विचार / लेख

पेरिस समझौते के फेल होने पर दुनिया को होगा 600 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान
13-Dec-2020 10:20 AM
पेरिस समझौते के फेल होने पर दुनिया को होगा 600 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

Lalit Maurya-

जलवायु परिवर्तन एक ऐसी सच्चाई है जिसे चाह कर भी झुठलाया नहीं जा सकता। यह किसी न किसी रूप में दुनिया के हर हिस्से को प्रभावित कर रही है। कहीं बाढ़, तो कहीं सूखा, कहीं तूफान और कहीं नष्ट होती फसलें। यह एक ऐसी त्रासदी है जिसकी कीमत हर किसी को किसी न किसी रूप में भरनी पड़ रही है। यदि हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल कर लेते तो काफी हद तक इन आपदाओं को टाला जा सकता था। लेकिन इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि दुनिया पैरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल कर पायेगी। ऐसे में हमें इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है, इसका आंकलन वैज्ञानिकों ने किया है।

इससे जुड़ा एक अध्ययन हाल ही में जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में छपा है। जिसके अनुसार यदि हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाए तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को करीब 6,00,000 अरब  डॉलर (4,59,30,300 अरब  रुपए) का नुकसान उठाना पड़ेगा। जोकि विश्व के वर्त्तमान जीडीपी से करीब 7।5 गुना ज्यादा है। यह शोध जलवायु विशेषज्ञों की अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया है। जिसमें उन्होंने अनेकों परिदृश्यों के आधार पर आर्थिक हानि का अनुमान लगाया है। जिसके सदी के अंत तक 150 से 790 ट्रिलियन डॉलर के बीच रहने की आशंका है।

आईपीसीसी ने सम्भावना व्यक्त की है कि 2030 से 2050 के बीच वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी। ऐसे में उसके विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे। जबकि शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक तापमान में 3 से 4 डिग्री की वृद्धि हो जाएगी।

हर साल उत्सर्जन में जरुरी है 7 फीसदी की कटौती 

गौरतलब है कि 2015 पेरिस समझौते का लक्ष्य वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को 2 डिग्री से नीचे रखना है। इस समझौते के तहत दुनिया भर के देशों ने अपने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने की बात स्वीकार की थी। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि अब से लेकर 2030 तक यदि हम हर साल वैश्विक उत्सर्जन में 7 फीसदी की कटौती करेंगे। तब जाकर कहीं 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे।

क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2020 के अनुसार पर्यावरण में आ रहे बदलाव का बुरा असर भारत पर भी पड़ रहा है। इस इंडेक्स के अनुसार भारत पांचवे स्थान पर था। जबकि यदि जान माल के नुकसान की बात करें तो भारत दूसरे स्थान पर रहा था। जो स्पष्ट तौर पर देश में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे की ओर इशारा है|

शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि दुनिया उत्सर्जन को रोकने के लिए अभी से ठोस कदम उठाएगी तो आने वाले वक्त में वो इस भारी आर्थिक हानि से बच जाएगी। बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता बायिंग यू ने बताया कि “यदि उत्सर्जन रोकने पर अभी से  निवेश नहीं किया गया तो इस रोकना मुश्किल हो जायेगा। जिससे हमें जलवायु परिवर्तन के और भयंकर परिणाम झेलने होंगे। जिसके चलते जन-धन की अपार क्षति होगी।“

शोधकर्ताओं के अनुसार दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन को ख़त्म करने के लिए करीब 18,00,000 से 1,13,00,000 करोड़ डॉलर (13,77,01,800 से 86,44,61,300 करोड़ रूपए) की जरुरत पड़ेगी। जिसमें से 90 फीसदी धनराशि जी-20 देशों द्वारा खर्च की जानी चाहिए। उनका मानना है कि विशेष रूप से रिन्यूएबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहनों और अन्य पर्यावरण अनुकूल तकनीकों के लिए भारी भरकम धनराशि खर्च करनी होगी।

हमें समझना होगा कि पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में अब धरती का तापमान करीब 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। जिसके कारण बाढ़, सूखा, तूफान, हीटवेव जैसी आपदाओं की संख्या और तीव्रता में वृद्धि हो गयी है। ऐसे में जब सदी के अंत तक तापमान 3 से 4 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा तो सोंचिये उसके कितने विनाशकारी परिणाम होंगे। सिर्फ प्राकृतिक आपदाएं ही नहीं, महामारी, फसलों को नष्ट होना, कीटों का हमला जैसी न जाने कितनी समस्याएं क्लाइमेट चेंज की वजह से सामने आ रही हैं। यदि हमने समय रहते जरुरी कदम न उठाये तो न जाने कितनी नयी समस्याएं और आएंगी जिनका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। अब हम इसे और नजरअंदाज नहीं कर सकते। यदि हम आज नहीं संभले तो इसकी कीमत न केवल हमें बल्कि हमारे आने वाली पीढ़ियों को भी चुकानी होगी। यह हमारी धरती है, हमारा अपना घर, इसे बचाने के लिए हमें खुद ही आगे आना होगा। (downtoearth)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news