महासमुन्द

तत्कालीन कलेक्टर ने खाली पड़े स्कूल भवन को दिव्यांग रैन बसेरा का रूप दिया था, अब वीरान
30-Jun-2024 10:08 PM
तत्कालीन कलेक्टर ने खाली पड़े स्कूल भवन को दिव्यांग रैन बसेरा का रूप दिया था, अब वीरान

ग्लास, दरवाजे, खिड़कियां पार, भीतर-बाहर झाडिय़ोंं में सांप, बिच्छु, चमगादड़ों का डेरा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
 महासमुंद, 30 जून।
जिले के सुदूर क्षेत्रों से आकर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पढ़ाई करने वाले दिव्यांगों जनों के आवास की समस्या दूर करने के उद्देश्य से गुडरू पारा प्राथमिक शाला परिसर में बनाया गया दिव्यांग रैन बसेरा अब किसी भूत बंगले से कम नहीं है। आदिम जाति कल्याण विभाग तथा आरईएस विभाग की लापरवाही की वजह से यह भवन अब बूरी तरह जर्जर हो गया है। भवन में लगे ग्लास, दरवाजे खिड़कियां असामाजिक तत्व पार कर चुके हैं। भीतर तथा बाहर झाडिय़ां उग आई हैं। यहां सर्प, बिच्छुओं, चमगादड़ का डेरा बन चुका है। 

मालूम हो कि इस भवन के निर्माण के बाद से यहां जिम्मेदार अधिकारियों ने इसकी कभी सुधि ही नहीं ली। फलस्वरूप उद्घाटन से पूर्व ही भवन जर्जर व पुराना हो चुका है। कुल 8.40 लाख की लागत से निर्मित भवन अब केवल शराबियों का अड्डा बन चुका है। बताना जरूरी है कि तत्कालीन कलेक्टर उमेश अग्रवाल दिव्यांगों के प्रति बेहद संवेदनशील थे। इसी लिहाज से स्कूलों के संविलियन के वक्त गुड़रूपारा कन्या शाला के अनुपयोगी भवन को खाली जानकर उन्होंने इसे दिव्यांग रैन बसेरा बनाने के निर्देश दे दिए। 

जिस पर आरईएस ने 8.40 लाख रुपए की स्वीकृति के बाद इस पर काम किया। टूटे-फूटे भवन की मरम्मत कर दिव्यांगों के अनुरूप बनाया। इस भवन में 5 कमरे हैं। प्रत्येक कमरे में चार से पांच बेड लगाया जा सकता है। इसके अलावा यहां दो बाथरूम व दो शौचालय, एक कॉमन बाथरूम बनाया गया है। सभी बाथरूम और शौचालय दिव्यांगों की सुविधा को ध्यान रखते हुए बनाया गया है। भवन तक पहुंचने के लिए रेलिंग बनाई गई है। भवन का विद्युतीकरण व रंगरोगन किया गया है। 

कलेक्टर प्रभात मालिक के कार्यभार सम्हालने के दौरान प्रथम बार हुई पत्रकारों से चर्चा के दौरान इस विषय को प्रमुखता से रखा गया था। जिसे कलेक्टर मलिक ने शीघ्र शुरू कराने का आश्वासन भी दिया था। लेकिन आज तक इस पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई है। आज इस भवन की स्थिति यह है की भवन के भीतर तथा बाहर शराब की खाली तथा टूटी फूटी बोतलें, नमकीन तथा पानी पाउच बिखरे पड़े रहते हैं। मचकुरी लाइन की एक गली जो इस रैन बसेरे से लगी हुई है, यहां यह स्थिति है कि रोजाना 50 से 70 शराब की बोतलें कबाड़ बीनने वाले उठाते हैं।

ज्ञात हो कि कलेक्टर श्री अग्रवाल ने दिव्यांगों की मदद व शासकीय योजनाओं के लाभ के लिए प्रत्येक जनपद में हेल्प डेस्क भी खुलवाया था। लेकिन कलेक्टर के बदलते ही डेस्क का काम कमजोर हो गया है। वहीं दिव्यांग रैन बसेरा के संचालन में भी तत्परता नहीं बरती जा रही है। यह भवन बीते 7 साल पूर्व ही बनकर तैयार है, लेकिन अब तक इसे दिव्यांगों के उपयोग के लिए खोला नहीं गया है। यहां लगे ग्रील, ताले सभी में जंग लग चुके हैं। अब इसे पुन: प्रारंभ करने में फिर 10 से 12 लाख रुपए खर्च होने के अनुमान हैं। यहां 7 साल में बोर नहीं हुआ है। कहा जाता है कि इसी वजह से समाज कल्याण विभाग ने दिव्यांगों को प्रवेश देना प्रारंभ नहीं किया। 

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