विचार / लेख

छत्तीसगढ़ एक खोज : अठारहवीं कड़ी : ठाकुर जगमोहन सिंह
22-May-2021 3:14 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज : अठारहवीं कड़ी : ठाकुर जगमोहन सिंह

-रमेश अनुपम
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ‘फांकि’ कविता पर लिखते हुए मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि गुरुदेव और उनकी यह कविता इतिहास की अनेक गुमनाम विथिकाओं में मुझे बहुत दूर तक अपने साथ बहा ले जायेंगी, जहां से सही सलामत लौट आना मेरे तथा मेरे जैसे संवेदनशील पाठकों के लिए एक दुष्कर कार्य सिद्ध होगा।

गुरुदेव की ‘फांकि’ कविता के बिना छत्तीसगढ़ की खोज मेरे लिए संभव नहीं था। यह सत्य है कि कोई भी राष्ट्र या राज्य अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजे बिना राष्ट्र या राज्य का वास्तविक रूप नहीं ले सकता है। 

‘फांकि’ कविता हमारे इस नए प्रदेश के लिए जो बीस वर्ष का युवा हो चुका है, केवल एक मूल्यवान कविता भर नहीं है, बल्कि एक मूल्यवान धरोहर भी है। 
गुरुदेव का इस प्रदेश की भूमि पर पग रखना ही छत्तीसगढ़ के गौरव को विश्व क्षितिज पर प्रतिष्ठित कर देना है।

बहुत सारे मित्रों ने मुझसे कहा कि वे अभी तक गुरुदेव और ‘फांकि’ कविता के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो पाएं हैं और वे जल्द ही इससे मुक्त होना भी नहीं चाहते हैं, इसलिए मैं किसी नई कड़ी का प्रारंभ अभी न शुरू करूं। वे चाहते थे कि दो तीन सप्ताह के लिए मैं छत्तीसगढ़ एक खोज को स्थगित कर दूं।
छत्तीसगढ़ एक खोज पहली कड़ी से लेकर सत्रहवीं कड़ी तक प्रत्येक रविवार को मेरे फेसबुक पर और ‘दैनिक छत्तीसगढ़’ तथा ‘आज की जनधारा’ में जगह पाता रहा है। नियमानुसार प्रत्येक शुक्रवार तक मैं इसे लिख भी लेता हूं, भले ही इसके लिए मुझे अन्य कार्यों को स्थगित करना पड़े।

इसलिए मुझे लगा कि दो तीन सप्ताह तक इसे मैं स्थगित रखूं, यह उन सबके प्रति एक तरह से ज्यादती होगी जो मेरी तरह छत्तीसगढ़ की खोज में लगे हुए हैं। 
सो सिलसिला अविराम जारी है दोस्तों।

पता नहीं छत्तीसगढ़ की उर्वर भूमि में ऐसा कौन सा प्रबल आकर्षण छिपा हुआ है कि देश के अनमोल रत्न छत्तीसगढ़ की भूमि की ओर खींचे चले आते हैं। 
छत्तीसगढ़ की भूमि केवल रत्नगर्भा ही नहीं है, दूसरे राज्य के रत्नों को भी चुंबकीय शक्ति से अपनी ओर खींच लाने की शक्ति रखने वाली अलौकिक भूमि भी  है। यह छत्तीसगढ़ के साथ-साथ कोशल और महाकोशल भी है। जहां कोई साधारण नदी नहीं, अपितु महानदी जैसी नदी बहती है। महानदी जिसे हमारे आदि ऋषि मुनियों ने चित्रोत्पला की संज्ञा से विभूषित किया था।

स्वामी विवेकानन्द, हरिनाथ डे, रवींद्रनाथ ठाकुर, विभूतिभूषण बंदोपाध्याय जैसी विभूतियां यों ही छत्तीसगढ़ नहीं आ गए थे।

इसी तरह की एक और विभूति थे ठाकुर जगमोहन सिंह। आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनन्यतम सखा और विजयराघवगढ़ रियासत के होनहार राजकुमार ठाकुर जगमोहन सिंह।

