विचार / लेख
-अशोक पांडे
पहली बार रवि शास्त्री हाय-हाय का उद्घोष करने वाला कोई न कोई दिलजला रहा होगा।
लम्बे कद के खूबसूरत रवि शास्त्री के पीछे लड़कियां दीवानी रहा करती थीं। इन दीवानियों में कई फिल्म अदाकाराएँ और टॉप मॉडल बालाएं भी थीं। शास्त्री के स्टाइल का हाल यह था कि खासी बैकवर्ड जगह होने के बावजूद हमारे हल्द्वानी-काठगोदाम में कम से कम दो ऐसे छैफुट्टे लडक़े थे जिनके बालों का झब्बा उसी के कट का था जिसके सहारे वे खुद को रवि शास्त्री समझते नगर के सभी कन्यादर्शन-केन्द्रों पर रियाज करते पाए जाते और हाईट बढ़ाने के हरसंभव जतन में लगे जमाने भर के टीनेजर लौंडों की डाह का विषय बनते।
हमारे देश में वैसे भी लड़कियों द्वारा लडक़ों को आसानी से घास न डाले जाने की लंबी परम्परा रही है। कोई आश्चर्य नहीं कि लड़कियों के बीच बेतरह पॉपुलर इस कामयाब खिलाड़ी से जलने वाले किसी लौंडे ने शास्त्री के असफल हो जाने के बाद रवि शास्त्री हाय-हाय का नारा लगाया हो।
यह नारा 1990 के दशक के शुरुआती सालों में एक कल्ट की सूरत अख्तियार कर चुका था।
आप फर्ज कीजिये शारजाह में पाकिस्तान और वेस्ट इंडीज का टेस्ट मैच चल रहा है। खिलाड़ी और दर्शक दोपहर की कड़ी धूप में पसीने से तरबतर हैं। तीन ओवर लगातार मेडन जा चुके हैं और मैच का परिणाम आने की कोई संभावना नहीं है। अचानक कोई हारा हुआ मजनूँ दैवीय प्रभाव में आकर चीख उठता है- ‘रवि शास्त्री हाय-हाय।’
समूचे स्टेडियम में बवाल मच जाता है, लोग खुशी के मारे चीखने लगते हैं, कुर्सियां फेंकी जाने लगती हैं, कोई मैदान की तरफ कोकाकोला का खाली कैन उछाल देता है और मैच खेल रहे खिलाडिय़ों की सूरतों पर अचरज छा जाता है।
ऐसा जलवा था रवि शास्त्री का।
एक इंटरव्यू में रवि शास्त्री कहते हैं कि वे बीमारी के कारण एक मैच नहीं खेल रहे थे और ग्रीनरूम में आराम फरमा रहे थे जबकि समूचा स्टेडियम ‘रवि शास्त्री हाय-हाय’ के नारों से गूँज रहा था। मुझे नहीं लगता पेले या माराडोना तक को ऐसी ख्याति नसीब हुई होगी!
शास्त्री एक जमाने में बहुत अच्छे क्रिकेटर हुआ करते थे और खूबसूरती के लिहाज से संदीप पाटिल से बीस नहीं तो उन्नीस तो ठहरते ही थे। उन्होंने फस्र्ट क्लास क्रिकेट में एक ओवर की छ: गेंदों पर छ: छक्के भी लगाये थे और महान सर गैरी सोबर्स की बराबरी की थी।
रवि शास्त्री भारत के बड़े स्टार बन गए थे ख़ास तौर पर जब उन्हें 1985 में ऑस्ट्रेलिया में हुए बेंसन एंड हेजेज कप में चैम्पियन ऑफ चैम्पियंस घोषित किया गया था। श्रीकांत के साथ उनकी ओपनिंग जोड़ी के चलते उन दिनों भारत सारे मैच जीत जाया करता था।
इसके बाद उन्हें ईनाम में एक कार मिली थी जिस पर बिठाकर उन्होंने अपनी पूरी टीम को मैदान की सवारी खिलाई थी। टीवी पर उस कार को देखने के बाद ही भारत के लोगों को पता चला कि दुनिया में एम्बेसेडर, पद्मिनी और मारुति के अलावा भी कारें होती हैं जो इतनी महंगी होती हैं कि उनका बस सपना ही देखा जा सकता है। छोटे गाँव-कस्बों में लोग पूछते पाए जाते - ‘कित्ते की होगी साली!’
विचार किया जाय कि देश का ऐसा दुलारा हीरो अचानक लोगों की हाय-हाय के सबसे जरूरी निशानों में शुमार हो गया। पहली वजह, जिसके बारे में मेरा अनुमान बहुत ठोस है, मैं आपको बता ही चुका हूँ। दूसरी वजह यह थी कि अपने करियर के अंतिम सालों में शास्त्री ने बैटिंग की लप्पा तकनीक की एक भुस्कैट फॉर्म का ईजाद किया था जिसमें दस में से नौ बार तुक्का नहीं लगता।
फर्ज कीजिये आखिरी के सात ओवर बचे हैं और पांचवां विकेट गिरने के बाद शास्त्री मैदान में आते हैं। कुल 46 रन बनाने को बचे हैं। शास्त्री क्या करेंगे कि पहली ही गेंद पर विकेट छोडक़र लेग स्टम्प के बाहर खड़े हो जाएंगे और कैसी भी गेंद हो उसे लॉन्ग ऑन के ऊपर टांगने के अंदाज में हवा की धुनाई शुरू करेंगे। यह सिलसिला तब तक चलेगा जब तक कि या तो वाकई में छक्का न लग जाए या उनके स्टम्प जमींदोज न हो जाएं। अमूमन वे आउट हो जाते थे और भारत हार जाया करता। ‘रवि शास्त्री हाय-हाय’ कहने वालों को मौका मिल जाता कि अपनी प्रतिभा और देशभक्ति का प्रदर्शन करें और वे ऐसा करते भी।
दुनिया की इतनी सारी क्रूरता के बावजूद मैंने रवि शास्त्री को पसंद किया। साढ़े पांच फुट की अपनी लम्बाई के बावजूद मुझे खुशफहमी थी की उसके जितनी तो नहीं पर नैनीताल नगर की कम से कम आधा दर्जन लड़कियां मुझे अपना रवि शास्त्री समझती थीं। इस लिहाज से रवि शास्त्री मेरा बड़ा भाई था। मेरा फ्रेंड, फिलॉसॉफर एंड गाइड था!
इधर उसकी तोंद निकल आई है जिसके बावजूद हाल तक वह कोहली-शिखर टाइप के छोकरों का कोच बना बैठा था। ईष्र्यालुजन चटखारे ले-ले कर उसकी शराबखोरी के किस्से सुनाया करते हैं। वह अक्सर कमेंट्री करता है। उसकी कमेंट्री को अतिड्रामाई की श्रेणी में रखा जा सकता है जिसमें खूब सूंसूं -फूंफूं की जानी होती है- ‘येस्स्स्स इट्स अ सिक्स्स्स!’
उसकी कमेंट्री सुनते हुए मुझे अक्सर खीझ का दौरा पड़ता है और मैं टीवी बंद कर देता हूँ। इसके बावजूद जब-तब कंधे पर धाप मार कर गले से लग जाने और उससे यह कहने का मन होता है कि आई मिस यू भाई।