विचार / लेख

किसान संगठनों ने मोदी सरकार के ऑफर को ठुकराया, 21 फरवरी से दिल्ली मार्च, जानिए कहाँ फँसा पेच
20-Feb-2024 1:50 PM
किसान संगठनों ने मोदी सरकार के ऑफर को ठुकराया, 21 फरवरी से दिल्ली मार्च, जानिए कहाँ फँसा पेच

किसान संगठनों और मोदी सरकार के बीच सुलह की कई कोशिशें अब तक सफल नहीं हुई हैं। मोदी सरकार ने किसानों की मांगों के मद्देनजऱ एक प्रस्ताव दिया था, इस प्रस्ताव को किसानों ने ख़ारिज कर दिया है।

हरियाणा-पंजाब शंभू बॉर्डर पर सोमवार रात किसान संगठनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये जानकारी दी।

पंजाब किसान मज़दूर संघर्ष कमिटी के नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा- हम 21 फऱवरी को 11 बजे दिल्ली की तरफ़ बढ़ेंगे।

संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा- ये फ़ैसला लिया गया है कि सरकार ने जो प्रस्ताव दिया है, उसकी नापतोल अगर की जाए तो उसमें कुछ नजऱ नहीं आ रहा।

ऐसे में सवाल ये है कि किसान संगठनों की मांग क्या थी और उस पर केंद्र सरकार की ओर से क्या प्रस्ताव दिया गया था।

किसान आंदोलन: प्रमुख मांगें

किसान संगठनों की मांग है कि 23 फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी दिया जाए। एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बनाने की मांग की जा रही है।

स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को अमल में लाया जाए। किसानों और खेत मज़दूरों को पेंशन दी जाए।

ऐसा होता है तो किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना मूल्य मिलेगा। यानी अगर खेती करने में किसान के 10 रुपये लग रहे हैं तो वो चाहते हैं कि उन्हें फसल बेचने पर 15 रुपये मिलें। इसके अलावा लखीमपुर खीरी मामले में दोषियों को सज़ा देने की मांग भी किसान कर रहे हैं।

किसानों की मांग पर सरकार का प्रस्ताव

18 फऱवरी को किसानों के साथ बातचीत में केंद्र सरकार ने पाँच फसलों पर एमएसपी देने का प्रस्ताव दिया था।

इस प्रस्ताव के तहत किसानों को सरकारी एजेंसियों के साथ पाँच साल का करार करना था।

किसानों को दिए प्रस्ताव के बारे में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ''पैनल ने किसानों को एक समझौते का प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत सरकारी एजेंसियां उनसे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पाँच साल तक दालें, मक्का और कपास खऱीदेंगी।’

गोयल ने बताया था, ‘नेशनल कोऑपरेटिव कंज़्यूमर्स फ़ेडरेशन (एनसीसीएफ़) और नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेड़रेशन ऑफ़ इंडिया (नेफ़ेड) जैसी कोऑपरेटिव सोसाइटियां उन किसानों के साथ समझौता करेंगी, जो तूर, उड़द, मसूर दाल या मक्का उगाएंगे। फिर उनसे अगले पांच साल तक एमएसपी पर फसलें खऱीदी जाएंगी।’

गोयल ने कहा कि यह प्रस्ताव भी दिया गया है कि कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया के माध्यम से किसानों से पांच साल तक एमएसपी पर कपास की खऱीद की जाएगी।

सरकार ने अपने प्रस्ताव में कपास की खेती को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए पंजाब के किसानों से कहा।

गोयल ने कहा, ‘खऱीद की मात्रा की कोई सीमा नहीं होगी और इसके लिए एक पोर्टल तैयार किया जाएगा।’

गोयल ने दावा किया था- सरकार के प्रस्ताव से से पंजाब के भूमिगत जलस्तर में सुधार होगा और पहले से ही खऱाब हो रही ज़मीन को बंजर होने से रोका जा सकेगा।