विजयराघवगढ़ कोई साधारण रियासत नहीं थी। हमारे इस कड़ी के महानायक राजकुमार ठाकुर जगमोहन सिंह किसी साधारण रियासत के कोई साधारण राजकुमार नहीं थे, अपितु विजयराघवगढ़ जैसी एक ऐसी रियासत का प्रतिनिधित्व करने वाले राजकुमार थे, जिस रियासत ने 1857 की क्रांति में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया था।

सन 1857 की क्रांति की चिंगारी मेरठ, झांसी, जबलपुर होते हुए विजयराघवगढ़ पहुंच गई थी। सन 1857 में विजयराघवगढ़ रियासत के राजकुमार सोलह वर्षीय ठाकुर सरयू प्रसाद  सिंह थे। 

ठाकुर सरयू प्रसाद सिंह अभी किशोर ही थे, ठीक से युवा भी नहीं हुए थे लेकिन स्वतंत्रता की चिंगारी उनके भीतर दावानल की भांति सुलगने लगी थी। वे दूसरी रियासतों के राजकुमार की तरह अंग्रेजों की जी हुजूरी करने और उनकी गुलामी में जीने के लिए नहीं पैदा हुए थे।

सो उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया। मात्र सोलह वर्षीय राजकुमार ठाकुर सरयू प्रसाद सिंह ने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, कुंवर सिंह और तात्या टोपे का मार्ग चुना। यह मार्ग था। देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का। किशोर राजकुमार के मन में देशप्रेम और देश की स्वतंत्रता से बढक़र और कुछ नहीं था। पर इतिहास में कुछ और लिखा हुआ था। देश की कई रियासतों ने देश के साथ गद्दारी की। उन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए थे। सन 1857 की क्रांति भी अपनी नियत समय से पहले ही प्रारंभ हो गई थी। देश अभी पूरी तरह से इस क्रांति के लिए तैयार भी नहीं हुआ था। इसलिए सन 1857 की क्रांति विफल हो गई।

राजकुमार ठाकुर सरयू प्रसाद सिंह भी अंग्रेज सरकार द्वारा बंदी बना लिए गए। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें काला पानी की सजा सुनाई।

सरयू सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत में सजा भोगने से बेहतर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर लेना उचित समझा। उन्होंने आत्महत्या कर अपनी देह लीला समाप्त कर ली।
ऐसे वीर और क्रांतिकारी राजकुमार ठाकुर सरयू प्रसाद सिंह के सुपुत्र हैं, हमारी इस कड़ी के महानायक ठाकुर जगमोहन सिंह।

ठाकुर सरयू सिंह की मृत्यु के पश्चात् विजयराघवगढ़ की रियासत अंग्रेजों के अधीन हो गई। ठाकुर जगमोहन सिंह के नौ वर्ष पूर्ण होने पर सन् 1866 में पढऩे के लिए बनारस स्थित क्वींस कॉलेज भेजा गया।

ठाकुर जगमोहन सिंह बचपन से ही मेधावी एवं प्रतिभाशाली छात्र थे। मात्र चौदह वर्ष की उम्र में ही उन्होंने महाकवि कालिदास कृत ‘गंगाष्टक’ तथा अपनी मौलिक कविता ‘द्वादश मासी’ को एक साथ एकत्र कर ‘प्रेम रत्नाकर’ के नाम से सन 1873 में बनारस प्रिंटिंग प्रेस से प्रकाशित करवाया।

क्वींस कॉलेज बनारस में अध्ययन के दरम्यान ही पंद्रह वर्ष की अल्पायु में उन्होंने कालिदास के सुप्रसिद्ध काव्य ‘ऋतु संहार’ का संस्कृत से हिंदी में न केवल अनुवाद किया अपितु सन 1875 में उसे प्रकाशित भी करवा लिया।

सन 1878 में क्वींस कॉलेज बनारस से शिक्षा पूरी कर वे विजयराघवगढ़ वापस लौटे। तब तक वे संस्कृत, हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य में निष्णात हो चुके थे।

दो वर्षों तक विजयराघवगढ़ में बिताने के पश्चात सन 1880 में उनकी तहसीलदार के पद पर नियुक्ति हो गई। तहसीलदार के रूप में उनकी पहली पदस्थापना छत्तीसगढ़ के धमतरी में हुई।
(शेष अगले हफ्ते...)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news