विचार / लेख

सारे अच्छे लोकतंत्र सेक्युलर क्यों ?
15-Oct-2022 3:36 PM
सारे अच्छे लोकतंत्र सेक्युलर क्यों ?

-कृष्ण कांत
मैं शायद आठवीं क्लास में था। वह नवरात्रि पर्व का पहला दिन था। मैंने अपने बाबा से कहा- मैं भी नौ दिन व्रत रहूंगा। उन्होंने कहा - फालतू बात मत करो। मैंने पूछा- सब लोग तो रहते हैं, मैं क्यों नहीं रह सकता? उन्होंने कहा- तुम भी रह सकते हो लेकिन अभी तुम्हारा काम व्रत रखना नहीं, मेहनत से पढ़ाई करना है। वही तुम्हारी पूजा है। 

हमारी धार्मिक परंपरा में क्यों कहा गया कि कर्म ही पूजा है? क्योंकि जो जिम्मेदारी आप धारण कर रहे हैं, वही आपका सबसे बड़ा धर्म है। भारतीय दर्शन कहता है - धार्यते इति धर्म: अर्थात जिसे आप धारण करते हैं, वही धर्म है। 
सोचिए कि आप बीमारी की हालत में अस्पताल ले जाए गए और डॉक्टर हवन करने बैठ गया। आप का तुरंत इलाज जरूरी है वरना आपकी जान जा सकती है लेकिन डॉक्टर कह रहा है कि वह धार्मिक है और पहले अपनी धार्मिक आस्था के तहत अपनी पूजा संपन्न करेगा। क्या वह सच में धार्मिक है? क्या वह अपना धर्म निभा रहा है? बिल्कुल नहीं।

अगर बच्चा भूखा है तो मां का पहला धर्म है उसे दूध पिलाना।अगर परिवार भूखा है तो परिवार के मुखिया का सबसे बड़ा धर्म है रोटी का इंतजाम करना। अगर देश आर्थिक और सामाजिक रूप से तमाम चुनौतियों का सामना कर रहा है तो देश के मुखिया का पहला काम है इनसे निपटना। यही उसका सबसे बड़ा धर्म है। वह कितने घंटे पूजा करता है, किस-किस धाम में जाता है, कहां-कहां घंटी बजाता है, कहां-कहां चंदन लगाता है, कहां-कहां घंटा बजाता है, इससे ना तो जनता का कोई सरोकार है न ही उसका कोई भला होने वाला है। वह ऐसा जनहित के लिए नहीं कर रहा है। वह अपनी नाकामी छुपाने के लिए धर्म का लबादा ओढ़ रहा है ताकि लोग उसे कुछ कह ना सकें और उसके धर्म में आस्था रखने वाले आम लोग यह सोच कर खुश हो जाएं कि देखिए कितना बड़ा धार्मिक है! 

जनहित के मामले में, हर व्यक्ति का अपना काम उसका सबसे बड़ा धर्म है। आपके काम से जितने ज्यादा लोगों का हित जुड़ा है, आपका दायित्व उतना ही बड़ा है। उसे निभाने से बड़ा धर्म दूसरा कोई नहीं है। जो यह नहीं निभा रहा है वह कुछ भी हो पर धार्मिक नहीं हो सकता। राजनीति अगर धार्मिक दिखावे और प्रदर्शन की चीज बनती जा रही है तो इसकी कीमत अंतत: हम-आपको चुकानी है।

जिसे रोज पूजा-अनुष्ठान करना हो, गेरुआ ओढ़ पोज देनी हो, उसे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहिए, उसे शंकराचार्य बनना चाहिए, संन्यास लेना चाहिए। आप सत्ता में विफल हैं तो धर्म की आड़ लेकर लोगों को उलझाते हैं। माफ कीजिए, आप न प्रशासक हैं, न संत, न धार्मिक, आप पाखंडी हैं। 

देश का नेतृत्व कर रहे व्यक्ति का एकमात्र और सबसे बड़ा धर्म है कि वह 140 करोड़ लोगों की भलाई और प्रगति सुनिश्चित करे। 

वह ढहती अर्थव्यवस्था संभाले। अपने दायित्व में विफल व्यक्ति रोज़ कर्मकांड आयोजित कर उसका भव्य प्रदर्शन करे तो वह धार्मिक नहीं, आपकी आस्थाओं का लुटेरा है। आज नहीं तो कल यह फर्क करना पड़ेगा। जिसे जो दायित्व मिला है वही उसका सबसे बड़ा धर्म है। उसे नहीं निभाना अधर्म। 

धर्म की दंगाई व्याख्या और राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक उन्माद आप कब तक बर्दाश्त करेंगे? इससे देश और समाज को लाभ क्या होगा? 

यहां किसी का अपमान करने या मजाक उड़ाने जैसा सतही प्रश्न नहीं है, यह अपना अभीष्ट धर्म न निभाकर 140 करोड़ लोगों के साथ छल करने का गंभीर प्रश्न है। दुनिया के सारे अच्छे लोकतंत्र सेक्युलर क्यों हैं? क्योंकि सेक्युलरिज्म धर्म का समर्थन या विरोध नहीं है। सेक्युलरिज्म धर्म की जकड़बंदी से मुक्त होकर जनहित में अपने फर्ज निभाने का रास्ता है। उम्मीद है कि मेरे मित्रगण इन चिंताओं को अन्यथा न लेकर सही अर्थों में समझेंगे।

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