सरकार के प्रस्ताव पर किसानों का रुख़

किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा, ‘ये जो प्रस्ताव आया है, वह किसानों के पक्ष में नहीं है। हम इस प्रस्ताव को रद्द करते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार बाहर से एक लाख 75 हजार करोड़ रुपये का पाम तेल मंगवाती है। वो सभी लोगों के बीमारी का कारण भी बन रहा है, फिर भी उसे मंगवाया जा रहा है। अगर यही पैसा देश के किसानों को तेल, बीज फसलें उगाने के लिए और उनके ऊपर एमएसपी की घोषणा करे और खऱीद की गारंटी दे, तो उस पैसे से काम चल सकता है।’

किसान संगठनों का कहना है कि अगर सभी फसलों पर एमएसपी दे दिया जाए तो भी सरकार के डेढ़ लाख करोड़ रुपये ही लगेंगे।

किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा, ‘हमारी मांग वही है कि सरकार 23 फसलों पर एमएसपी गारंटी क़ानून बनाकर दे।’

पंढेर ने आरोप लगाया है कि जब हम केंद्र सरकार के मंत्रियों के साथ बैठक के लिए जाते हैं, तो वे तीन-तीन घंटे देरी से आते हैं जो कि ठीक बात नहीं है।

किसान आंदोलन: कब-कब क्या-क्या हुआ?

5 जून, 2020 को मोदी सरकार तीन कृषि बिल अध्यादेश के ज़रिए लेकर आई। इसी साल 14 सितंबर को केंद्र सरकार ने इन अध्यादेशों को संसद में पेश किया।

17 सितंबर, 2020 को ये तीनों कृषि बिल लोकसभा से पारित हुए। तीन दिन बाद 20 सितंबर को विपक्ष के भारी विरोध के बाद राज्यसभा में भी ये पारित हो गए।

27 सितंबर तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस पर मुहर लगाकर इसे क़ानून की शक्ल दे दी।

इस बीच किसानों का विरोध शुरू हुआ। नवंबर के आखिरी सप्ताह में किसान संगठनों ने दिल्ली चलो का नारा दिया और दिल्ली की सीमाओं पर जुटने लगे। प्रशासन के साथ उनकी टक्कर हुई और उन्होंने सीमा के पास ही अपने डेरा डाल दिया।

इसके बाद सरकार और किसान नेताओं के बीच बातचीत शुरू हुई जो कई दौर तक जारी रही। कृषि क़ानूनों में संशोधन के सरकार के प्रस्ताव को किसानों ने खारिज कर दिया।

दिबंबर 2020 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जिसने जनवरी 2021 में तीनों कृषि कानूनों को स्थगित कर दिया।

लेकिन मामला थमा नहीं। पंजाब विधानसभा में इसके ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित हुआ, वहीं केंद्र इसे लेकर विपक्षी दलों की बैठक हुई।

किसानों ने एक बार फिर विरोध प्रदर्शन के लिए कमर कसी, इसे लेकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों की बैठकें शुरू हुईं। इस बीच उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में विरोध प्रदर्शन के दौरान कुल आठ लोगों की मौत गाड़ी से कुचले जाने से हो गई।

19 नवंबर 2021 को मोदी ने तीनों कृषि क़ानून वापिस लेने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा, ‘महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में इन तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा।’

2 दिसंबर को क़ानून मंत्रालय ने कृषि क़ानून निरस्तीकरण क़ानून, 2021 को अधिसूचित किया जिसके बाद किसानों ने अपना विरोध प्रदर्शन वापस लिया और वापस लौटने लगे। इसके बाद 9 फऱवरी 2022 को सरकार ने तीनों कृषि क़ानूनों को वापस ले लिया।

13 फरवरी 2024 को किसानों ने दिल्ली कूच का एलान किया। शंभू बॉर्डर पर किसानों को प्रशासन ने बैरिकेटिंग लगाकर रोक रखा है।(bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news