है कि वो कोई राजनीतिक सिग्नल दे रही हैं। वो राजनीति से रिटायर नहीं हो रही हैं। वो शायद पार्टी की ऐक्टिव लीडरशिप की भूमिका छोड़ रही हैं लेकिन वो पार्टी को एकजुट रखने वाली महत्वपूर्ण नेता रहेंगी।’

सोनिया गांधी के राज्यसभा से नामांकन भरने पर भाजपा नेता अमित मालवीय ने ट्वीट किया, ‘अमेठी में कांग्रेस की करारी हार के बाद अगला नंबर रायबरेली का है। सोनिया गांधी का राज्य सभा से (नामांकन भरने का) फ़ैसला करना मंडरा रही हार की स्वीकारोक्ति है। गांधी परिवार ने अपने माने जाने वाले गढ़ों को छोड़ दिया है। समाजवादी पार्टी के कांग्रेस को 11 सीट देने के बावजूद कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं जीत पाएगी।’

वरिष्ठ पत्रकार सुषमा रामचंद्रन इससे सहमत नहीं हैं कि अगर सोनिया गांधी फिर रायबरेली से चुनाव लड़तीं तो हार जातीं वहीं ज़ोया हसन मानती हैं कि कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में स्थिति बहुत खऱाब है।

वो कहती हैं, ‘कांग्रेस के लिए रायबरेली एकमात्र सीट थी जो पार्टी को मिल रही थी। मुझे नहीं लगता कि उनका रायबरेली से हटना किसी मंडराती हार का संकेत है। वो वहां से अगर जीत भी जातीं तो उससे कांग्रेस को मदद नहीं मिलती। पूर्व के दो, तीन चुनाव में उनकी जीत से कांग्रेस को मदद नहीं मिली है।’

राजस्थान से नामांकन भरने में क्या है संदेश?

सोनिया गांधी पहली बार अमेठी से 1999 में सांसद बनीं। ये वही सीट है जहां से कभी उनके पति राजीव गांधी चुनाव लड़ते थे। साल 2004 में उन्होंने रायबरेली का रुख़ किया और अमेठी सीट से राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा।

राज्य सभा के रास्ते संसद पहुंचने वाली सोनिया नेहरू-गांधी परिवार की दूसरी सदस्य होंगी।

उनकी सास और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी साल 1964 से 1967 तक राज्यसभा की सदस्य थीं। बाद में उन्होंने रायबरेली से चुनाव लड़ा।

आज के कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को लें तो पार्टी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद मल्लिकार्जुन खडग़े कर्नाटक से हैं, जबकि राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं।

राजस्थान से सोनिया गांधी के राज्यसभा आने की वजह पर विनोद शर्मा कहते हैं, ‘ये सीट मनमोहन सिंह खाली कर रहे हैं। वो एक वरिष्ठ नेता हैं और सोनिया गांधी उनकी जगह ले रही हैं। इसलिए ये उम्र और व्यवहारिक राजनीति दोनों का मिश्रण है। और ये एक उत्तर भारतीय राज्य है। कांग्रेस के ज़्यादातर नेता जैसे खडग़े, राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल दक्षिण से हैं। सोनिया गांधी हिमाचल प्रदेश से भी चुनी जा सकती थीं लेकिन उन्होंने राजस्थान को चुना।’

साल 2019 के लोकसभा चुनावों को याद करें तो उत्तर भारत में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खऱाब रहा था।

राहुल गांधी अमेठी का चुनाव हार गए थे। उन्हें भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने हराया था।

कई महत्वपूर्ण राज्य जैसे दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई थी।

ऐसे में माना जा रहा है कि राजस्थान से सोनिया गांधी के राज्यसभा जाने से कांग्रेस ये संदेश देना चाह रही है कि उत्तर भारत को उसने छोड़ा नहीं है।

‘कांग्रेस के लिए अच्छा फ़ैसला नहीं’

यहां जानकार ये भी याद दिलाते हैं कि जब मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे तब भी वो राज्यसभा के सदस्य थे और आज भी भाजपा के कई वरिष्ठ नेता राज्यसभा से सांसद हैं लेकिन पत्रकार सुषमा रामचंद्रन की मानें तो सोनिया गांधी का ये फ़ैसला कांग्रेस के लिए अच्छा फैसला नहीं है।

वो कहती हैं, ‘ये सोनिया गांधी ही थीं जिन्होंने विपक्षी नेताओं की ओर हाथ बढ़ाया और उन्हें साथ लेकर आईं। राहुल गांधी की वो पहुंच नहीं है। सोनिया गांधी की तरह वो क्षेत्रीय नेताओं को एक बैनर के नीचे नहीं ला पाए हैं।’

‘सोनिया गांधी को भी समस्याएं आईं लेकिन राहुल गांधी के मुक़ाबले विपक्षी नेताओं के बीच उनकी लोकप्रियता कहीं ज़्यादा थी। ये सोनिया गांधी ही थीं जिन्होंने यूपीए की सरकारों को चलाया। राहुल गांधी ऐसा नहीं कर पाए हैं।’

लंबा कार्यकाल

सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद पर रहते रोजग़ार गारंटी योजना, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार जैसे फ़ैसले लिए गए।

उनके अध्यक्ष रहते, देश में पहली बार महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल और लोकसभा की पहली दलित महिला अध्यक्ष मीरा कुमार बनाई गईं।

महिलाओं के आरक्षण का बिल भी उनके कार्यकाल में पेश हुआ। उन्होंने दो गठबंधन सरकार बनाने में कामयाबी पाई।

यूपीए-1 और 2 के दौरान उन्हें बहुत ताक़तवार माना जाता था और आरोप लगते थे कि असली सत्ता उन्हीं के पास थी।

इस वजह के अलावा विभिन्न कथित भ्रष्टाचार के मामलों को साल 2014 में यूपीए सरकार के अंत का कारण माना जाता है।

सामाजिक और राजनीतिक विज्ञानी ज़ोया हसन कहती हैं, ‘यह कांग्रेस में एक युग का अंत है। सोनिया गांधी 25 साल अपनी पार्टी में शीर्ष पर रहने के बाद लोकसभा से हट रही हैं। यह पार्टी में शीर्ष नेतृत्व में हो रही एक पीढ़ी के बदलाव का संकेत है।’

वो कहती हैं, ‘उनका भारतीय राजनीति में एक उल्लेखनीय स्थान है, यह ग़ैर भारतीय मूल का होने की वजह से और भी अहम है। यह हाल के राजनीतिक इतिहास के एक सबसे असाधारण करियर में से है।’ (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news