विचार / लेख

किसानों के साथ देश !
08-Dec-2020 6:04 PM
किसानों के साथ देश !

-ध्रुव गुप्त

भारत सरकार द्वारा पूंजीपतियों के हित में लाए गए काले कृषि कानूनों के विरुद्ध ज़ारी किसान आंदोलन का आज तेरहवां दिन है। इस सर्द मौसम में दिल्ली पहुंचने वाले हर मार्ग पर खुले आकाश के नीचे पड़े हजारों किसानों ने अपनी मांगों के समर्थन में आज भारत बंद का आह्वान किया है। आईए, हम अपने अन्नदाताओं का साथ दें! आज के दिन राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की एक हृदयभेदी कविता ‘किसान’ की याद दिलाना चाहता हूं। कविता बहुत पुरानी है, लेकिन किसानों की स्थिति आज भी बहुत अलग नहीं है।

हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है

पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है

हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ

खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ

आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में

अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में

बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा

है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा

देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तथापि चला रहे

किस लोभ से इस आँच में, वे निज शरीर जला रहे

घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहा

घर से निकलने को गरज कर, वज्र वर्जन कर रहा

तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं

किस लोभ से वे आज भी, लेते नहीं विश्राम हैं

बाहर निकलना मौत है, आधी अँधेरी रात है

है शीत कैसा पड़ रहा, औ’ थरथराता गात है

तो भी कृषक ईंधन जलाकर, खेत पर हैं जागते

यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते

सम्प्रति कहाँ क्या हो रहा है, कुछ न उनको ज्ञान है

है वायु कैसी चल रही, इसका न कुछ भी ध्यान है

मानो भुवन से भिन्न उनका, दूसरा ही लोक है

शशि सूर्य हैं फिर भी कहीं, उनमें नहीं आलोक है

 

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