विचार / लेख

राज कपूर ने उन्हें ‘कविराज’ की संज्ञा दी थी
14-Dec-2020 2:31 PM
राज कपूर ने उन्हें ‘कविराज’ की संज्ञा दी थी

डॉ. पुनीत बिसारिया

शंकरदास केसरलाल शैलेन्द्र, जिन्हें दुनिया फिल्मों के गीतकार शैलेन्द्र के नाम से जानती है, की आज 53वीं पुण्यतिथि है। 30 अगस्त, सन 1923 को रावलपिंडी में जन्मे शैलेन्द्र के फिल्मी गीतों में रोमानियत, आक्रोश, भक्ति, दर्शन, दर्द सब कुछ देखने को मिलता है। उनके लोकप्रिय फिल्मी गीतों में बरसात में तुमसे मिले हम (बरसात), आवारा हूँ (श्री 420), रमैया वस्तावैया (श्री 420), मुड़ मुड़ के न देख मुड़ मुड़ के (श्री 420), मेरा जूता है जापानी (श्री 420), आज फिर जीने की (गाइड), गाता रहे मेरा दिल (गाइड), अजीब दास्तां है ये (दिल अपना और प्रीत पराई), ये रात भीगी भीगी(चोरी चोरी), पिया तोसे नैना लागे रे (गाइड), क्या से क्या हो गया (गाइड), हर दिल जो प्यार करेगा (संगम), दोस्त दोस्त न रहा (संगम), सब कुछ सीखा हमने (अनाड़ी), किसी की मुस्कराहटों पे (अनाड़ी), सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है (तीसरी कसम), दुनिया बनाने वाले (तीसरी कसम), तेरा मेरा प्यार अमर (असली नकली), पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई (मेरी सूरत तेरी आँखें), तू प्यार का सागर है (सीमा), खोया खोया चाँद (काला बाजार), रुक जा रात ठहर जा रे चन्दा (दिल एक मन्दिर), सुहाना सफर और ये मौसम हसीं (मधुमती), धरती कहे पुकार के बीज बिछा ले प्यार के (दो बीघा जमीन), जि़ंदगी ख्वाब है (जागते रहो), ओ सजना बरखा बहार आई (परख), छोटा सा घर होगा बादलों की छांव में (नौकरी), आ जा आई बहार (राजकुमार), ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना (बन्दिनी), चाहे कोई मुझे जंगली कहे (जंगली),  सुर न सजे क्या गाऊँ मैं (बसन्त बहार), ये शाम की तन्हाइयां ऐसे में तेरा ग़म (आह), ये रातें ये मौसम नदी का किनारा (दिल्ली का ठग), अहा रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिए (उसने कहा था) प्रमुख हैं। राज कपूर ने उन्हें ‘कविराज’ की संज्ञा दी थी।

हिन्दी की सर्वकालिक श्रेष्ठ फि़ल्म ‘तीसरी कसम’ जो फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ पर आधारित थी, का निर्माण उन्होंने किया था और इसकी व्यावसायिक असफलता से वे अन्दर तक टूट गए थे। मात्र 43 वर्ष की अवस्था में आज ही के दिन सन 1966 में उन्होंने इस दुनिया से विदा ले ली थी। उनके गीत फि़ल्म जगत की ऐसी अमूल्य धरोहर हैं, जिन्हें आज भी बेसाख़्ता हम गुनगुनाने लगते हैं। इस महान गीतकार के साहित्य जगत के योगदान का अभी मूल्यांकन नहीं किया जा सका है। शीघ्र ही राजकपूर के प्रिय ‘कविराज’ पर मेरा एक सुविस्तीर्ण आलेख अग्रज इन्द्रजीत सिंह की शैलेन्द्र पर आधारित पुस्तक के सौजन्य से आप सबके बीच आ रहा है।

इस अनूठे गीतकार को विनम्र श्रद्धांजलि के साथ प्रस्तुत है उनका एक ग़ैर फि़ल्मी गीत ‘उस दिन’

उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की

साध हो चुकी पूरी !

जिस दिन तुमने सरल स्नेह भर

मेरी ओर निहारा;

विहंस बहा दी तपते मरुथल में

चंचल रस धारा!

उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की

साध हो चुकी पूरी!

जिस दिन अरुण अधरों से

तुमने हरी व्यथाएं;

कर दीं प्रीत-गीत में परिणित

मेरी करुण कथाएं!

उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की

साध हो चुकी पूरी!

जिस दिन तुमने बाहों में भर

तन का ताप मिटाया;

प्राण कर दिए पुण्य--

सफल कर दी मिट्टी की काया!

उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की

साध हो चुकी पूरी!

संयोजन-अनिल करमेले

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