विचार / लेख
-पुष्य मित्र
अगर कल से फेसबुक-ट्विटर-वाट्सएप बंद हो गये तो सबसे अधिक खुश मैं होऊंगा। हालांकि एक स्वतंत्र पत्रकार होने के कारण ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मेरे लिए जॉब काउंटर सरीखे हैं। मेरे लिए कई खबरों के आइडियाज यहीं से मिलते हैं और काम के कई ऑफर भी। मेरे लिए यह सिर्फ टाइमपास, दोस्ती, राजनीति, एक्टिविज्म और अपने आप को प्रमोट करने का जरिया ही नहीं है। यह मेरी रोजी रोटी से जुड़ा है। फिर भी मुझे पूरा भरोसा है कि कोई न कोई जरिया निकल ही जायेगा।
हालांकि मुझे यह भी मालूम है कि इनमें से कोई बंद नहीं होगा। हमसे ज्यादा इन माध्यमों पर सरकार की डिपेंडेंसी है। हमारा काम चल जायेगा, सरकारों का काम इनके बगैर एक दिन नहीं चलेगा। आप देखिये किस तरह इन माध्यमों से जुड़कर देश के बड़े नेता और मंत्री अब इंडिपेंडेंट मीडिया बन चुके हैं। इन्हें अपनी बात लाखों लोगों तक पहुंचाने के लिए अब अखबारों, टीवी चैनलों और दूसरे समाचार माध्यमों की जरूरत नहीं। इन माध्यमों में सरकार के लिए कोई संपादकीय अवरोध भी नहीं। ये जो चाहते हैं, हर किसी तक पहुंचा देते हैं। सही-गलत दोनों तरह की बात। विवादास्पद बयान तक।
फिर इन माध्यमों पर इनके लाखों नासमझ फॉलोअर हैं, जो इनके एक इशारे पर इनके विरोधियों की वाट लगाते रहते हैं। सोशल मीडिया पर सत्ता और विपक्ष का शक्ति संतुलन 90 बनाम दस का है। इनकी आईटी सेल है, जो इनकी हर असफलता, हर गलत फैसले पर कुतर्क गढ़ती है और पल भर में गांव-गांव तक फैला देती है। सत्ताधारी दल के बूथ लेवल तक वाट्सएप ग्रुप हैं। जिनके जरिये चुनाव लड़े और जीते जाते हैं और प्रोपेगेंडा फैलाये जाते हैं।
यही वह ताकत है जिसकी वजह से हद दर्जे की आर्थिक और राजनीतिक असफलता के बावजूद यह सरकार बेफिक्र है। उसे मालूम है कि उसके पास अपने कुतर्क और प्रोपेगेंडा को फैलाने के लिए एक चैनल बना हुआ है। अखबार आज भी नैतिकता के एक मोरल प्रेशर में काम करते हैं, उनके पतन औऱ सत्ताउन्मुख होने की अपनी सीमा है। उस पर फेक न्यूज न फैलाने का दबाव है। ऐसे में जब हर बाजी नाकाम हो जाती है तो वाट्सएप यूनिवर्सिटी काम आती है। सरकार इस ताकत को नहीं गंवा सकती।
हां, अपनी ताकत के जोर पर वह उसे दबाना और झुकाना जरूर चाहती है। जिस तरह उसने ज्यादातर टीवी न्यूज चैनलों को झुका दिया है। वह सोशल मीडिया स्पेस में सीमित हैसियत में मौजूद विरोधी आवाज को कुचलना चाहती है। क्योंकि यही वह आवाज है जो तमाम प्रोपेगेंडा के बावजूद सरकार को प्रेशर में रखती है, उसके अपराधों को सामने लाती है। सरकार का लक्ष्य इन माध्यमों को इतना झुका देना है कि वह इन आवाजों का धीरे-धीरे गला घोंट दे। ताकि सोशल मीडिया पर सिर्फ उसका प्रोपेगेंडा गूंजता रहे।
सोशल मीडिया के होने से विरोधी आवाजों को भी एक भ्रम सा हो गया है कि वे यहां ताकतवर हैं। वे एक ट्विटर कैंपेन या फेसबुक पोस्ट लिखकर सरकार को झुका देते हैं। इस चक्कर में उनका आम लोगों से जुड़ाव घटता जा रहा है। अगर ये माध्यम बंद हुए तो विरोधी ताकतों को फिर से आम लोगों से बतियाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यह उनके लिए लाभदायक होगा। सरकार का पिंड भी मीडियम क्लास फुरसतिये भक्तों से छूटेगा। जो अपनी कल्पना से हर बात के लिए कुतर्क गढ़ते और सारा दोष पब्लिक पर डाल देने के अभ्यस्त हो चले हैं।