विचार / लेख
सिद्धार्थ ताबिश
ये समाज और इसकी संस्कृति हम इंसानों द्वारा डिज़ाइन की गई है। चाहे वो शादी ब्याह हो या त्यौहार चाहे वो रिश्ते हो या कर्मकांड सब कुछ हम इंसानों ने बनाया है और ये ऐसा नहीं कि जिस किसी ने भी इसे बनाया वो कोई बड़ी गहरी समझ वाला व्यक्ति रहा होगा। ये सब कुछ बहुत ही औसत बुद्धि के लोगों ने बनाया है।
बुद्धिमान लोगों ने कभी कोई भी सामाजिक नियम और बंधन नहीं बनाये.. जितने भी बड़े दार्शनिक हुवे हैं इस दुनिया में, उन्होंने कभी भी कोई कर्मकांड, धर्म या इंसानों की आजादी को बाँधने के लिए कोई नियम नहीं थोपे समाज पर इसलिए अगर आप समाज के किसी भी नियम को अपने जीवन और मरण का प्रश्न बनाते हैं तो आप दरअसल किसी आदिम और औसत बुद्धि के व्यक्ति के बनाये किसी नियम का बस अनुसरण भर कर रहे होते हैं।
सामाजिक नियम शाश्वत नहीं हैं। ये हर देश और प्रांत के अनुसार बदलते हैं। इसलिए इसे बहुत सीरियसली मत लीजिये। इसे आप हलके में और खेल की तरह अगर स्वीकार करने लग जायेंगे तो तमाम कलह, द्वेष, अवसाद, ईष्र्या, कुंठा और चिंता अपने आप आपके जीवन से दूर हो जायेगी। आप किसी भी सामाजिक नियम, कर्मकांड या बंधन को नहीं मानेंगे तब भी आप उतने ही इंसान रहेंगे जितना कोई भी जंगल और आपके समाज से दूर रहने वाला इंसान होता है।
उदाहरण के लिए, शादी करनी है तो कीजिये न करनी है तो मत कीजिये। ये कोई नियम नहीं है कि इसके बिना जीवन आपका अधूरा है या आप कुछ खो देंगे जीवन में। इस समाज ने शादी को ओवररेटेड बना के आपके सामने ऐसा प्रस्तुत किया है कि आप बचपन से उसी ‘धारणा’ में पाल के बड़े किए जाते हैं और शादी-ब्याह आपको शास्वत सत्य सा प्रतीत होने लगता है। ये नियम बस उस ‘कुरूप’ या ‘अक्षम’ पुरुष द्वारा बनाया गया था जिसे कोई भी लडक़ी ‘स्वत:’ प्रेम नहीं करती थी.. जिसे प्रेम मिलता है उसे कभी शादी की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ती.. मगर ये नियम ‘अक्षम’ व्यक्तियों की कुंठा से उपजा नियम है ताकि हर ‘अक्षम’ को भी संसर्ग के लिए स्त्री मिल सके जबकि ये प्राकृतिक नहीं है। दुनिया का कोई प्राणी किसी अक्षम नर या मादा से कभी संसर्ग नहीं करता है और न ही परिवार बढ़ाता है.. ये केवल इंसान ही करते हैं।