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आज अकबर का जन्मदिन : शिवाजी के विचार
15-Oct-2022 10:43 AM
आज अकबर का जन्मदिन : शिवाजी के विचार

 - बोधिसत्व

मेरा मानना है कि इतिहास को बदला नहीं जा सकता। उसे धुंधला करने की कोशिश करने में भी बहुत कुछ नष्ट करना होगा। 
आज बीजेपी  अकबर और शिवाजी महाराज के विचारों को लेकर क्या सोच रखती हैं वह जग जाहिर है। लेकिन अकबर और उनकी महानता के बारे में महान शिवाजी क्या सोच रखते हैं उसे उनके एक पत्र से समझा जा सकता है। शिवाजी का यह पत्र बताता है कि अकबर को शिवाजी कहीं से भी सांप्रदायिक और भेदवाद करने वाला या फिरकापरस्त शासक नहीं मानते थे। शिवाजी ने अपनी यह भावना अकबर के ही वंशज बादशाह औरंगजेब से प्रकट की है। अब यदि कोई इतिहास से अकबर के सुकीर्ति को मिटाना चाहे तो शिवाजी के कथनों को जलाना पड़ेगा। मिटाना पड़ेगा। 

शिवाजी का यह पत्र यदुनाथ सरकार की किताब से उद्धृत है और लेकिन यहां प्रकाशित अंश राय आनन्द कृष्ण की किताब अकबर से लिया गया है। पत्र में शिवाजी के माध्यम से अकबर के प्रति उनकी प्रजा की भावनाएं भी उजागर होती है। अकबर की प्रजा उनको "जगतगुरु" मानती थी।

शिवाजी के पत्र का अंश- 
"अकबर ने इस बड़े राज्य को बावन बरस तक ऐसी सावधानी और उत्तमता से चलाया कि सब फिरकों के लोगों ने सुख और आनन्द पाया। क्या ईसाई, क्या भुसाई, क्या दाऊदी, क्या फलकिये, क्या नसीरिए, क्या दहरिये, क्या ब्राह्मण और क्या सेवड़े, सब पर उनकी समान कृपा दृष्टि रहती थी। इसी सुलह कुल के बर्ताव के कारण सब लोगों ने उन्हें जगत गुरु की पदवी दी थी। इसी प्रभाव के कारण वे (अकबर) जिधर देखते थे, फतह उनके सामने आकर खड़ी हो जाती थी"
जो भावनाएं शिवाजी प्रकट कर रहे हैं उसे उनके नाम पर राजनीति करने वाले लोग कितना मानते हैं यह देखने की बात है। लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों को दरकिनार नहीं किया जा सकता। 

अकबर के देहांत पर देश की क्या प्रतिक्रिया थी उसका एक प्रमाण विख्यात हिंदी कवि बनारसी दास जैन ने अपनी पुस्तक अर्ध कथानक में लिखा है। वे लिखते हैं कि "प्रजा मानो अनाथ हो गई। उसका स्वामी चला गया। जौनपुर के निवासी भयभीत हो गए, उनका मुख पीला पड़ गया और हृदय व्याकुल हो गया। ऐसी ही प्रीति थी अकबर के प्रति प्रजा में"
बादशाह अकबर के देहावसान की सूचना बनारसी दास जैन को जौनपुर में मिली थी। वे लिखते हैं कि जौनपुर में दस दिन शोक मनाया गया।
कितना आपको बताया जाता है वह अपनी जगह है लेकिन आज आप का फर्ज बनता है कि आप
अपने महान शासकों के बारे में वह जाने जो आपको नहीं बताया जा रहा है।
 
अगर महान संत तुलसीदास और सूरदास अकबर के समकालीन होकर भी उनके बारे में कोई विरोधी वाक्य नहीं बोलते तो इसमें आश्चर्य कैसा?
 

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