विचार / लेख
-नवयुग गिल
भारत में हज़ारों किसान 26 नवम्बर को पैदल और ट्रैक्टर-ट्राली पर पंजाब और हरियाणा से नई दिल्ली की ओर रवाना हो गए और सारी रुकावटों से गुज़रते हुए नई दिल्ली पहुंच गए और राजधानी का घेराव कर लिया। अब इस प्रदर्शन में बहुत सारे सेक्टर शामिल हो गए हैं। 31 से अधिक ट्रेड यूनियनों ने प्रदर्शनों का समर्थन किया है।
यह प्रदर्शन महीनों पहले शुरू हुए मगर सरकार की ओर से लगातार नज़रअंदाज़ किए जाने के बाद अधिक व्यापक होते गए और फिर किसान राष्ट्रीय राजधानी की सीमा पर जा धमके। इसके बाद सरकार हरकत में आई तो मीडिया भी पूरी तरह सक्रिय हो गया। सरकार ने किसानों से कई दौर की बेनतीजा वार्ता की तो भारत में गोदी मीडिया कहे जाने वाले चैनलों ने प्रदर्शनों को दाग़दार बनाने की कोशिश की।
भाजपा समर्थकों का तर्क यह है कि तीनों किसान क़ानून बहुमत से चुनी हुई सरकार ने बनाए हैं और इसके लिए सारी औपचारिकताएं पूरी की गई हैं इसलिए विरोध का कोई तुक नहीं बनता। भाजपा को चूंकि लोक सभा चुनावों में 543 में से 303 सीटें मिली थीं इसलिए उसकी सोच है कि उसके द्वारा बनाए जा रहे क़ानून सबको मानने चाहिए। भाजपा की इसी सोच के नतीजे में नोटबंदी की गई, जम्मू व कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया गया, इसी तरह विवादित नागरिकता क़ानून सीएए पास किया गया। स्पष्ट बहुमत की मज़बूत सरकारों के यहां एक समस्या यह हमेशा रहती है।
पंजाब और हरियाणा में संसद की 13 और 10 सीटें हैं इसलिए चुनावी गणित के हिसाब से शायद इन राज्यों का इतना ज़्यादा महत्व नहीं है। दोनों राज्यों की आबादी कुल मिलाकर पांच करोड़ तीस लाख से कुछ ज़्यादा है। भारत की आबादी के हिसाब से तो यह ज़्यादा नहीं है लेकिन दूसरी ओर अगर स्पेन, कोलम्बिया या दक्षिणी कोरिया से तुलना की जाए तो यह आबादी उनसे ज़्यादा है।
फ़ूड सेक्युरिटी के लेहाज़ से इन दोनों राज्यों का महत्व बहुत है। पिछले पांच दशकों तक लगातार अकेले पंजाब ने देश की ज़रूरत का दो तिहाई गेहूं और चावल पैदा किया और भारत चावल और गेहूं की पैदावार में आत्म निर्भर हो गया। तो क्या अन्य राज्यों द्वारा जिनकी आबादी ज़्यादा है चुने गए सांसद इस राज्य की भी क़िस्मत का फ़ैसला करेंगे? क्या लोकतंत्र का मतलब गिनती की तुलना भर है?
भाजपा और उसके समर्थक जो चीज़ समझ नहीं पा रहे हैं वह यह है कि उनकी उपेक्षा का बहुत बुरा असर पड़ेगा। इस समय स्थिति यह है कि भारतीय किसानों का प्रदर्शन अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनता जा रहा है। दुनिया के कई देशों में भारतीय किसानों के समर्थन में प्रदर्शन हुए हैं। अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूएन में किसानों के लिए प्रदर्शन हुए हैं।
बहुमत मिल जाने का यह मतलब नहीं है कि सरकार को बहुलतावादी समाज पर अपनी मर्ज़ी थोपने का सर्टीफ़िकेट मिल गया है। यह दुनिया के उन नेताओं के लिए भी सबक़ है जो मेजारिटैरियन वर्चस्व की नीति पर चलते हैं।
(लेखक अमरीका की विलियम पैटरसन युनिवर्सिटी में हिस्ट्री डिपार्टमेंट के एसिस्टैंट प्रोफ़ेसर)