विचार / लेख
-विष्णु नागर
एक बाप था ।उसके पांच बेटे थे। वे सुबह-दोपहर- शाम लड़ते रहते थे लेकिन रात होते ही टीवी देखने एक जगह आ जाते थे।
इससे बाप भी खुश था और बेटे भी खुश लेकिन अंतिम समय आया तो पिता को चिंता होने लगी। वह चाहता था कि ये सुबह, दोपहर, शाम को भी न लड़ा करें। एक दूसरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाना और वापस लेना बंद करें। वह पूर्ण सद्भाव का पक्षधर हो गया था लेकिन उसके बेटे उसकी सुनते नहीं थे ।
एक आदर्श पिता तरह उसके मन में अपने बेटों को एकता का सबक सिखाने की इच्छा हुई। उसे एक अकेली लकड़ी के टूट जाने और लकडिय़ों के ग_र के न टूटने की कहानी याद आ गई । उसने इस कहानी पर अमल करते हुए पांचों बेटों को आदेश दिया कि वे शाम को घर लौटते समय एक-एक लकड़ी अवश्य साथ लेते आएंं।
लकड़ी का जमाना था नहीं, लाठी से भी काफी आगे निकल चुका था लेकिन गनीमत थी कि लाठी बाजार में मिल जाती थी।सो हर बेटा पिता की भावनाओं का सम्मान करते हुए एक- एक लाठी खरीद लाया।
शाम को पिता ने देखा कि हर लडक़ा एक-एक लकड़ी के बजाय एक-एक लाठी उठा लाया है ।
अपनी योजना में व्यवधान आते देख पहले तो उसे निराशा हुई लेकिन वह अनुभवी था, जल्दी ही संभल गया।
उसने कहा -'चलो तुमने अच्छा किया। अब तुम सब एक साथ कतार में खड़े हो जाओ। एक-एक लडक़ा आता जाए और मेरे सिर में लाठी मारता जाए। मेरे मरते ही मेरी समस्या हल हो जाएगी। बाकी रही तुम्हारी अपनी समस्या, तो तुम में से हर एक के पास अब एक -एक लाठी है और एक-एक सिर है।
पुत्रों ने पिता की आज्ञा का पूरी निष्ठा से पालन करते हुए पहले उन्हें स्वर्ग सुलभ करवाया। फिर एक -दूसरे का सिर फोड़ कर पिता के पास अपना भी स्थान आरक्षित करवाया!